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वाराणसी

BHU साइंस फैक्लटी के डीन ने हिन्दी की लाचारी पर किया बड़ा दावा, स्कूलों की खोली पोल

Varanasi News : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में आयोजित हिन्दी दिवस की संगोष्ठी में साइंस फैकेल्टी के डीन ने हिन्दी की लाचारी पर बड़ा बयान दिया। उन्होंने इस दौरान स्कूलों की पोल भी खोली और सच्चाई से भी लोगों को रूबरू कराया।

वाराणसीSep 14, 2023 / 09:00 pm

SAIYED FAIZ

Varanasi News

Varanasi News : पूरा देश आज हिन्दी दिवस मना रहा है, पर हिन्दी दिवस पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में आयोजित सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे साइंस फैकेल्टी के डीन प्रोफेसर सुख महेंद्र सिंह ने हिन्दी की लाचारी पर बड़ा बयान दिया और उन्होंने कान्वेंट स्कूलों की पोल भी खोल दी। इसके अलावा सभागार में खाली पड़ी कुर्सियों को लेकर भी कटाक्ष किया और कहा कि हम हिन्दी के प्रति कितने संवेदनशील हैं। यह सभागार की खाली कुर्सियां बताने के लिए काफी हैं।
हिन्दी बोलने में शर्म का अनुभव होता है

हिन्दी दिवस पर हिन्दी प्रकाशन समिति, बीएचयू विज्ञान संस्थान में हिन्दी में विज्ञान का विषयक सेमिनार का आयोजन किया था। इस आयोजन में फैकेल्टी के डीन प्रोफेसर सुख महेंद्र सिंह ने बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि ‘हमारे स्कूल जो आजकल माफिया की तरह से पनप रहे हैं, वहां बच्चे अगर हिन्दी में बोलते हैं तो उनपर फाइन लगाया जाता है। यहां पर हम हिन्दी दिवस मना रहे हैं। हमें यहां पर हिन्दी बोलने में शर्म का अनुभव होता है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशों में जाकर हिन्दी में बोलते हैं, लेकिन हम लोग अपनी सोसायटी में शर्मिंदगी महसूस करते हैं।’
14 सितंबर को ही याद आती है हिन्दी

प्रोफेसर सुख महेंद्र सिंह ने कहा कि हमारे बच्चे दून, नैनीताल और दिल्ली के इंटरनेशनल स्कूलों में पढ़ते हैं और आज हम यहां हिन्दी को परिमार्जित (refind) करने के लिए बैठे हैं। उन्होंने पीएचडी करवाने वाले और करने वालों पर भी कटाक्ष किया और कहा कि सरकार हिन्दी को प्रोत्साहन दे रही है। कितने लोग हैं जो हिन्दी में पीएचडी की थिसेज बनाते हैं और बनवाते हैं। इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। हम 14 सितंबर को हिन्दी के गुण गाते है और हिन्दी दिवस मानते हैं।’
हम अंग्रेजी के गुलाम हो गए हैं

साइंस फैकेल्टी के डीन यहीं नहीं रुके और उन्होंने आगे कहा कि हम लोग जब विदेश में जाते हैं तो वहां कहा जाता है कि नेटिव इंग्लिश स्पीकर से जंचवाइए। सच मानिये तो हम अंग्रेजी के गुलाम हो गए हैं। उन्होंने कहा कि एक बार हम नोएडा माल में गए थे वहां आइसक्रीम कहने से आइसक्रीम भी नहीं मिली हमने सोफ्टी कही तब जाकर हमें आइसक्रीम मिली तो हम कहां जा रहे ये हमें सूचना होगा।’
अपनी भाषा में विकसित होने में क्या दिक्कत है

प्रोफेसर ने आगे कहा कि चंद्रयान-3 और आदित्य एल-1 के लांच के समय यह सभागार भरा हुआ था। लोग एक दुसरे के ऊपर चढ़ने के प्रयास में थे, पर आज उसी यान की व्याख्या हिन्दी में की जा रही तो कुर्सियां खाली हैं। विदेशों में हमने जाकर देखा है। चाहे जापान हो या चाइना वहां अपनी भाषा पर गर्व करते हैं और उसी में शोध भी होता है तो हम अपनी भाषा से क्यों दिक्कत है।

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