डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी वाराणसी. बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी की फ़िज़ा में होली का खुमार चढ़ने लगा है। काशीवासियों को इंतजार है तो अमला एकादशी (रंगभरी एकादशी) का जब बाबा विश्वनाथ, मां गौरा का गौना करा कर घर ले जाएंगे और इस दौरान शिवभकतों को मिलेगा शिव परिवार संग होली खेलने का मौका। साल में यह एक मात्र अवसर होता है जब बाबा विश्वनाथ भक्तों का दर्शन करने, उनका साथ पाने को निकलते हैं। यह अवसर आता है फाल्गुन शुक्ल एकदाशी को जिसे अमला एकादशी (रंगभरी एकादशी) कहा जाता है। इस महा उत्सव के लिए विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉ कुलपति आवास पर तैयारी अंतिम दौर में है। डॉ तिवारी ने पत्रिका से खास बातचीत में बताया कि इस बार बाबा रानी रंग की बगलबंदी, खादी की लकदक धोती और दोपट्टे में निकलेंगे गौने को। वहीं मां गौरा को चुनरी पहनाई जाएगी। गौना की बारात रंगभरी एकाशी 26 फरवरी सोमवार की शाम चार बजे महंत आवास से निकलेगी। अबीर गुलाल संग सूखी होली खेली जाएगी, इसी दिन से होली की शुरूआत होगी। खास यह कि इस बार रंगभरी एकादशी सोमवार को पड़ रही है ऐसे में इसका महत्व और भी बढ़ जाता गया है।
ड़ॉ तिवारी ने पत्रिका को बताया कि बाबा के गौने के लिए शिवाला, सिंहासन और रजत पालकी तैयार हो गई है। किशन दर्जी को बाबा की पोशाक सिलने को दे दिया गया है। बाबा परंपरागत रूप से खादी का ही वस्त्र धारण करेंगे। बाबा का साफा परंपरागत रूप से हाजी गयासुद्दीन लाएंगे। वह कई वर्षों से पूरी श्रद्धा के साथ बाबा के लिए राजशाही साफा (पगड़ी) मुफ्त भेंट करते हैं। उन्होंने बताया कि गौरा के आभूषण की साफ सफाई भी हो चुकी है। रजत पालकी, शिवाला और सिंहास को भी कुशल कारीगरों ने मांज कर चमका दिया है। अमला एकादशी को महंत परिवार की ओर शिवांजलि का भी आयोजन होगा, जिसके लिए कलाकारों के चयन की प्रक्रिया अंतिम दौर में है। वैसे शिवांजलि में मुख्य आकर्षण मालिनी अवस्थी ही होंगी। उन्हें न्योता मैं खुद भेजूंगा।
महंत डॉ तिवारी ने बताया कि वर्ष में एक यही मौका होता है जब भक्त बाबा का दर्शन करने नहीं आते बल्कि इसके उलट बाबा भक्तों का दर्शन करने निकलते हैं। ऐसे में बाबा विश्वनाथ के गर्भ गृह में शिवाला सजाया जाता है। वहीं बाबा का रजत सिंहासन रखा जाता है। यह शिवाला और सिंहासन महंत परिवार से जाता है। गौना के लिए बाबा विश्वनाथ, मां गौरा और मां की गोद में प्रथमेश गणेश होंगे। यह रजत प्रतिमा है जिस चल प्रतिमा कहा जाता है। बाबा की अचल प्रतिमा महंत आवास पर रहती है। वहां सुबह से ही उनका पूजन अर्चन शुरू हो जाएगा। रजत अचल प्रतिमा को रजत पालकी में रख कर महंत आवास से गौना बारात निकालेगी जो मंदिर के गर्भ गृह तक जाएगी। उस दिन बाबा सपरिवार भक्तों संग होली खेलेंगे। यह सूखी होली होती है अबीर गुलाल के साथ। यह परंपरा 350 साल से अनवरत महंत परिवार की ओर से जारी है। इस दिन समूचे काशीवासियों की धूम होगी। माना जाता है कि बाबा अपने सारे भक्तों से मिलेंगे ऐसे में हर भक्त इस मौके को गंवाना नही चाहता। इसका खास महत्व भी है। हो भी क्यों न आखिर वर्ष में एक बार ही तो बाबा अपनों के बीच होते हैं।
उन्होंने बताया कि पहले जब मंदिर का अधिग्रहण नहीं हुआ था तब हर साल अमला एकादशी से पूर्व मंदिर का रंग रोगन हुआ करता था। पूरे मंदिर परिसर क्षेत्र को झाड़-फानूस से सजाया जाता रहा। लेकिन अब मंदिर के सरकारीकरण के बाद से यह परंपरा भी समाप्त हो गई है। कहा कि यह पूरा आयोजन महंत परिवार ही करता है, इसके लिए शासन-प्रशासन की कोई मदद नहीं मिलती। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक व्यवस्था ने सारी परंपराओं को ध्वस्त कर दिया है। महाशिवरात्रि को भी अब परंपरा का निर्वहन नहीं किया जाता।
Hindi News / Varanasi / रानी रंग की बगलबंदी, खादी की लकदक धोती और दुपट्टे में गौने को निकलेंगे बाबा विश्वनाथ