वाराणसी

Sharadiya Navratri में इन देवी के दर्शऩ मात्र से सभी प्रकार के दुःखों का होता है नाश

Sharadiya Navratri-काशी में इन माता के दर्शन का है विशेष महत्व-भगवान शिव ने इन्हीं माता की तपस्या कर पाई थीं सभी सिद्धियां-माता के प्रभाव से ही भोलेनाथ को मिला था अर्द्धनारीश्वर स्वरूप

वाराणसीOct 06, 2019 / 04:46 pm

Ajay Chaturvedi

Maa siddhidatri

वाराणसी. काशी जिसे धर्म नगरी की मान्यता है। मंदिरों का शहर है। लगभग सभी देवी-देवाताओं के विग्रह व मंदिर यहां मिलेंगे। इसी क्रम में देवी के दुर्गा स्वरूप हों या गौरी स्वरूप सभी नौ स्वरूपों का विग्रह मिलेगा। हर विग्रह के दर्शन की अलग विशेषता है। अगल मान्यता है।
Sharadiya Navratri नवात्रि के अंतिम नौवें दिन सिद्धदात्रि देवी यानी सिद्धमाता के दर्शऩ की मान्यता है। इन देवी का मंदिर मैदागिन क्षेत्र के गोलघर इलाके में स्थित है। नौवें व अंतिम दिन यानी सोमवार 7 अक्टूबर को इन मां का दर्शन पूजन होगा। इसके लिए मुंह अंधेरे से ही भक्तों की कतार लग जाती है। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं शक्तिस्वरूपा देवी की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं, जिसके प्रभाव से उनका स्वरूप अ‌र्द्धनारीश्वर का हो गया था। इस कारण वश काशी में इनके दर्शन का महत्त्व और भी ज़्यादा है। मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से दुखों का नाश हो जाता है।
इस संबंध में मंदिर के महंत बच्चा लाल मिश्रा ने पत्रिका को बताया कि नवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए नैवेद्य के रूप में नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करना चाहिए। इस प्रकार नवरात्र का समापन करने से इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवी सिद्धिदात्री मां सरस्वती का भी स्वरूप हैं, जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती हैं। वह बताते हैं कि सिद्ध माता मंदिर परिसर में पहुंचरा अम्बा और पंचमुखी महादेव का विग्रह भी है।
सिंह वाहिनी
मार्कण्डेय पुराण में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्व- ये आठ सिद्धियां बताई गई हैं। मां सिद्धिदात्री सिंह वाहिनी चतुर्भुजा तथा सर्वदा प्रसन्नवंदना हैं। उनका ध्यान हमारी शक्ति व साम‌र्थ्य को सृजनात्मक व कल्याणकारी कर्मो में प्रवृत्त करता है। देवी सहज प्रसन्न होकर भक्तों को सर्व सिद्धि प्रदान करती हैं, इसलिए शास्त्रों में उन्हें सिद्धिदात्रि नाम से पुकारा गया।

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