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वाराणसी

मुंशी प्रेमचंद ने समाज की विसंगतियों पर चलाई कलम, वो जाति-धर्म और आर्थिक विषमता की गांठों को तोड़ना चाहते थे

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद लमही महोत्सव-2022 के क्रम में संस्कृति विभाग,उत्तर प्रदेश और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की ओर से प्रेमचंद जयंती की पूर्व संध्या पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजित की गई। इस मौके पर वक्ताओं ने मुंशी जी को आदर्शोन्मुखी व्यक्तित्व का धनी बताया। कहा कि पत्रकार को कभी भी पक्षकार नहीं होना चाहिए।

वाराणसीJul 30, 2022 / 08:33 pm

Ajay Chaturvedi

मुंशी प्रेमचंद जयंती की पूर्व संध्या पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

मुंशी प्रेमचंद जयंती की पूर्व संध्या पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

वाराणसी. मुंशी प्रेमचंद एक साहित्यकार, पत्रकार और अध्यापक के साथ ही आदर्शोन्मुखी व्यक्तित्व के धनी थे। एक पत्रकार को कभी भी पक्षकार नहीं होना चाहिए, उसे अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए। प्रेमचन्द ने अपने को किसी वाद से जोड़ने की बजाय तत्कालीन समाज में व्याप्त ज्वलंत मुद्दों से जोड़ा। उनका साहित्य शाश्वत है और यथार्थ के करीब रहकर वह समय से होड़ लेती नजर आती हैं। ये कहना है चर्चित साहित्यकार व वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव का। उन्होंने ‘मुंशी प्रेमचंद लमही महोत्सव-2022’ के क्रम में संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में “प्रेमचंद: अध्यापक और पत्रकार” विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किए।
समाज की विसंगतियों पर प्रेमचंद कलम हमेशा चलाती रही

उन्होंने कहा कि मुंशी प्रेमचंद का समाज के अंतिम व्यक्ति से विशेष अनुग्रह था और समाज की विसंगतियों पर उनकी कलम हमेशा चला करती थी। उनकी कहानी, उपन्यासों और पटकथाओं में सामाजिक कुरीतियों पर करारा प्रहार होता था। पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि लमही, वाराणसी में जन्मे डाककर्मी के पुत्र मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य की नई इबारत लिखी। आज भी तमाम साहित्यकार व शोधार्थी लमही में उनकी जन्मस्थली की यात्रा कर प्रेरणा पाते हैं।
प्रेमचंद जाति-धर्म और आर्थिक विषमता की गांठों को तोड़ना चाहते थे

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. प्रणय कृष्ण ने बतौर मुख्य अतिथि एक अध्यापक और पत्रकार के रूप में प्रेमचंद की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। उन्होंने प्रेमचंद के जीवन की कुछ घटनाओं का भी जिक्र किया। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर बलिराज पांडेय ने कहा कि प्रेमचंद जातिधर्म और आर्थिक विषमता की गांठों को तोड़ना चाहते थे। संगोष्ठी में प्रो बसंत त्रिपाठी, प्रो. सुरेन्द्र प्रताप, प्रो नीरज खरे, डॉ. रविनन्दन सिंह ने विचार व्यक्त किया। मुख्यमंत्री अभ्युदय योजना के वाराणसी प्रभारी डॉ. आर एस चौहान ने कहा कि जन-जन तक प्रेमचंद पहुचे इसके लिए यूट्यूब और फेसबुक चैनल पर इस विचार गोष्ठी का लाइव प्रसार किया जा रहा है।
प्रेमचंद एक असाधारण शिक्षक थे

अतिथियों का स्वागत करते हुए क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र के प्रभारी सुभाष चंद्र यादव ने कहा कि प्रेमचंद न सिर्फ एक साहित्यकार बल्कि एक कुशल पत्रकार भी थे। विषय प्रवर्तन करते हुए काशी विद्यापीठ हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. निरंजन सहाय ने कहा कि शिक्षक असाधारण होता है। प्रेमचंद एक असाधारण शिक्षक थे। प्रेमचंद के बहुत सारे आयाम है, जिसपर प्रकाश डालने की जरूरत है। प्रेमचंद को केवल साहित्यकार ही नहीं बल्कि अध्यापक के रूप में भी उनकी जीवनी को पढ़ा जाना चाहिए। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए पत्रकारिता संस्थान के निदेशक प्रो अनुराग कुमार ने कहा कि प्रेमचंद ने कभी भी अपनी लेखनी से समझौता नहीं किया। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों और समसामयिक मुद्दों को अपनी लेखनी के केन्द्र में रखा। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रीति ने किया।

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