भारतीय वन जीव संस्थान की वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.रूचि ने बताया कि उनके साथ नेशनल जिओफिकल सोसाइटी की डा.जेना (यूएस निवासी) व डा.हैदन (ब्रिटेन निवासी) भी इस अभियान से जुड़ी है। उन्होंने बताया कि नदियों में प्लास्टिक कैसे पहुंचती है और फिर यह समुद्र तक कैसे जाती है इसकी जानकारी जुटायी जा रही है। इसी अभियान के साथ भारतीय वन्य जीव संस्थान गंगा में जीव विविधता की सही स्थिति का पता चला रहा है इसलिए दोनों टीमे साथ काम कर रही है। डा.रूचि ने बताया कि नदी में माइक्रो प्लास्टिक कितना है जो पानी में घुल गया है। गंगा की मिट्टी में कहा तक प्लास्टिक पहुंचा है यह पता किया जा रहा है। सटीक आंकड़े जुटाने के लिए दो चरण में अभियान शुरू हुआ है। मानसून के समय नदी की स्थिति कुछ और होती है जबकि मानसून से पहले कुछ और। ऐसे में पहले चरण में मई से जुलाई 2019 तक अभियान चलाया गया था। दूसरा चरण बांग्लादेश से २५ अक्टूबर को आरंभ हुआ है, जो हर्सिल तक चलेगा। गंगा ही क्यों के प्रश्र पर कहा कि यह अभियान विश्व के सभी बड़ी नदी पर होना है लेकिन पहले गंगा को इसलिए चुना गया है कि गंगा नदी पर बहुत बड़ी आबादी निर्भर करती है। कैसे नदी तक प्लास्टिक पहुंचता है लोगों में इसको लेकर कितनी जागरूकता है आदि की भी जानकारी जुटायी जा रही है। टीम ने बोट के जरिए गंगा में कई जगह निरीक्षण किया और नमूने भी लिये।
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