कुष्ठ रोगियों के लिए तो अपने भी पराये हो जाते हैं। बीमारी से अधिक दर्द उन्हें सामाजिक बहिष्कार की वेदना मिलती है। जिन कुष्ठ रोगियों को अपने भी छूने से डरते हैं, उन्हें सर्वेश्वरी समूह में नया जीवन मिलता है। यहां पर जिन अनुयायियों को कुष्ठ रोगियों की सेवा करने का अवसर मिलता है वह खुद को धन्य मानते हुए ईमानदारी से बीमार की सेवा में लग जाते हैं। आश्रम में सिर्फ कुष्ठ रोगियों का इलाज नहीं होता है यह सिद्धपीठ अब नशा मुक्ति को भी बड़ा केन्द्र बन गया है। युवाओं को नशे के दलदल से निकालने के लिए अभियान भी चला कर स्वस्थ्य समाज का भी संदेश दिया जाता है। गुरू की कृपा व आयुर्वेद की औषधि भी चमत्कारिक परिणाम देने लगती है। आश्रम में दो लाख से अधिक रोगियों को स्वस्थ्य किया जा चुका है। ९९ हजार कुष्ठ रोगियों को पूर्ण रुप से स्वस्थ्य हो चुके है, जबकि डेढ़ लाख आंशिक रुप से कृष्ठ रोगों से ग्रसित लोगों का भी इलाज हुआ है। सर्वेश्वरी आश्रम में गुरू पूर्णिमा का पर्व बेहद खास ढंग से मनाया जाता है। पिछले साल की तरह इस बार भी गुरू पूर्णिमा पर चन्द्रग्रहण का साया मंडरा रहा है, लेकिन आश्रम में गुरू व शिष्य के बीच इस बार भी बिना किसी संशय के 16 जुलाई को गुरू पूर्णिमा मनायी जायेगी। समारोह की तैयारी शुरू हो चुकी है, जहां पर यूपी के साथ मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ आदि विभिन्न राज्यों से वीवीआईपी भी सामान्य भक्तों के साथ गुरू दर्शन को उपस्थित होंगे।
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अवधूत भगवान राम से कुष्ठ रोगियों की पीड़ा नहीं देखी गयी थी और उन्होंने मानवता की सेवा करने के लिए ही सर्वेश्वरी समूह की 21 सितम्बर 1961 में स्थापना की थी। मंडुआडीह स्थित सुलेमान के बगीचे में आश्रम की नीव पड़ी थी। बाद में पड़ाव में आश्रम का पूर्ण स्वप्न साकार हुआ। यहां पर अस्पताल की नीव 1962 में खुद उपप्रधानमंत्री जगजीवन राम ने रखी थी। 1962 में 10 बेड वाले महिला वार्ड का उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने किया था। इसके बाद से आश्रम का अस्पताल तेजी से विस्तार करता गया। 18 एकड़ में फैले आश्रम में तिरस्कृत वृद्धों का भी समृद्व संसार बसाया गया है। इसके अतिरिक्त आदिवासी बच्चों की नि:शुल्क शिक्षा, मोतियाबिंद का ऑपरेशन, चश्मा वितरण आदि अनेक सामाजिक कार्य हो रहे हैं। आश्रम के वर्तमान पीठाधीश्वर अवधूत गुरूपद संभव राम जी हमेशा अपने गुरू के सूत्र वाक्य के अनुसार ही चलते हैं। गुरू कहते थे कि जिसे जीवित जागृत व्यक्ति से प्रेम नहीं है, उसे मंदिर में स्थापित प्रतिमाओ व निराकार से भला कैसे प्रेमा हो सकता है।
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