कांग्रेस के लिए यह चुनाव हार व जीत के साथ प्रियंका गांधी की राजनीति में इंट्री के लिए भी जाना जायेगा। राजनीति में पहली बार प्रियंका गांधी की अधिकारिक तौर पर इंट्री हुई है। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी को पूर्वी यूपी की कमान सौंपी गयी थी। प्रियंका गांधी के आने से कांग्रेस कार्यकर्ता में जबरदस्त उत्साह आ गया था। कार्यकर्ता इतना अधिक उत्साहित हो गये थे कि उन्होंने प्रियंका गांधी को वाराणसी से चुनाव लडऩे का आमंत्रण दिया था। प्रियंका गांधी ने खुद कई बार मीडिया के सामने बनारस से चुनाव लडऩे की इच्छा जतायी थी। कांग्रेस प्रत्याशी को जिताने के लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी देश भर में तूफानी दौरे कर रहे थे ऐसे में राहुल गांधी के पास अमेठी में प्रचार करने का समय नहीं था। प्रचार की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी ने उठायी थी यह पहली बार नहीं था इससे पहले भी प्रियंका गांधी ने राहुल गांधी के लिए चुनाव प्रचार किया था। चुनाव परिणाम आने से साफ हो गया कि राहुल गांधी को अपने सबसे बड़े गढ़ अमेठी में शिकस्त मिली है। बड़ा सवाल यह है कि जब राहुल व प्रियंका मिल कर अमेठी नहीं बचा पाये तो क्या वाराणसी सीट का परिणाम बदल सकते थे। पीएम नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वाराणसी संसदीय सीट से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ती तब क्या होता। यह ऐसा सवाल है, जिसका भविष्य में कभी मिल सकता है लेकिन अब मिलना बहुत कठिन है।
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प्रियंका गांधी ने यूपी में की थी 26 रैलिया,97 कांग्रेस प्रत्याशी को मिली हार
कांगे्रस की राष्ट्रीय महासचिव व पूर्वी यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी ने प्रदेश में 26 रैलियां की थी जिसमे से 97 प्रतिशत जगहों पर कांग्रेस को हार मिली है। प्रियंका गांधी की नाकामयाबी के पीछे कांग्रेस की रणनीति को भी बड़ा जिम्मेदार माना जा सकता है। लोकसभा चुनाव के कुछ समय पहले ही प्रियंका गांधी को इंट्री दी गयी थी जिससे उनके पास प्रचार के लिए अधिक समय नहीं मिल पाया था जितना समय मिला उतने में वह जनता तक अपनी बात पहुंचाने में नाकामयाब रही।
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कांगे्रस की राष्ट्रीय महासचिव व पूर्वी यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी ने प्रदेश में 26 रैलियां की थी जिसमे से 97 प्रतिशत जगहों पर कांग्रेस को हार मिली है। प्रियंका गांधी की नाकामयाबी के पीछे कांग्रेस की रणनीति को भी बड़ा जिम्मेदार माना जा सकता है। लोकसभा चुनाव के कुछ समय पहले ही प्रियंका गांधी को इंट्री दी गयी थी जिससे उनके पास प्रचार के लिए अधिक समय नहीं मिल पाया था जितना समय मिला उतने में वह जनता तक अपनी बात पहुंचाने में नाकामयाब रही।
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