यह मंदिर वाराणसी में जैतपुरा इलाके में स्थित है। धर्म नगरी काशी में इसी मंदिर को बागीश्वरी देवी मंदिर की मान्यता भी प्राप्त है। मंदिर के पुजारी गोपाल मिश्र बताते हैं कि स्कंद माता का मंदिर पूरे भारत वर्ष में यहीं वाराणसी में ही है। इसके अलावा स्कंद माता का मंदिर नेपाल में ही मिलेगा। उन्होंने बताया कि भगवान शंकर के प्रथम पुत्र कार्तिकेय की माता यानी भगवती पार्वती के इस स्वरूप को ही स्कंद माता के रूप में मान्यता प्राप्त है।
उन्होंने बताया कि जिन्हें संतान सुख नहीं होता वह इन माता का दर्शऩ-पूजन करें तो उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। इसके अलावा बच्चों और युवाओं की शिक्षा में आने वाली बाधा को भी माता रानी दूर करती हैं।
इस मंदिर के प्रथम तल पर स्कंद माता का विग्रह है तो नीचे गुफा में बागीश्वरी माता का विग्रह है। इसके अलवा सिद्धि विनायक का भी मंदिर इस परिसर में है। बता दें कि इस मंदिर परिसर में शारदीय नवरात्र की षष्ठी तिथि से मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर विधिवत तीन दिनों तक पूजन-अर्चन होता है। इसकी तैयारी चल रही है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के अर्चक पद्म पुरस्कार से सम्मानित आचार्य देवी प्रसाद द्विवेदी के मुताबिक स्कंद माता का ध्यान इस मंत्र से किया जा सकता है… सिंहासन गता नित्यं पद्यान्वित कर द्वया। शुभ दास्तु महादेवी स्कंदमाता यशस्विनी।।
भगवती की शक्ति से उत्पन्न हुए सनत कुमार का नाम स्कंद है। स्कंद माता होने के कारण भगवती के इस रूप को स्कंदमाता कहा गया है। जो साधक भगवती स्कंद माता की साधना करता है, उसे दैहिक, दैविक, भौतिक कष्ट नहीं होता।
आचार्य द्विवेदी का मानना है कि स्कंद माता दरअसल आकाश तत्व की द्योतक हैं। नव दुर्गा में एक ओर चार कन्याएं हैं तथा बीच में स्कंद माता हैं। इनमें मातृत्व है। अर्थात यह सभी तत्वों की मूल बिंदु स्वरूप हैं। एक ओर भू जल, अग्नि तथा वायु में चार तत्व हैं। दूसरी ओर मन, बुद्धि चित्त, अहंकार ये चार तत्व लक्ष्य से आकाश जननी हैं। सब प्रकार के तत्वों का आधार बिंदु आकाश ही है। इसलिए स्कंद माता प्रकृति क्रियात्मक अंग हैं। आकाश तत्वात्मक हैं।