महमूरगंज निवासी सच्चिदानंद त्रिपाठी की चार बेटियां थी। सच्चिदानंद त्रिपाठी का कैंसर हो गया था और वह काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। मौत के पहले पिता ने अपने बेटियों से कहा था कि उनकी अंतिम इच्छा है कि अंतिम संस्कार भी वही करे। पिता की मौत के बाद बेटियों ने उनकी आखिरी इच्छा को भी पूरा किया। बेटी अन्नपूर्णा शुक्ला ने बताया कि हम चार बहने है और जन्म के बाद से ही पिता ने बेटों की तरह हम लोगों को आगे बढऩे का मौका दिया। पिता जी कहते थे कि हमारी बेटी किसी बेटे से कम नहीं है। वेद पुराण तक की शिक्षा दी। समाज के एक रिवाज चला आ रहा है कि मौत के बाद बेटा ही अपने माता-पिता का अंतिम संस्कार करता है और पिता जी इस रिवाज को बदलना चाहते थे। उन्होंने कहा कि हम चारों बहनों के साथ परिवार के अन्य लोग व पिता जी के मित्र भी उपस्थित थे। चारों बहनों ने पिता जी को मणिकर्णिका घाट पहुंचाया और सबसे बड़ी बेटी श्रीमती सरोजनी ने मुखाग्रि दी। छोटी बेटी सुधा त्रिपाठी ने बताया कि अंतिम संस्कार के बाद जितने और संस्कार होते हैं वह सब किया जायेगा। चारों बहनों के साथ पिता जी का आशीर्वाद है और हम लोग सारे रस्मों को पूरा करेंगे।
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