शिक्षण कार्य
केदारनाथ सिंह शोध कार्य के बाद शिक्षण कार्य में लग गए। उन्होंने पहले कुछ समय तक दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर में हिन्दी पढ़ायी। वह दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय गए जहां से हिन्दी भाषा विभाग के अध्यक्ष पद से रिटायर हुए।
अकाल में सारस, अभी बिल्कुल नहीं, टॉल्स्टॉय और साइकिल, जमीन पक रही है, यहां से देखो, कब्रिस्तान में पंचायत, बाघ, कल्पना और छायावाद, मेरे समय के शब्द, कल्पना और छायावाद, मेरे साक्षात्कार, आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान
उन्होंने समकालीन रूसी कविताएं, कविता दशक, शब्द (अनियतकालिक पत्रिका), ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन) का संपादन किया। वह अज्ञेय द्वारा सम्पादित तीसरा सप्तक के कवियों में से एक भी रहे।
केदारनाथ सिंह की कविताओं का अनुवाद तकरीबन सभी हिन्दुस्तानी जुानों के अलावा रसियन, अंग्रेजी, स्पेनिशऔर हंगेरियन आदि विदेशी भाषाओं में हुए और वह काव्य पाठ के लिये कई देश भी गए।
मशहूर कवि केदारनाथ सिंह को साल 2013 का प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। ये सम्मान पाने वाले वो हिन्दी के 10वें लेखक थे। उन्हें इसके पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार , कुमार आशान पुरस्कार (केरल से) व व्यास पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार के साथ ही कई और प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया था।
रहेगा सब जस का तस
सिर्फ मेरी दिनचर्या बादल जाएगी
साँझ को जब लौटेंगे पक्षी
लौट आऊँगा मैं भी
सुबह जब उड़ेंगे
उड़ जाऊंगा उनके संग…’ श्रद्धांजलि