वाराणसी

प्रमाण पत्र जुटाने का माध्यम बन गयी है आज की शिक्षा प्रणाली-आनंदीबेन पटेल

सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का 37 वां दीक्षांत समारोह, मुख्य अतिथि ने कहा श्लोक शास्त्र व साइंस को मिलाने से मिलेगी तरक्की

वाराणसीDec 05, 2019 / 03:08 pm

Devesh Singh

Sanskrit university convocation

वाराणसी. आज की शिक्षा प्रणाली मात्र प्रमाण पत्र जुटाने का माध्यम बन गयी है। यह बात कहने में संकोच नहीं है। जो लोग योग्यता नहीं रखते हैं उन्हें भी प्रमाण पत्र मिल रहा है। संस्कृत शिक्षा में यह दोष नहीं जाये। इसके लिए आचार्य व छात्रों को सर्तक रहने की जरूरत है। यह बात राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने गुरुवार को सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के 37 वें दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करते हुए कही।
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उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा परम शुद्धता का परिचायक है। यदि यहां पर दोषों का प्रवेश हुआ तो राष्ट्र संकट में पड़ जायेगा। इस दृष्टि से संस्कृत के जानकारों का दायित्व और बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा के ज्ञान के बिना किसी भारतीय का ज्ञान सम्पूर्णता को प्राप्त नहीं हो सकता। देववाणी के ज्ञान के बिना आत्मबोध संभव नहीं है। संस्कृत का अध्ययन एक भाषा तक सीमित नहीं है अपितू संस्कृत का अध्ययन भारतीय संस्कृति व सभ्यता का अध्ययन है। संस्कृत विद्या मानव का देवत्व प्रदान करती है। संस्कृत भाषा ने देश को एकता के सूत्र में पिरोया है। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि युवा कुछ समय निकाल कर सामाजिक दायित्व का कार्य करें। बच्चों को पढ़ाये और उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखे। पर्यावरण की रक्षा , स्वच्छता पर ध्यान देने, शादी-विवाह में दहेज लेने व देने पर रोक लगाये। इससे आपको आत्मसंतुष्टि मिलेगी। युवाओं से ही नये भारत की नयी तस्वीर बन सकती है। बतौर मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के उपाध्यक्ष प्रो.भूषण पटवर्धन ने कहा कि आधुनिक विज्ञान मानता था कि सभी को एक दवा ही देनी चाहिए। आयुर्वेद ने ऐसा कभी नहीं माना था। आयुर्वेद एक ही बीमारी में कारण के आधार पर अलग-अलग दवा देने का पक्षधर है। शोध हुआ तो आयुर्वेद की बात सही साबित हुई। अब मॉर्डन मेडिसीन भी मानती है कि एक दवा सभी के लिए नहीं है। शोध के बाद आयुजिनोमिक्स शास्त्र का विकास हुआ। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 से लेकर अब तक चिकित्सका के क्षेत्र में पांच नोबल पुरस्कार मिले हैं। इन पुरस्कारों का मूल हमारे शास्त्रों में है। श्लोक शास्त्र व साइंस को मिला कर काम करना होगा। इससे तरक्की की नयी राह मिलेगी। संस्कृत के कारण ही भारत विश्व गुरु बन सकता है। उन्होंने कहा कि पहले यह पता करना चाहिए कि विज्ञान को किस बात की जानकारी नहीं है उसका अध्ययन करके हम सबसे आगे होंगे। उन्होंने कहा कि विदेशियों वैज्ञानिकों के मन में आयुर्वेद व संस्कृत के लिए आधार भाव है। यह भाव हमारे वैज्ञानिकों के भी अंदर होना चाहिए। दीक्षांत समारोह में 32 मेधावियों को 57 मेडल दिये गये। डी लिट् की उपाधि संस्कृत भारती के संस्थापक पद्मश्री चमूकृष्ण शास्त्री को प्रदान की गयी संचालन प्रो.हरि प्रसाद अधिकारी व स्वागत भाषण वीसी प्रो. राजाराम शुक्ल ने दिया।
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राज्यपाल ने किया लोकार्पण
दीक्षांत समारोह आरंभ होने से पूर्व राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने श्रमण विद्या संकाय में बने आचार्य गोकुल चन्द्र जैन संवादशाला एंव कर्मचारी मनोरंजन कक्ष का लोकार्पण किया। इस अवसर पर उनके साथ समारोह के मुख्य अतिथि, वीसी, श्रमण विद्या संकाय के अध्यक्ष प्रो.रमेश प्रसाद द्विवेदी, विजय मणि, जनसम्पर्क अधिकारी शशीन्द्र मिश्र आदि लोग उपस्थित थे।
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