हां! यह काशी नगरी ही है जहां मलमास में पंचक्रोशी यात्रा की जाती है। इस पंचक्रोशी यात्रा की शुरूआत होती है मणिकर्णिका तीर्थ पर गंगा की पावन जलधारा में स्नान व संकल्प के साथ। बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद से। इस यात्रा का पहला पड़ाव है कंदवा स्थित कर्दमेश्वर महादेव। पौराणिक कंदवा सरोवर में स्नान के पश्चात श्रद्धालु कर्दमेश्वर महादेव का दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। मान्यता है कि कर्दमेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से देव ऋण से मुक्ति मिल जाती है। इतना ही नहीं कथानक यह भी है कि माता सीता हरण के पश्चात जब प्रभु श्री राम ने महापंडित रावण का वध किया तो उन्हें ब्रह्म दोष लगा। ऐसे में जब वह लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे तो गुरु वशिष्ठ के आदेश पर वह सपरिवार काशी आए और कर्दमेश्वर महादेव का दर्शन किया। महादेव की सपत्नीक परिक्रमा की तब जा कर उन्हें ब्रह्म दोष से मुक्ति मिली। मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि तभी से यहां परिक्रमा की परंपरा चली आ रही है।
क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ सुभाष चंद्र यादव के मुताबिक कर्दमेश्वर मंदिर पंचरथ प्रकार का मंदिर है। इसका तल छंद योजना में एक चौकोर गर्भगृह, अंतराल और चतुर्भुजाकार अर्द्धमंडप है। मंदिर का निचला भाग अधिष्ठान, मध्य भित्ति क्षेत्र मांडोवर भाग है। इस पर अलंकृत ताखे बने हैं। ऊपरी भाग में नक्काशीदार कंगूरा वरादिका व आमलक आदि सजावटी शिखर है।
मान्यता है कि कर्दम ऋषि ने मंदिर में शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की। यही वजह है कि इसे कर्दमेश्वर महादेव नाम से जाना जाता है। कहा यह भी जाता है कि चंदेल राजाओं ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। कर्दम ऋषि ने यहां तपस्या की थी। उनकी तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए। मंदिर से जुड़े पुरनिये बताते हैं कि कर्दम ऋषि जब तपस्या में लीन थे तो किसी बात पर उनकी आंखों में आंसू आ गए और उन आंसुओं ने ही सरोवर का रूप ले लिया। ऐसे में मान्यता है कि सरोवर में जिसका प्रतिबिंब दिख जाए उसकी आयु बढ़ जाती है।