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धार्मिक मान्यताओं की माने तो ब्रह्मा जी के पहले चार मुख थे। एक बार ब्रह्मा जी ने चौथे मुख से भगवान शिव के बारे में ऐसे बाते कही थी जिससे वह नाराज हो गये थे। उसी समय शिव ने कालभैरव का उत्पन्न किया था। काल भैरव ने अपने नाखुन ने ब्रह्मा जी का चौथ मुख काटा था। इसके बाद बाबा काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया था। ब्रह्मा जी का चौथा मुख बाबा के हाथ से चिपक गया था। धरती, आकाश व पाताल जहां भी काल भैरव जाते थे उनकी ज्वाला से सब कुछ जल कर राख हो जाता था। भगवान शिव के पास काल भैरव गये और कहा कि उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति दिलाये। इस पर शिव ने कहा कि वह उनकी नगरी काशी में जाये। बाबा भैरव नाथ काशी में पहुंचे और अपने हाथ से तालाब बनाया और उसमे स्नान किया। स्नान करते ही ब्रह्म जी का मुख उनके हाथ से गायब हो गये। इसके बाद बाबा काल भैरव सीधे मैदागिन के पास स्थित एक जगह पर गये। यहां पर उनके विराजमान होने की जगह नहीं थी इसलिए बाबा ने यहा पर एक पैर का अंगूठा रखा है और दूसरा पैर श्वान (डॉग) पर रखा है। काशी में विराजते ही बाबा से निकलने वाली ज्वाला खत्म हो गयी। बाबा चन्द्रमा के तरह शीतल हो गये। इसके बाद इस जगह का नाम काल भैरव पड़ा। आज भी बाबा काल भैरव अपने भक्तों की सारी पीड़ा को दूर करते हैं। कहा जाता है कि बाबा काल भैरव को सच्चे मन से याद करने वाला सभी कष्टों से बचा रहता है।
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