वाराणसी. #Once upon a time: मोक्ष नगरी काशी में है बाबा विश्वनाथ का एक ऐसा स्वरूप जिसे उनके मस्तक की मान्यता हासिल है। यह मंदिर श्री काशी विश्वनाथ और महामृत्युंजय मंदिर के बीच दारानगर मोहल्ले में स्थित है। मान्यता है कि इन महादेव के दर्शऩ मात्र से जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिलती है। यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि पर आप के दर्शऩ का विशेष महात्म्य है। इनके दर्शऩ-पूजन से ही महाशिवरात्रि का पूजन सफल होता है।
यूं तो काशी में पग-पग पर शिवलिंग हैं, और हर शिवलिंग का अलग महात्म्य है। हर शिवलिग श्री काशी विश्वनाथ के किसी न किसी अंग से संबंधित है। किसी शिवलिंग में बाबा विश्वनाथ की आत्मा बसती है तो किसी को उनके मस्तक की मान्यता प्राप्त है। ऐसा ही एक शिवलिंग दारानगर इलाके में स्थित है। इस शिवलिंग को कृत्ति वासेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
महंत गौड़ ने बताया कि भगवान शंकर के 18 अंग (स्वरूपों) में एक मस्तक स्वरूप है यह कृत्ति वासेश्वर का शिवलिंग। यह एक मात्र ऐसा शिवलिंग है जहां 24 घंटे भोलेनाथ विराजमान रहते हैं। इनके दर्शऩ मात्र से जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है अर्थात भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्राचीन काल का काशी का यह सबसे बड़ा मंदिर है।
उन्होंने बताया कि मुगल बादशाह औरंगजेब काशी आया तो उसने सबसे पहले कृत्ति वासेश्वर मंदिर पर ही हमला किया। इसके बाद श्री काशी विश्वनाथ, बिंदु माधव और काल भैरव पर 8 बार हमला किया पर वहां उसे जीत हासिल नहीं हो सकी। कृत्ति वासेश्वर मंदिर पर अंग्रेजों ने भी कटार से 4 बार हमला किया ऐसा कहा जाता है। वैसे महंत सुधीर गौड़ कटार से शिवलिंग पर हुए वार के निशान भी दिखाते हैं। बताया कि विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण के चलते महादेव काशी छोड़ कर मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी में समाहित हो गए।
उन्होंने बताया कि महाशिवरात्रि और मास शिवरात्रि पर कृत्ति वासेश्वर महादेव के पूजन का विशेष महात्म्य है। महाशिवरात्रि पर महादेव के दर्शऩ से ही व्रत-पर्व का पुण्य लाभ प्राप्त होता है। इसके अलावा हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भी इन महादेव के दर्शऩ-पूजन की मान्यता है। वैसे यहां दक्षिण भारतीय भक्तों की भीड़ ज्यादा होती है।