हबीब बार्बर में काम करने वाले साजिद ने बताया कि वह कोलकाता में रहते हुए पढ़ाई करता था। उस समय दोस्तों के साथ शौक में कांवड़ यात्रा की थी। कांवड़ यात्रा के दौरान पता चला था कि पैरों में कितना दर्द होता है। पैरों में छाले पड़ जाते हैं। उसी समय मन में यह ठान लिया था कि भविष्य में मौका मिला तो कांवरियों की सेवा जरूर करेंगे। पिछले साल से ही वह कांवरियों की सेवा में जुट गये हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार को वह अपना शिविर लगाते हैं यहां पर आने वाले कांवरियों को मिनीरल वाटर से पैरा साफ किया जाता है और शुद्ध सरसों के तेल से मसाज करते हैं ताकि उनके पैरों का दर्द कम हो जाये। कांवरियों के केश काटने से लेकर शेविंग करने का भी काम भी करते हैं। सारी सेवा नि:शुल्क होती है और कांवरियों से कोई पैसा नहीं लिया जाता है। साजिद इकबाल ने बताया कि मैंने कांवड़ के दौरान पैरों के दर्द और छाले को महसूस किया है इसलिए गंगा-जमुनी तहजीब के तहत कांवरियों की सेवा करके उनका दर्द कम करने का प्रयास करता हूं।
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प्रयागराज के संगम से गंगाजल लेकर पैदल ही लगभग 120 किलोमीटर की यात्रा करके कांवरिये जल चढ़ाने के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर आते हैं। पैदल चलने के दौरान कांवरियों के पैर में बहुत दर्द होता है। छाले तक पड़ जाते हैं, जिससे एक कदम भी चलना कठिन हो जाता है। ऐसे में एक मुस्लिम युवक ने उनके दर्द को समझा और सेवा की है। देश में गंगा-जमुनी तहजीब की इससे बड़ी मिसाल और क्या हो सकती है।
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