वाराणसी. रमजान 2021 शुरू होने वाला है। माह-ए-रमजान (Mah e Ramzan) इस्लामिक कैलेंडर (Islamic Calender) का मुकद्दस महीना कहा जाता है। इस महीने में मुसलमान सुबह सूरज निकलने से लेकर सूरज डूबने तक रोजा (व्रत) रखते हैं। इस बार रमजान 13 या 14 अप्रैल से शुरू हो जाएगा। इस्लाम में मान्यता है की रमजान में रहमत (ईश्वर की दया) के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और जहन्नुम (नरक) के दरवाजे बंद कर शैतानों को जंजीरों में जकड़ दिया जाता है। रमजान के महीने में की जाने वाली इबादतों (प्रार्थना) का सवाब (पूण्य) कई गुना बढ़ जाता है। एक महीने तक रोजे रखने के बाद ईद की खुशियां मनाई जाती हैं।
रमजान क्या है
माह ए रमजान क्या है। रमजान इस्लामिक साल का नवां महीना होता है। यह शाबान महीने के बाद आता है। इस्लाम में इस महीने से ज्यादा मुबारक दूसरा कोई महीना नहीं। इस्लामिक एहकामात के मुाताबिक रोजे अदायगी इसी महीने में रखी गई। रोजा इस्लाम के पांच फर्ज में से एक है। यह हर बालिग मुसलामान पर फर्ज है। इस माह में इबादत के नियम कड़े होते हैं। मान्यता है कि इस महीने में इबादत का सवाब भी आम दिनों की अपेक्षा 70 गुना बढ़ा दिया जाता है।
रमजान का अर्थ
रमजान का क्या मतलब है। रमजान का शाब्दिक अर्थ (Ramzan Meaning) शब्दकोश में पिघलने का होता है। कहा जाता है कि रमजान के महीने में जब इंसान इबादत कर दुआ करता है तो वह कबूल होती है और गुनाह पिघलकर अपना वजूद खत्म कर देते हैं। आदमी पाक साफ हो जाता है उसकी माफी हो जाती है। इसलिये इस महीने का नाम रमजान पड़ा। रमजान और रोजे में फर्क है।
रमजान का इतिहास
रमजान उपवास और प्रार्थना के साथ आत्मनिरीक्षण करने का महीना है। इस महने में न इबादतों का काफी महत्व है और यह गुनाहों की माफी का महीना कहा जाता है। यह इस्लाम के पांच स्तंभ, शहादा (कलमा), नमाज, रोजा, जकात और हज में से एक है। इसका जिक्र कुरआन में आया है। कहा जाता है कि इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक सन दो हिजरी में अल्लाह के हुक्म से मुसलमानों पर रोजे फर्ज किये गए थे। इसी महीने में कुरआन नाजिल (प्रकट) हुआ था। कहा जाता है कि रमजान के आखिरी हिस्से में 21, 23, 25, 27 और 29 में से कोई एक रात लैलतुल कद्र होती है। इसी दिन कुरआन को नाजिल किया गया था।
रोजा क्या है
रमजान पूरे महीने को कहते हैं जबकि इस महीने में रोजाना पालन किये जाने वाले व्रत को रोजा कहते हैं। इस्लाम में रोजा एक फर्ज इबादत है। हर सेहतमंद (बालिग) मुसलमान के लिये यह अनिवार्य है। चूंकि इस्लामिक महीने चांद के आधार पर तय होते हैं इसलिये एककाध रोजे कम ज्यादा हो सकते हैं।
तरावीह क्या है
तरावीह भी रमजान की इबादत का एक हिस्सा है। तरावीह वो नमाज होती है जो सिर्फ रमजान में ही अदा की जाती है। यह 20 रकअत की होती है। लम्बी नमाज होने के नाते ही 4 रकअत के बाद थोड़ा लमहा बैठकर राहत का होता है। इसे तरवीहा कहते हैं। तरवीहा का बहुवचन होता है ‘तरावीह’। तरावीह का अर्थ होता है लम्बी नमाज।
सहरी क्या है
रोजा सहर के वक्त फज्र से शुरू होकर शाम को सूर्योदय के बाद मगरिब की अजान तक होता है। सहर का अर्थ होता है सुबह। उस वक्त हम रोजे की नीयत कर मामूली रूप से रस्म अदायगी के तौर पर कुछ खाते हैं। यही सहरी खा लेना है। सहरी का वक्त फज्र क नमाज का वक्त शुरू होने तक होता है।
इफ्तारी क्या है
इफ्तार का अर्थ शब्दकोश के मुताबिक किसी बंदिश को खोलना है। रमजान के रोजों में दिन भर खाने-पीने की बंदिशें होती हैं। शाम को मगरिक की अजान होते ही ये बंदिश खत्म हो जाती है। इसलिये इसे इफ्तारी कहा जाता है। खजूर से इफ्तार करने को अफजल (प्राथमिकता) माना जाता है।
रमजान में सवाब (पुण्य)
रमजान का महीना मुसलमानों के लिये सबसे ज्यादा सवाब का महीना होता है। दूसरे दिनों में जो नेक अमल (सद्कर्म) किये जाते हैं उसके मुकाबले में रमजान में नेकियों का सवाब 70 गुना बढ़ा दिया जाता है। फर्ज इबादतों (फर्ज नमाज) का सवाब 70 गुना बढ़ जाता है तो सुन्नत और नफ्ल इबादतों का सवाब फर्ज के बराबर कर दिया जाता है।
रोजा राने से छूट किसे
बीमार को या फिर जिसकी बीमारी बढ़ने का डर हो उसे रोजे रखने से छूट मिलती है। इसके अलावा गर्भवती महिला, बच्चे को दूध पिलाने वाली मां और बहुत अधिक वृद्घ को इससे छूट रहती है।
इस्लामिक महीनों के नाम
मुहर्रम, सफ़र, रबी-उल-अव्वल, रबी उल-सानी / रबी उल-आख़िर, जमादिल-अव्वल, जमादी-उल-आख़िर, रजब, शाबान, रमज़ान, शव्वाल, ज़िल्काद, ज़िल्हिज्ज
(मुफ्ती हाारून रशीद नक्शबंदी, इमाम उस्मानिया मस्जिद, वाराणसी)