डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदीवाराणसी. आज ऊंचे-ऊंचे मंदिरों की चर्चा देश भर में हो रही है। जहां-तहां ऊंचे मंदिर बनवाए जा रहे हैं। लेकिन कम लोग ही जानते होंगे कि देश का सबसे ऊंचा मंदिर बनारस में है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में है। यह मंदिर कुतुब मीनार से भी ऊंचा है। यह मंदिर श्वेत संगमरमर से बना है। इसके निर्माण में 35 साल लगे थे और एक सिद्ध योगी ने इसकी आधारशिला रखी थी।
बता दें कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय जी की सोच थी कि एक शिक्षा का एक ऐसा मंदिर हो जहां पढने वाले सुबह उठ कर गंगा स्नान करें फिर यहीं परिसर में बाबा विश्वनाथ का दर्शन-पूजन भी करें। इसी सोच के साथ उन्होंने गंगा किनारे विश्वविद्यालय निर्माण की आधारशिला रखी, यह दीगर है कि उसी साल यानी 1916 में ही बाढ आई और स्थापना स्थल तक गंगा का जल पहुंच गया। इस पर मालवीय जी ने उस जमीन को यह कह कर छोड़ दिया कि यह तो गंगा मैया की जमीन है। हालांकि हर साल उसी स्थल पर पूजन के साथ शुरू होता है स्थापना दिवस समारोह। वर्तमान में वही ट्रामा सेंटर बना है।
विश्वविद्यालय के निर्माण के दौरान ही महामना ने परिसर में भव्य विश्वनाथ मंदिर के निर्माण के बारे में सोचा। इस मंदिर की आधारशिला वह किसी तपस्वी से रखवाना चाहते थे। तपस्वी की तलाश में उन्हें किसी से जीके स्वामी कृष्णम नामक तपस्वी के बारे में जानकारी मिली। स्वामी कृष्णम उस वक्त गंगोत्री ग्लेशियर से डेढ सौ कोस दूर कांड नामक गुफा में वर्षों से तप कर रहे थे। सिद्ध तपस्वी का पता चलने के बाद मालवीय जी ने 1927 में सनातन धर्म महसभा के प्रधानमंत्री गोस्वामी गणेशदास के हाथों विश्वविद्यालय परिसर में विश्वनाथ मंदिर के लिए शिलान्यास का न्योता भेजा।
साधना में लीन रहने वाले तपस्वी कृष्णाम स्वामी को मनाने में गोस्वामी गणेशदास जी को चार साल लग गए। अंततः 11 मार्च 1931 को स्वामी कृष्णाम के हाथों मंदिर का शिलान्यास हुआ। इसके बाद मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ। दुर्भाग्य से मंदिर का निर्माण मालवीय जी के जीवन काल में पूरा ना हो सका।
हालांकि मालवीय जी के निधन से पूर्व उद्योगपति जुगल किशोर बिरला ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि हर हाल में बीएचयू परिसर के भीतर भव्य मंदिर का निर्माण होगा और इसके लिए धन की कभी कोई कमी नहीं आएगी। बिड़ला जी ने अपना वादा पूरा करने में लगे रहे। मंदिर का निर्माण कार्य जारी रहा और 1954 तक शिखर को छोड़कर मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो गया। फिर 17 फरवरी 1958 को महाशिवरात्रि के दिन मंदिर के गर्भगृह में नर्मदेश्वर बाणलिंग की प्राण प्रतिष्ठा के साथ भगवान विश्वनाथ की स्थापना इस मंदिर में हो गई। मंदिर के शिखर का कार्य वर्ष 1966 में पूरा हुआ। बता दें कि मंदिर के शिखर पर सफेद संगमरमर लगाया गया और उनके ऊपर एक स्वर्ण कलश की स्थापित है। इस स्वर्णकलश की ऊंचाई 10 फिट है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय स्थित भारत कला भवन में इस भव्य मंदिर का ब्लू प्रिंट सुरक्षित है।
कोट ” बनारस हिंदू विश्वविद्यालय परिसर स्थित काशी विश्वनाथ का मंदिर देश का सबसे ऊंचा मंदिर है। इसकी ऊंचाई 252 फीट है। यह मंदिर दिल्ली के ऐतिहासिक कुतुब मीनार से भी 11 फीट ऊंचा है। कुतुब मीनार की ऊंचाई 239 फीट है। इसका ब्लू प्रिंट मिल गया है। वैसे वह काफी जीर्ण-शीर्ण हो गया था। लेकिन अब उसे दुरुस्त करा लिया गया है। अब जुलाई के अंतिम सप्ताह में भारत कला भवन में लगने वाली प्रदर्शनी जिसमें देश के महापुरुषों और वीरांगनाओं मसलन वाजिद अली शाल और रानी लक्ष्मी बाई के बटुओं की प्रदर्शनी के साथ विश्वनाथ मंदिर के ब्लू प्रिंट को भी प्रदर्शित किया जाएगा “-प्रो. अजय कुमार सिंह, निदेशक, भारत कला भवन, बीएचयू
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