वाराणसी

असली बनारसी साड़ी की पहचान होगी और आसान, आईआईटी बीएचयू का इनबिल्ट विविंग लोगो क्यूआर कोड रोकेगा डुप्लीकेसी

क्यूआर कोड और लोगो बताएगा असली हैंडलूम बनारसी साड़ियों की पहचान। आईआईटी (बीएचयू) की तकनीक को अंगिका सहकारी समिति ने बनारसी साड़ियों पर किया प्रयोग।

वाराणसीJul 26, 2021 / 12:09 pm

रफतउद्दीन फरीद

असली बनारसी साड़ी

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

वाराणसी. महंगी बनारसी साड़ी के नाम पर नकली साड़ियां देकर अक्सर ग्राहक ठगे जाते हैं। पर अब अब असली बनारसी साड़ियों की पहचान बेहद आसान होगी। इसके लिये आईआईटी बीएचयू ने हथकरघा साड़ी में असली और नकली की पहचान के लिये नई तकनीक विकसित की है, जिसमें वीविंग लोगो से लेकर रेशम चिन्ह, जीआई समेत बनारसी साड़ी के असली होने की सारी डिटेल होगी। इसे स्कैन करते ही सबकुछ मोबाइल पर होगा।


भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय (आईआईटी-बीएचयू) के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग (औद्योगिक प्रबंधन) की रिसर्च टीम ने हथकरघा साड़ी के लिये ये तकनीक बनाई है। इसमें साड़ी का विवरण युक्त बुना हुआ क्यूआर कोड, हथकरघा लोगो, रेशम चिह्न, बनारस भौगोलिक संकेत (जीआई) लोगो इनबिल्ट होगा। शोधकर्ताओं के अनुसार, साड़ी में इनबिल्ट वीविंग लोगो हस्तनिर्मित हथकरघा साड़ी की शुद्धता को प्रमाणित करेगा और हथकरघा व उसके उत्पादों के दुरुपयोग को रोकने में कारगर साबित होगा।


छापा नहीं बुना जाएगा स्कैन कोड

मैकेनिकल इंजीनियरिंग प्रोफेसर डॉ. प्रभाष भारद्वाज ने बताया कि उनकी टीम के शोधार्थी द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, इस उद्योग में आईटी आधारित इन्नोवेशंस को शामिल करने की बहुत संभावनाएं हैं। अभी हमारी शोध टीम ने क्यूआर कोड व साड़ी पर लोगो बुनाई की तकनीक तैयार की है। कोई भी साड़ी निर्माता अपनी फर्म और निर्माण के विवरण के साथ साड़ी पर क्यूआर कोड बुन सकता है। इसे ग्राहक अपने मोबाइल फोन से स्कैन कर के निर्माता का स्थान, निर्माण की तारीख आदि उत्पाद के बारे में सारी जानकारी ले सकता है। बनारस हथकरघा उद्योग के विकास पर काम कर रहे मैकेनिकल इंजीनियरिंग के रिसर्च स्कॉलर श्री एम. कृष्ण प्रसन्ना नाइक ने बताया कि बनारस हैंडलूम उद्योग जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है उनमें मार्केटिंग प्रमुख है। उनके अध्ययन के अनुसार, अधिकांश ग्राहकों को हथकरघा और पावरलूम साड़ी के बीच अंतर के बारे में जानकारी नहीं। हथकरघा लोगो व जीआई लोगो के बारे में सिर्फ सीमित ग्राहक ही जानते हैं। उनके अध्ययन के अनुसार ग्राहक इस बात से भी अनजान है कि विक्रेता साड़ियों पर असली हैंडलूम मार्क डुप्लिकेट। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए रिसर्च स्कॉलर एम. कृष्ण प्रसन्ना नाइक ने साड़ियों पर ही लोगो और क्यूआर कोड की तकनीक का इजाद किया।

 

 

नहीं कम होगी खूबसूरती

उन्होंने बताया कि पूरी तरह से डिज़ाइन की गई साड़ी में 6.50 मीटर लंबाई होती है जिसमें 1 मीटर ब्लाउज के टुकड़े शामिल होते हैं। साड़ी का हिस्सा पूरा होने के बाद, ब्लाउज के बुनने से पहले सादे कपड़े का एक हिस्सा 6-7 इंच का होता है। इस पैच में क्यू आर कोड और अन्य तीन लॉग डिज़ाइन किए गए हैं। इन लॉग डिजाइनों को जगह-जगह लगाने से कपड़े की मजबूती और खूबसूरती कम नहीं होगी और साड़ी का लुक भी बरकरार रहेगा।


डिजाइनर ने शुरू किया साड़ी में प्रयोग

अंगिका सहकारी समिति, वाराणसी के अध्यक्ष अमरेश कुशवाहा और डिजाइनर अंगिका ने पहली बार साड़ियों में इस क्यूआर कोड तकनीक का प्रयोग भी शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि जीआई और हथकरघा लोगो के सही उपयोग के अभाव में ग्राहक हथकरघा और हैंडलूम पर बुनी साड़ियों में अंतर नहीं कर पाता। इसलिए, हम अपनी साड़ियों में इस क्यूआर कोड और हैंडलूम मार्क लॉग को इनबिल्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। यह हमारे स्थानीय और विदेशी ग्राहकों को हथकरघा उत्पाद और पावरलूम उत्पादों के बीच अंतर करने में मदद करेगा। टीम ने इनबिल्ट क्यूआर कोड और हथकरघा चिह्न लोगो के साथ सफलतापूर्वक एक साड़ी तैयार की है।

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