18 रुपए की सैलरी पर बच्चों को पढ़ाते थे मुंशी प्रेम चंद्र
प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था। उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को बनारस शहर से चार मील दूर लमही नामक गांव में हुआ था। अपने मित्र मुंशी दयानारायण निगम के सुझाव पर उन्होंने धनपत राय की बजाय प्रेमचंद उपनाम रख लिया. उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल था, जो डाकघर में मुंशी का पद संभालते थे। वे शुरुआती दिनों में चुनार में शिक्षक थे. तब उन्हें 18 रुपये तनख्वाह मिला करती थी. वे हिंदी के साथ-साथ उर्दू, फारसी और अंग्रेजी पर भी बराबर की पकड़ रखते थे।
प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था। उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को बनारस शहर से चार मील दूर लमही नामक गांव में हुआ था। अपने मित्र मुंशी दयानारायण निगम के सुझाव पर उन्होंने धनपत राय की बजाय प्रेमचंद उपनाम रख लिया. उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल था, जो डाकघर में मुंशी का पद संभालते थे। वे शुरुआती दिनों में चुनार में शिक्षक थे. तब उन्हें 18 रुपये तनख्वाह मिला करती थी. वे हिंदी के साथ-साथ उर्दू, फारसी और अंग्रेजी पर भी बराबर की पकड़ रखते थे।
ये हैं उनकी चर्चित कहानियां
मंत्र, नशा, शतरंज के खिलाड़ी, पूस की रात, आत्माराम, बूढ़ी काकी, बड़े भाईसाहब, बड़े घर की बेटी, कफन, उधार की घड़ी, नमक का दरोगा, पंच फूल, प्रेम पूर्णिमा, जुर्माना आदि।
मंत्र, नशा, शतरंज के खिलाड़ी, पूस की रात, आत्माराम, बूढ़ी काकी, बड़े भाईसाहब, बड़े घर की बेटी, कफन, उधार की घड़ी, नमक का दरोगा, पंच फूल, प्रेम पूर्णिमा, जुर्माना आदि।
प्रेमचंद्र की ये रचनाएं दुनिया भर में हो गई थी मशहूर
मुंशी प्रेमचंद्र ने लगभग 300 कहानियां और 14 बड़े उपन्यास लिखे। सन् 1935 में मुंशी जी बहुत बीमार पड़ गए और 8 अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। उनके रचे साहित्य का अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में हो चुका है, जिसमें विदेशी भाषाएं भी शामिल है। अपनी रचना ‘गबन’ के जरिए से एक समाज की ऊंच-नीच, ‘निर्मला’ से एक स्त्री को लेकर समाज की रूढ़िवादिता और ‘बूढ़ी काकी’ के जरिए ‘समाज की निर्ममता’ को जिस अलग और रोचक अंदाज उन्होंने पेश किया। उसकी तुलना नही है। इसी तरह से पूस की रात, बड़े घर की बेटी, बड़े भाईसाहब, आत्माराम, शतरंज के खिलाड़ी जैसी कहानियों से प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य की जो सेवा की है, वो अद्भुत है।
मुंशी प्रेमचंद्र ने लगभग 300 कहानियां और 14 बड़े उपन्यास लिखे। सन् 1935 में मुंशी जी बहुत बीमार पड़ गए और 8 अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। उनके रचे साहित्य का अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में हो चुका है, जिसमें विदेशी भाषाएं भी शामिल है। अपनी रचना ‘गबन’ के जरिए से एक समाज की ऊंच-नीच, ‘निर्मला’ से एक स्त्री को लेकर समाज की रूढ़िवादिता और ‘बूढ़ी काकी’ के जरिए ‘समाज की निर्ममता’ को जिस अलग और रोचक अंदाज उन्होंने पेश किया। उसकी तुलना नही है। इसी तरह से पूस की रात, बड़े घर की बेटी, बड़े भाईसाहब, आत्माराम, शतरंज के खिलाड़ी जैसी कहानियों से प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य की जो सेवा की है, वो अद्भुत है।