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वाराणसी

इस मंदिर में है महादेव का ससुराल, दर्शन करने से संतान होने की मनोकामना होती है पूर्ण

माता सती के भाई के साथ खुद महादेव रहते हैं विराजमान, सावन में भगवान शिव के यहां पर कल्पवास करने की भी है मान्यता

वाराणसीJul 24, 2019 / 02:35 pm

Devesh Singh

Sarang Nath Mahadev Temple

Sarang Nath Mahadev Temple

वाराणसी. शिव भक्तों के लिए सावन बेहद महत्वपूर्ण होता है। महाशिवरात्रि व सावन में पूजा करके महादेव का जल्दी प्रसन्न किया जा सकता है। भगवान शिव की नगरी काशी की बात तो और भी निराली है। यहां के कण-कण में भगवान शंकर विराजमान रहते हैं। बनारस में ही एक ऐसा मंदिर है, जिसे महादेव का ससुराल कहा जाता है और यहां पर साले के साथ खुद महादेव अपने भक्तों को दर्शन देते हैं।
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Lord Shiva and mata Sati
IMAGE CREDIT: Patrika
कैंट रेलवे स्टेशन से लगभग सात किलोमीटर की दूर पर स्थित सारनाथ के पास ही सारंगनाथ मंदिर है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर को शिव का ससुराल माना जाता है। प्रचलित कहानी के अनुसार महादेव का विवाह राजा दक्ष की बेटी सती से हुआ था। सती के बड़े भाई ऋषि सारंग शादी के साथ वहां पर उपस्थित नहींं थे। जब ऋषि सारंग वापस लौटे तो उन्हें शादी की जानकारी हुई। ऋषि को पता चला कि उनकी बहन की शादी कैलाश पर रहने वाले औघड़ से की गयी है तो वह नाराज हो गये। उन्हें लगा कि उनके जीजा के पास ठीक से वस्त्र तक नहीं है। इसके बाद उन्होंने पता किया तो जानकारी मिली कि बहन सती व महादेव विलुप्त नगरी काशी में विचरण कर रहे हैं। इसके बाद सारंग ऋषि बहुत सा धन लेकर अपनी बहन से मिलने के लिए निकले थे। जहां पर आज सारंगनाथ का मंदिर है वहां पर पहुंचे तो थक जाने के कारण उन्हें नींद आ गयी। सारंग ऋषि ने सपना देखा कि काशी नगरी तो सोने से बनी हुई हे। इसके बाद उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और बहनोई के बारे में क्या-क्यो सोचने को लेकर उन्हें ग्लानी भी हुई। इसके बाद उन्होंने प्रण किया कि वह अब यही रह कर बाबा विश्वनाथ की तपस्या करेंगे।
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ऋषि के तप से प्रसन्न होकर महादेव ने सती के साथ दिया था दर्शन
ऋषि सारंग ने कठोर तप आरंभ कर दिया था। तपस्या करते उनके शरीर से लावे की तरह गोंद निकलने लगी थी लेकिन ऋषि ने अपनी तपस्या जारी रखी। सारंग ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने माता सती के साथ उन्हें दर्शन दिया था। इसके बाद महादेव ने सारंग ऋषि को साथ चलने को कहा। इस पर ऋषि ने कहा कि यह जगह बहुत अच्छी है इसलिए वह नहीं जाना चाहते हैं। इसके बाद महादेव ने सारंग ऋषि को आशीर्वाद देते हुए कहा था कि भविष्य में तुम सारंगनाथ के नाम से जाने जाओगे। कलयुग में तुम्हे गोंद चढ़ाने की परम्परा रहेगी। जा चर्म रोगी सच्चे मन से गोंद चढ़ायेगा उसे चर्म रोग से मुक्ति मिल जायेगी।
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सारंगनाथ मंदिर को कहते हैं महादेव का ससुराल
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सारंग ऋषि की भक्ति से प्रसन्न काशी विश्वनाथ ने यहां पर साले के साथ सोमनाथ रुप में विराजमान है। इस मंदिर में सारंगनाथ महादेव व बाबा विश्वनाथ की एक साथ पूजा होती है। मंदिर में एक ही जगह पर दो शिवलिंग है। कहा जाता है कि सारंगनाथ का शिवलिंग लम्बा है और सोमनाथ का गोला आकार में और ऊंचा है। धार्मिक मान्यता है कि यहां पर महाशिवरात्रि व सावन में दर्शन करने से चर्म रोग ठीक हो जाता है। विवाह के बाद यहां पर दर्शन करने से ससुराल और मायके का संबंध अच्छा बना रहता है। किसी दम्पत्ति का संतान नहीं हो रही है तो यहां पर दर्शन करने से संतान सुख मिलता है।
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