वाराणसी

हिंदी संस्थान के तीन बड़े पुरस्कारों पर काशी का कब्जा, बद्रीनाथ कपूर को हिंदी गौरव सम्मान

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने 2018 के सम्मानो का कर दिया है ऐलानअक्टूबर-नवंबर में सम्मानित होंगे हिंदी के पुरोधा
 

वाराणसीSep 21, 2019 / 12:53 pm

Ajay Chaturvedi

हिंदी साहित्य के मनीषी

वाराणसी. सर्वविद्या की राजधानी ने एक बार फिर से काशी का गौरव बढ़ाया है। इस बार हिंदी साहित्य के मनीषियों ने यह कारनाम किया है। हिंदी साहित्य को अपना पूरा जीवन न्योछावर करने वाले इन विद्वानों के उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने 2018 के विशिष्ट सम्मान के लिए चुना है।
बता दें कि हिंदी संस्थान हर वर्ष हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में विशिष्ट योगदान देने वाले विद्वानो को सम्मानित करता है। अबकी 2018 के सम्मान के लिए जिन नामों की घोषणा की गई है उसमें काशी की तीन विभूतियों को शामिल किया गया है। इसमें एक हैं डॉ बद्री नाथ कपूर जिन्हें हिंदी गौरव सम्मान से नवाजा जाएगा। इसके अलावा डॉ इंदिवर पांडेय को हिंदी साहित्य भूषण सम्मान और हीरालाल मिश्र मधुकर को धर्मयुग सम्मान दिया जाएगा। डॉ कपूर को हिंदी गौरव सम्मान के एवज में मान पत्र के अलावा 4 लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाएगा।
सभी हिंदी प्रेमियों का आभारः डॉ बद्री नाथ

ता दें कि डॉ बद्री नाथ कपूर का जन्म पाकिस्तान के गजरांवाला में 16 सितंबर 1932 को हुआ था। लेकिन आजादी के बाद वह भारत चले आए और पिछली आधी शताब्दी से हिंदी साहित्य की सेवा में जुटे हैं। वह मूलतः भाषा, व्याकरण और कोष प्रणयन के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। डॉ कपूर ने 1956 से 1965 तक हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से प्रकाशित मानक हिंदी कोश का संपादन किया। फिर वह जापान सरकार के बुलावे पर टोक्यो चले गए और वहां टोक्यो विश्वविद्यालय में 1983 से 1986 तक अतिथि प्रोफेसर के रूप में कार्यरत रहे। उन्हें अब तक श्री अन्नपूर्णानंद वर्मा अलंकरण, सौहार्द सम्मान, काशी रत्न, महामना मदन मोहन मालवीय सम्मान व विद्याभूषण सम्मान से नवाजा जा चुका है। हिंदी संस्थान द्वारा 2018 के हिंदी गौरव सम्मान के लिए चुने जाने पर उन्होंने समस्त हिंदी प्रेमियों का आभार जताया।
साहित्य में भारतीयता की वापसी का सम्मान हैः डॉ इंदिवर

डॉ इंदिवर पांडेय मूलतः जौनपुर के हरिहरपुर गांव के निवासी हैं। उनका जन्म 20 मार्च 1953 को हुआ। महज 14 साल की किशोरावस्था में उनकी पहली कविता प्रकाशित हुई। फिर 1971 में उनका पहला उपन्यास आखिरी रास्ता प्रकाशित हुआ। बीएचयू के विद्यार्थी रहे डॉ पांडेय यहां से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद कोलकाता से प्रकाशित दैनिक रूपलेखा से जु़ड़ गए। आपका, तुलसी का क्रांतिदर्शी कवि और जीवन खोज महत्वपूर्ण समीक्षा और शोध ग्रंथ भी प्रकाशित हो चुका है। डॉ पांडेय की नवगीत पर शोध और समीक्षा बेजोड़ रही। 2014 में साकेत पीजी कॉलेज, मुंबई से सेवानिवृत्त होने के बाद से वह काशी में ही हिंदी साहित्य की सेवा में लीन हैं। कहा, साहित्य में भारतीयता की वापसी का सम्मान है।
यह बनारस के साहित्य प्रेमियों का सम्मान हैः मधुकर

हीरालाल मिश्र “मधुकर” मूलतः भदोही जिले के धनवतिया गांव के निवासी हैं। आपका जन्म 24 जून 1945 को हुआ। महज 8 वर्ष की उम्र से ही वह लोकगीत व कविता लेखन में जुट गए। उन्हें कवितांबरा के धर्मयुग सम्मान से नवाजा जाना है। आपके काव्य संग्रह राष्ट्रीय चेतना, गजर संग्रह गुलिस्तां, तरकश के तीर, बाहों में आकाश काफी लोकप्रिय हुए। मधुकर का रंगमंचीय कला से भी गहरा रिश्ता है। उनका नाटक रेत का गुलाब, सम्राट अलर्क, कफन, पृथ्वीराज चौहान काफी लोकप्रिय हुए। 1965 से ही वह हिंदी साहित्य की सेवा में जुटे हैं। मधुकर ने कहा कि यह बनारस के साहित्य प्रेमियों का सम्मान है।

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