इसी कड़ी में प्रधानमंत्री को दो-दो बार कड़ी चुनौती देने वाले जमीनी नेता अजय राय को पहली बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महत्वपूर्ण ओहदा दिया गया है। बता दें कि राय का राजनीतिक सफर शुरू होता है 1993 से जब वह बीजेपी की बड़ी नेताओं में शुमार कुसुम राय के संपर्क में आए। साथ ही भाजयुमो के अध्यक्ष रामाशीष राय का भी समर्थन हासिल किया और वह अखिल भारतीयविद्यार्थी परिषद में शामिल हो गए। पहली बार 1996 में भाजपा ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपी और वह जिम्मेदारी थी कोलअसला में वामपंथ के गढ को ढाहने की। दरअसल कोलअसला सीट पर लगातार 9 बार से सीपीआई के बड़े नेता रहे ऊदल का कब्जा था। लेकिन अजय राय ने ऊदल के उस वर्चस्व को समाप्त कर पहली बार भगवा फहराया। जीत का अंतर भले ही महज 484 वोटों का था, लेकिन जीत के मायने बड़े थे। इस जीत के साथ राय ने अजय राय ने जहां पार्टी की झोली में एक नई विधानसभा डाल दी वहीं अपने अतीत की बाहुबली की छवि को भी काफी हद तक बदलने में कामयाब हुए। इन दोनों लिहाज से इसे बड़ी जीत बताया गया। अजय राय ने इसके बाद 2002 और 2007 दोनों चुनाव आसानी से जीत लिए। कोलअसला सीट अब अजय राय के नाम से जानी जाने लगी।
एक तरफ अजय राय सियासी सफर में आगे बढ़ते जा रहे थे। नित नई इबारत लिख रहे थे, वहीं वह अपने भाई अवधेश राय की हत्या का मुकदमा भी लड़ रहे थे। 23 नवंबर, 2007 को जब अजय राय वाराणसी कोर्ट में गवाही के लिए गए, तो बाहर निकलने के दौरान उनपर हमला हुआ। गोलियां चलीं, लेकिन अजय राय बच गए। बाद में अजय राय ने मुख्तार अंसारी, राकेश, कमलेश और भीम सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया था। तीन बार के विधायक अजय राय को अब सियासत में बड़ी भूमिका की तलाश थी और तभी 2009 लोकसभा चुनाव का वक्त आ गया। अजय राय बीजेपी से टिकट चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें अनसुना कर दिया। पार्टी ने तब डॉ मुरली मनोहर जोशी को वाराणसी से उम्मीदवार बना दिया गया। यह अजय राय को नागवार गुजरा और उन्होंने पार्टी छोड़ दी। साथ ही विधानसभा से भी इस्तीफा दे दिया।
भाजपा से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने सपा का दामन थाम। सपा ने उनके मन की मुराद पूरी कर दी। उन्हें डॉ जोशी और राय के कट्टर विरोधी मोख्तार अंसारी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए वाराणसी संसदीय सीट से मैदान उतार दिया। वह 2009 का वाराणसी का लोकसभा चुनाव भी यादगार बन गया। अंतिम वक्त में हुए मतों के ध्रुवीकरण में डॉ जोशी ने जीत हासिल की और बसपा प्रत्याशी मोख्तार दूसरे नंबर पर रहे। लेकिन यहां भी अजय राय ने अपनी हैसियत का अहसास करा दिया। उन्होंने तब बनारस के सीटिंग एमपी कांग्रेस के डॉ राजेश मिश्र को पीछे धकेल कर तीसरा स्थान हासिल कर लिया।
लोकसभा चुनाव हारने के बाद अजय राय फिर कोलअसला विधानसभा क्षेत्र की ओर लौउटे। इस सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमें अजय राय ने निर्दल दावेदारी पेश की। कारण लोकसभा हारने वाले अजय राय ने सपा का दामन भी छोड़ दिया। लेकिन कोलअसला में उनका दबदबा कायम रहा और उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में ही जीत हासिल कर ली। उसी वक्त कांग्रेस के दिग्गज राजेशपति त्रिपाठी ने उनसे संपर्क साधा। त्रिपाठी ने बेहतरीन तरीके से राय की पैरवी दिल्ली में गांधी परिवार में की। हालांकि बनारस कांग्रेस का एक खेमा अजय राय को कांग्रेस में आने से रोकने के लिए पूरी ताकत लगा चुका था। लेकिन तब तत्कालीन यूपी प्रभारी दिग्विजय सिंह के मार्फत औरंगाबाद हाउस यानी पंडित कमलापति त्रिपाठी के पौत्र ने सलीके से बिसात बिछाई जिसका नतीजा रहा कि अजय राय कांग्रेस के हो चले। यह दीगर है कि 2012 के विधानसभा चुनाव तक वह अस्थाई सदस्य के रूप में ही कांग्रेस से जुड़े रहे।
2012 के विधानसभा चुनाव से पहले लोकसभा व विधासभा क्षेत्रों का परिसीमन हुआ और कोलअसला का नाम बदलकर पिंडरा कर दिया गया। लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा और अजय राय ने पिंडरा विधानसभा सीट पर तिरंगा फहरा दिया। इसके बाद तो अजय राय पूरी तरह से कांग्रेसी हो गए। इसी दौरान 2014 का लोकसभा चुनाव आ गया और पार्टी ने उन्हें भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के खिलाफ टिकट देकर बड़ा दांव खेला। राय कांग्रेस के उम्मीदवार तो हो गए पर कांग्रेस ने राय के प्रबल प्रतिद्वंद्वी मोख्तार अंसारी से हाथ मिला लिया। बस क्या था, पूरे संसदीय क्षेत्र में अजय राय और मोख्तार अंसारी की दोस्ती के पर्चे चस्पा हो गए। नतीजा राय को अपनी बिरादरी और घर का भी विरोध झेलना पड़ा। नतीजा अजय राय बुरी तरह से हार गए। वह मोदी, और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के बाद तीसर नंबर पर रहे। लेकिन कांग्रेस के प्रति उनकी निष्ठा कम न हुई।
कांग्रेस नेता के तौर पर उन्होंने अक्टूबर 2015 में गंगा में गणेश प्रतिमा विसर्जन रोकने के सपा सरकार के निर्णय के विरुद्ध लड़ाई लड़ने वाले शंकराचार्य स्वरूपानंद के शिष्य अविमुक्तेश्वरानंद पर हुए लाठीचार्ज के विरुद्ध निकली संतों की न्याय यात्र में शामिल क्या हुए और उस न्याय यात्रा के समापन पर जो हिंसा हुई उसका जिम्मेदार सरकार ने अजय राय को ठहरा दिया और उन्हे रासुका के तहत निरुद्ध कर जिला बदर तक कर दिया। वह करीब 9 महीने तक जेल में रहे। फिर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अजय राय पर लगा रासुका हटा लिया और तब वो रिहा हो सके।
कांग्रेस के साथ वह लगातार सड़क पर नजर आए। हर छोटे-बड़े मुद्दों को उठा कर विरोध किया। नतीजा 2019 में फिर एक बार पार्टी ने उन पर भरोसा जताया और मोदी के खिलाफ दूसरी बार मैदान में उतार दिया। भले ही उन्हें इस बार भी हार का सामना करना पड़ा और वह पुनः तीसरे नंबर पर आए पर वोट प्रतिशत में इजाफा जरूर कर लिया। वह भी इतना की जितना पूर्वांचल के अन्य दिग्गज न कर सके। इसी का परिणाम कांग्रेस ने उन्हें दिया है प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महासचिव के सलाहकार के रूप में।