वाराणसी

70 वां गणतंत्र दिवसः लोक गायकी के सरताज हीरालाल को जीवन की सांझ में मिला पद्न पुरस्कार

सामान्य से परिवार के हीरालल की गायकी में मिलती है लोक संस्कृति संग शास्त्रीयता की गंध।

वाराणसीJan 26, 2019 / 04:14 pm

Ajay Chaturvedi

लोक गायक हीरालाल यादव

वाराणसी. काशी की माटी के लाल, काशी की लोक संस्कृति को जीने वाले लोक गायकी के सरताज हीरालाल यादव को 70वें गणतंत्र दिवस पर जीवन की सांझ में मिला देश के प्रतिष्ठित पद्म सम्मान। वैसे तो काशी के नाम इस बार चार-चार पद्म सम्मान की घोषणा की गई है। लेकिन उन सब में हीरालाल वो हस्ती हैं जिनके अपनेपन का हर शख्स कायल है। इनके कंठ में वो कशिश व मधुरता है कि एक बार जो इन्हें सुन ले वो इनका कायल हुए बिना रह नहीं सकता। शिक्षा और संस्कृति की राजधानी काशी की चार विभूतियों के नाम की घोषणा पद्न सम्मान के लिए होना खासा मायने रखता है। यह काशी के लिए गौरव की बात है।

05 वर्ष की उम्र से ही शुरू कर दी थी बिरहा गायकी
लोक गायकी के सरताज हीरालाल इन दिनों काफी अस्वस्थ चल रहे है। वो ठीक से बोल भी नहीं पा रहे हैं। चौकाघाट स्थित आवास पर लेटे हीरालाल पुरस्कार के घोषणा की सूचना मिलते ही उठे। अपनी जन्म व कर्मभूमि को प्रणाम किया। 1950 के दशक से पूर्वांचल में लोक गायकी में हीरा और बुल्लू की चर्चित जोड़ी रही। हीरालाल की गायकी में शास्त्रीय संगीत का भी पुट मिलता है। लोक गायक डॉ. मन्नू यादव ने इस पर प्रसन्नता जताई। होरी खलीफा और गाटर खलीफा के शिष्य गुरु रम्मन दास अखाड़े से जुड़े लोक गायक हीरालाल ने 05 वर्ष की उम्र से बिरहा गायन शुरू कर दिया था। काशी रत्न और मंजुश्री से अलंकृत 82 वर्षीय होरी लाल ने सात दशक से ज्यादा समय तक संगीत की सेवा कर दर्जनों लोक गायकों की शिष्य परंपरा तैयार की है। इस सम्मान की जानकारी होने पर उनके बेटे रामजी और भगत की आंखों से आंसू छलक पड़े।
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हीरालाल के गायकी के बोल
इस मान की सूचना पर लोक गायकी के पितामह हीरालाल यादव ने गुनगुनाया, ”आजाद वतन भारत की धरा हरदम कुर्बानी मांगेले, ”बुड्ढों से सबक, अनुभव मांगे और जवानों से जवानी मांगेले. महिला टोली से बार-बार झांसी वाली रानी मांगेले…।
 

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