वाराणसी

Muharram: लाखों में खेलने वाले घर-घर जाकर मोहर्रम पर मांग रहे भीख, बनारस में सामने आई अनोखी परंपरा

Muharram: उत्तर प्रदेश के वाराणसी में सातवीं मोहर्रम पर अनोखी परंपरा देखने को मिली। यहां लाखों रुपये कमाने वाले लोग घर-घर जाकर भीख मांगते नजर आए। आइए जानते हैं क्यों निभाई जाती है ये अनोखी परंपरा…

वाराणसीJul 15, 2024 / 01:12 pm

Vishnu Bajpai

लाखों में खेलने वाले घर-घर जाकर मोहर्रम पर मांग रहे भीख, बनारस में सामने आई अनोखी परंपरा (प्रतीकात्मक फोटो)

Muharram: यूपी का वाराणसी शहर वैसे तो भगवान शिव के नाम से जाना जाता है, लेकिन यहां गंगा-जमुनी तहजीब के साथ धर्म का तालमेल भी गजब का दिखता है। पूरे साल भगवान शिव के भक्त यहां आकर काशी में दर्शन-पूजन कर मन्नतें मांगते हैं। दूसरी ओर रमजान, मोहर्रम और अन्य त्योहारों पर वाराणसी में आपसी सौहार्द्र का भी अद्भुत संगम दिखता है। ऐसे ही आज हम आपको मोहर्रम की एक अनोखी परंपरा बताते वाले हैं। इसके अनुसार सातवीं मोहर्रम से दसवीं मोहर्रम तक बड़े से बड़ा लखपति और छोटे से छोटा आदमी बराबर दिखता है। यानी ये ऐसी परंपरा है। जो छोटा-बड़ा, ऊंच-नीच का भाव ही खत्म कर देती है।

पहले जानिए क्या है फकीरी मन्नत?

दरअसल, हजरत इमाम हुसैन की याद में बने ताजियों, इमामबाड़ों पर मांगी गई मन्नतों में फकीरी की मन्नत सबसे अहम मानी जाती है। इसके तहत लोग बच्चों की बीमारी ठीक होने, औलाद का सुख पाने समेत तमाम तरह की इच्छा को लेकर ये मन्नत मांगते हैं। इन इच्छाओं के पूरा होने के बाद मन्नत के अनुसार उन्हें सातवीं से दसवीं मोहर्रम तक अपना घर छोड़ना होता है।
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इस दौरान घर-घर जाकर मांगी गई भीख से मिले रुपये से ही अपना खर्च चलाना पड़ता है। वाराणसी में रविवार को सातवीं मोहर्रम पर ऐसे ही कुछ लोग घर-घर भीख मांगते दिखे। हुसैन को मानने वाले इन लोगों की मुरादें पूरी हुई थीं। इसलिए अब ये तीन दिन यानी दसवीं मोहर्रम तक भीख मांगकर अपना गुजारा करेंगे। इसके साथ भिखारियों जैसी जिंदगी का अनुभव लेंगे।

परंपरा का महत्व और कहानी, पढ़िए भिखारी बने लोगों की जुबानी

वाराणसी के दोषीपुरा निवासी सकलैन हैदर इलेक्ट्रीशियन हैं। लगभग तीन साल पहले वह शॉर्ट सर्किट से लगी आग की चपेट में आकर झुलस गए थे। डॉक्टरों ने काफी इलाज किया, लेकिन वह ठीक नहीं हुए। इसपर डॉक्टरों ने उन्हें जवाब दे दिया। सकलैन बताते हैं “डाक्टरों के जवाब देने से मायूस मेरे परिजनों ने मोहर्रम में फकीरी मन्नत मांगी। इसके बाद धीरे-धीरे मैं सही होने लगा। जब मैं पूरी तरह ठीक हो गया तो मन्नत के अनुसार सातवीं मोहर्रम से दसवीं मोहर्रम तक भीख मांगने लगा।” सकलैन बताते हैं कि सातवीं से दसवीं मोहर्रम तक वे दोषीपुरा इमाम चौक पर तीन दिनों तक बिजली का काम निःशुल्क करते हैं।
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बीमारी के परेशान कपड़ा व्यापारी बना फकीर

दोषीपुरा निवासी कपड़ा व्यापारी शकील हैदर भी बीमार से ग्रस्त हो गए थे। शकील बताते हैं “बीमारी ने मुझे ऐसे जकड़ा कि डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। मेरा बचना लगभग मुश्किल हो गया था। इसपर मैंने फकीरी मन्नत मांगी। इसके बाद धीरे-धीरे मैं ठीक होने लगा। इसी के चलते अब सातवीं मोहर्रम से दसवीं मोहर्रम तक मैं भीख मांगता हूं।”

रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी भी मांग रहा भीख

वाराणसी निवासी 65 साल के पीडब्‍ल्यूडी से रिटायर्ड कर्मचारी रफीक हुसैन भी वाराणसी की गलियों में भीख मांगते हैं। रफीक ने बताया “मुझे पेट में दिक्कत हो गई थी। डॉक्टरों ने बताया था कि ऑपरेशन करना होगा, लेकिन ठीक होने की गारंटी नहीं है। इसपर मैंने मोहर्रम में फकीरी की मन्नत मांगी। इसके बाद मेरे पेट की दिक्कत ठीक हो गई। अब मैं हर साल तीन दिन तक घर-घर जाकर भीख मांगता हूं।”
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क्या कहते बनारस की जामा मस्जिद के मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी?

फकीरी मन्नत के बारे में वाराणसी की जामा मस्जिद ज्ञानवापी के मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी बताते हैं “इस्लाम से इन मन्नतों का कोई ताल्लुक नहीं है। बाद में ये सारी रस्में प्रचलन में आई हैं। इस्लाम में ऐसी मन्नतों की कोई एहमियत नहीं है। ये सारी मन्नतें भावनाओं के स्तर पर बनाई जाती हैं। इसके बारे में कुरान में भी कोई जिक्र नहीं मिलता है। कुरान अल्लाह की वाणी है। हदीस मोहम्मद साहब की वाणी है। इनमें इन मन्नतों का जिक्र नहीं है। इसलिए ये सब बातें मनगढ़ंत हैं। जो लोग ये सब मनाते हैं, उनके पास सवालों के सटीक जवाब नहीं होते हैं। सब भावनात्मक बाते हैं। इस्लाम से इसका कोई ताल्लुक नहीं है।”

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