वाराणसी

Holi 2022 : गुम हो जाएगी बनारस की मशहूर पीतल की पिचकारी

वाराणसी इस वक्त सभी की जुबान पर छाया हुआ है। यूपी चुनाव 2022 का सातवां चरण 7 मार्च को होने जा रहा है। चुनावी शोर में वाराणसी की कुछ ऐसी वस्तुएं है जो वक्त के इस बदलते दौर में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहीं है। अपने को बाजार में जीवित रखने की पूरी कोशिश में जुटी हुई हैं। एक पीतल की पिचकारी का बड़ा नाम था।

वाराणसीMar 04, 2022 / 11:49 am

Sanjay Kumar Srivastava

Holi 2022 : गुम हो जाएगी बनारस की मशहूर पीतल की पिचकारी

वाराणसी इस वक्त सभी की जुबान पर छाया हुआ है। यूपी चुनाव 2022 का सातवां चरण 7 मार्च को होने जा रहा है। चुनावी शोर में वाराणसी की कुछ ऐसी वस्तुएं है जो वक्त के इस बदलते दौर में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहीं है। अपने को बाजार में जीवित रखने की पूरी कोशिश में जुटी हुई हैं। वक्त बदल रहा है और लोगों की तबियत भी बदल रही है। वाराणसी की शानदार और मशहूर वस्तुओं में एक पीतल की पिचकारी का बड़ा नाम था। होली हो और पीतल की पिचकारी हाथ में न हो तो फिर रंगों का त्योहार बेमजा हो जाता है। फिलवक्त तो पीतल की पिचकारी बनाने वालों के सामने दो वक्त की रोटी का संकट हो गया है।
पीतल की पिचकारी किसे नहीं भाती है। पर जहां इस बनाने वालों हुनरमंद करीगारों के सामने चुनौतियां है तो वहीं इसके खरीदारों के सामने आर्थिक दिक्कतें हैं। पीतल की एक पिचकारी की कीमत इस वक्त बाजार में कम से कम 2,000 रुपए है। वहीं प्लास्टिक वाली पिचकारी मात्र 100-80 रुपए में मिल जाती है। तो आम आदमी इतनी महंगी पिचकारी खरीदने से दूर भागता है। महंगा कच्चे माल और महंगी मजदूरी इस अद्वितीय और सुंदर शिल्प पारंपरिक पिचकारी को घरों से दूर कर रही हैं।
कभी 36 इकाइयां थी अब 2

वाराणसी में एक जमाने में पीतल की पिचकारी बनाने की 36 इकाइयां थी और आज सिर्फ दो इकाइयां हैं। पिचकारी को बनाने में पीतल, तांबे और जस्ते के मिश्र धातु का प्रयोग किया जाता है। तमाम प्रक्रिया से गुजरने के बाद इस पर हाथ से दस्तकारी की जाती है। तब यह पीतल की पिचकारी पूरी होती है।
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दो कारण बताएं पिचकारी के खात्मे

वाराणसी से दूर गांव अयार के रहने वाले पीतल की पिचकारी के एकमात्र निर्माता राजेंद्र प्रसाद मौर्य बताते हैं कि, महंगाई और युवा पीढ़ी का इसमें अपनी रुचि न दिखाना इसको खत्म कर दे रहा है।
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पिचकारी के कई और है इस्तेमाल

राजेंद्र प्रसाद मौर्य ने बताया कि, होली के अलावा पिचकारी के कई उपयोग है। इस पिचकारी या प्रेशर वाटर गन का इस्तेमाल खेती में कीटनाशकों के छिड़काव के लिए भी किया जाता है। असम में तो इसकी भारी मांग है वहां चाय उत्पादक इसके उपयोग से कीट के लार्वा को बेअसर करते हैं।
सिर्फ आर्डर पर होती हैं तैयार

पीतल की पिचकारी 16 इंच लंबाई, दो इंच चौड़ी सुनहरे रंग होती है। एक बार घर में आई तो पीढ़ियों तक रहती है। अब इन पिचकारियों का निर्माण सिर्फ आर्डर पर किया जाता है। करीगर कम है तो आर्डर भी जरूरत के हिसाब से ही लिया जाता है। पिचकारी निर्माता सिर्फ मेहनत का पैसा 30-35 रुपए प्रति इंच के आधार पर लेता है।
आने पीढ़ियां भूल जाएंगी पीतल की पिचकारी

राजेंद्र प्रसाद मौर्य ने बताया कि, इस वक्त मेरे पास सिर्फ पांच करीगर हैं। वो सभी बेहद बूढ़े हो गए हैं। कंचन राम, लालजी पटेल जो सन 1966 से काम कर रहे हैं और इस वक्त 6 हजार रुपए ही कमा रहे हैं। और अपने इस हुनर को अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी नहीं दे रहे हैं। वक्त साथ यह करीगरी और हुनरमंदी खत्म हो जाएगी।
जीआई के बावजूद ओडीओपी में शामिल नहीं

मौर्य ने आगे बताते हैं कि, शिल्प मर रहा है और उद्योग लगभग मर चुका है। पर पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा सकता है। पीतल की पिचकारी जीआई पंजीकृत उत्पाद है इसके बावजूद राज्य सरकार, एक जिला, एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में इसे शामिल नहीं कर सकी है।
अफसोस है पुनर्जीवित का कोई प्रयास नहीं

मौर्य ने अपने दुख को व्यक्त करते हुए कहाकि, चुनाव चल रहे है पर अफसोस की बात है कि ऐसे छोटे उद्योगों को पुनर्जीवित करना और प्रोत्साहन करना किसी भी राजनीतिक दल के एजेंडे में शामिल नहीं है।

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