21 वर्ष पूर्व पुनर्जीवित हुई चिता भस्म की होली
चिता भस्म होली के आयोजक व मणिकर्णिका घाट, वाराणसी,काशी,आनन्द कानन स्थित बाबा महामशान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर बताते हैं कि मान्यता है कि बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं। इनके स्नान के बाद सभी तीर्थ स्नान करके यहां से पुण्य लेकर अपने स्थान चले जाते हैं और वहां स्नान करने वालों को वो पुण्य बांटते हैं। बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महामशान पर आकर चिता भस्म से होली खेलते है। ये परम्परा अनादि काल से यहा भव्य रूप से मनायी जाती रही हैं। इस परम्परा को पुनर्जीवित किया बाबा महाश्मसान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने जो पिछले 21 वर्षों से इस परम्परा को भव्य रूप देकर दुनिया के कोने कोने तक पहुंचाया।
चिता भस्म होली के आयोजक व मणिकर्णिका घाट, वाराणसी,काशी,आनन्द कानन स्थित बाबा महामशान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर बताते हैं कि मान्यता है कि बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं। इनके स्नान के बाद सभी तीर्थ स्नान करके यहां से पुण्य लेकर अपने स्थान चले जाते हैं और वहां स्नान करने वालों को वो पुण्य बांटते हैं। बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महामशान पर आकर चिता भस्म से होली खेलते है। ये परम्परा अनादि काल से यहा भव्य रूप से मनायी जाती रही हैं। इस परम्परा को पुनर्जीवित किया बाबा महाश्मसान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने जो पिछले 21 वर्षों से इस परम्परा को भव्य रूप देकर दुनिया के कोने कोने तक पहुंचाया।
प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, दृश्य- अदृश्य, शक्तियों संग बाबा खेलते हैं चिता भस्म की होली
आयोजक कपूर ने बताया कि काशी में यह मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना(विदाई) करा कर अपने धाम काशी लाते हैं जिसे काशीवासी उत्सव के रूप में मनाते है। इस दिन से रंगों का त्योहार होली का प्रारम्भ माना जाता है। इस उत्सव में सभी शामिल होते हैं, जैसे देवी, देवता, यक्ष,गंदर्व, मनुष्य। जो इस होली में शामिल नहीं होते हैं वो हैं बाबा के प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, दृश्य- अदृश्य, शक्तियां जिन्हें बाबा ने स्वयं मनुष्यों के बीच जाने से रोक रखा है। लेकिन बाबा तो बाबा हैं वो कैसे अपनो की खुंशियों का ध्यान नहीं देते ऐसे में सब का बेडा पार लगाने वाले शिवशम्भु उन सभी के साथ चिता भस्म की होली खेलने मशान आते हैं और उस दिन से ही सम्पूर्ण विश्व को प्रंश्नता, हर्ष-उल्लास देने वाले इस त्योहार होली का आरम्भ होता हैं जिसमें दुश्मन भी गले मिल जाते हैं।
आयोजक कपूर ने बताया कि काशी में यह मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना(विदाई) करा कर अपने धाम काशी लाते हैं जिसे काशीवासी उत्सव के रूप में मनाते है। इस दिन से रंगों का त्योहार होली का प्रारम्भ माना जाता है। इस उत्सव में सभी शामिल होते हैं, जैसे देवी, देवता, यक्ष,गंदर्व, मनुष्य। जो इस होली में शामिल नहीं होते हैं वो हैं बाबा के प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, दृश्य- अदृश्य, शक्तियां जिन्हें बाबा ने स्वयं मनुष्यों के बीच जाने से रोक रखा है। लेकिन बाबा तो बाबा हैं वो कैसे अपनो की खुंशियों का ध्यान नहीं देते ऐसे में सब का बेडा पार लगाने वाले शिवशम्भु उन सभी के साथ चिता भस्म की होली खेलने मशान आते हैं और उस दिन से ही सम्पूर्ण विश्व को प्रंश्नता, हर्ष-उल्लास देने वाले इस त्योहार होली का आरम्भ होता हैं जिसमें दुश्मन भी गले मिल जाते हैं।
महाश्मशान नाथ और माता मशान काली की आरती के बाद बाबा व माता को चढाया जाता है चिता भस्म व गुलाल
इस पारंपरिक उत्सव को काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओ के बीच मनाया जाता हैं जिसे देखने दुनिया भर से लोग काशी आते हैं। इस अद्भुत,अद्वितीय,अकल्पनीय होली को देखकर,खेलकर दुनिया की अलौकिक शक्तियों के बीच अपने को खड़ा पाते हैं और जीवन के सास्वत सत्य से परिचित होकर बाबा में अपने को आत्मशांत कर शिवोहम् हो जाते हैं। इस आयोजन में गुलशन कपूर के द्वारा बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली ( शिव शक्ति ) का मध्याह्न आरती कर बाबा व माता को चीता भस्म व गुलाल चढाया जाता है। और होली प्रारंभ किया जाता हैं जिससे पुरा मंदिर प्रांगण और शवदाह स्थल भस्म से भर जाता है।
इस पारंपरिक उत्सव को काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओ के बीच मनाया जाता हैं जिसे देखने दुनिया भर से लोग काशी आते हैं। इस अद्भुत,अद्वितीय,अकल्पनीय होली को देखकर,खेलकर दुनिया की अलौकिक शक्तियों के बीच अपने को खड़ा पाते हैं और जीवन के सास्वत सत्य से परिचित होकर बाबा में अपने को आत्मशांत कर शिवोहम् हो जाते हैं। इस आयोजन में गुलशन कपूर के द्वारा बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली ( शिव शक्ति ) का मध्याह्न आरती कर बाबा व माता को चीता भस्म व गुलाल चढाया जाता है। और होली प्रारंभ किया जाता हैं जिससे पुरा मंदिर प्रांगण और शवदाह स्थल भस्म से भर जाता है।