नवरात्र के चौथे दिन यह पूजा की जाती है। आयोजको का कहना है कि जिस तरह से भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन उठा कर अपनी लीला दिखायी थी उसी तरह यह पूजा भी होती है। आरती के साथ अनुष्ठान की शुरूआत की जाती है। मंदिर में चारो तरफ ढोल-नगाड़े बजते रहते हैं। ठंड पानी से स्नान करन के बाद पुजारी घौलते घी से पुडिया निकाल कर सभी को प्रसाद के रुप में वितरित करता है। इसके बाद जहां पर खीर को खौलाया जाता है वहां पर पुजारी जाकर प्रणाम करता है फिर खौलता हुआ खीर अपने व दूसरों के शरीर पर डालता है। इसे संजोग कहा जाये या फिर कुछ और कि खौलता हुआ खीर डालने के बाद भी पुजारी के शरीर पर किसी तरह का नुकसान नहीं होता है। पूजा के आयोजक अशोक यादव बताते हैं कि भगवान का प्रसाद होने के चलते खौलते खीर से शरीर को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है। कढ़ाहा पूजन में आये श्रद्धालु इसे माता की पूजा मानते हैं। पूजा में माता खुद आती है और साक्षात शक्ति देती है। पूजा के तरीके पर हमेशा ही सवाल उठते रहे हैं। जिला प्रशासन भी इस पूजा को लेकर किसी तरह की जानकारी नहीं रखता है।