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ऋषि सारंग ने कठोर तप आरंभ कर दिया था। तपस्या करते उनके शरीर से लावे की तरह गोंद निकलने लगी थी लेकिन ऋषि ने अपनी तपस्या जारी रखी। सारंग ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने माता सती के साथ उन्हें दर्शन दिया था। इसके बाद महादेव ने सारंग ऋषि को साथ चलने को कहा। इस पर ऋषि ने कहा कि यह जगह बहुत अच्छी है इसलिए वह नहीं जाना चाहते हैं। इसके बाद महादेव ने सारंग ऋषि को आशीर्वाद देते हुए कहा था कि भविष्य में तुम सारंगनाथ के नाम से जाने जाओगे। कलयुग में तुम्हे गोंद चढ़ाने की परम्परा रहेगी। जा चर्म रोगी सच्चे मन से गोंद चढ़ायेगा उसे चर्म रोग से मुक्ति मिल जायेगी।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सारंग ऋषि की भक्ति से प्रसन्न काशी विश्वनाथ ने यहां पर साले के साथ सोमनाथ रुप में विराजमान है। इस मंदिर में सारंगनाथ महादेव व बाबा विश्वनाथ की एक साथ पूजा होती है। मंदिर में एक ही जगह पर दो शिवलिंग है। कहा जाता है कि सारंगनाथ का शिवलिंग लम्बा है और सोमनाथ का गोला आकार में और ऊंचा है। धार्मिक मान्यता है कि यहां पर महाशिवरात्रि व सावन में दर्शन करने से चर्म रोग ठीक हो जाता है। विवाह के बाद यहां पर दर्शन करने से ससुराल और मायके का संबंध अच्छा बना रहता है। किसी दम्पत्ति का संतान नहीं हो रही है तो यहां पर दर्शन करने से संतान सुख मिलता है।
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