कमिश्रर दीपक अग्रवाल ने वरुणा कॉरीडोर के किनारे ई-रिक्शा कॉरीडोर बनाने के लिए छह सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। कमेटी में वीडीए वीसी, एसपी ट्रैफिक, पर्यटन विभाग, सिचाई व लोक निर्माण विभाग के अधिकारी शमिल है। शासन की योजना है कि पुराना पुल से वरुणा किनारे स्थित कैंटोमेंट तक एक ई-रिक्शा कॉरीडोर बनाया जाये। वरूणा कॉरीडोर पहले ही बन चुका है और नदी किनारे बनाये गये पाथ वे में ई- रिक्शा कॉरीडोर बनाया जा सकता है इसके लिए अधिकारियों ने स्थलीय निरीक्षण किया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार योजना को जमीन पर उतारा जाता है तो बनारस पर्यटन की तस्वीर ही बदल जायेगी। पर्यटकों के लिए वरुणा किनारे ई-रिक्शा पर भ्रमण करने का विकल्प मिलेगा। वरुणा नदी में नाव, जगह-जगह फूड प्लाजा आदि बना कर रोजगार के नये अवसर के साथ वरुणा कॉरीडोर का पूरा उपयोग करने की योजना है। कमेटी ने स्थलीय निरीक्षण किया है इसके बाद अपनी रिपोर्ट कमिश्रर को देंगे। इसके बाद योजना को लेकर अंतिम निर्णय किया जायेगा।
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सपा के तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव के समय ही वरूणा कॉरीडोर की नीव रखी थी। सैकड़ों करोड़ से लगभग 10 किलोमीटर के क्षेत्र में पाथ वे बनाया गया है। यूपी मेें सीएम योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद भी वरूणा कॉरीडोर प्रोजेक्ट के साथ न्याय नहीं हो पाया है। प्रोजेक्ट भी पूरा नहीं बना है कि इसके पहले ही जगह-जगह की जमीन धस गयी है। कई जगहों की रेलिंग टूट चुकी है। चौकाघाट के पास सीवर का पानी के चलते कॉरीडोर का एक हिस्सा ही धसा हुआ है। सीवर के पानी को एसटीपी तक भेजने के लिए पाइप लाइन तक नहीं बिछ पायी है। ऐसे में अधिकारियों के लिए ई रिक्शा कॉरीडोर की शुरूआत करना किसी चुनौती से कम नहीं है।
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वरूणा नदी की दयनीय स्थिति पर एनजीटी भी सख्त है। एनजीटी के पूर्वी यूपी के चेयरमैन जस्टिस डीपी सिंह ने खुद वरूणा नदी का हाल देखा था। जगह-जगह पर कूड़े का ढेर मिला था। सीवर के साथ स्लाटर हाउस का गंदा पानी भी नदी को प्रदूषित कर रहा था। अतिक्रमण के चलते नदी की दिशा तक बदल गयी है। जस्टिस डीपी सिंह के लगातार निर्देश देने के बाद भी जब स्थिति नहीं सुधरी तो जुर्माना भी लगाया गया है इसके बाद भी वरूणा पर अधिकारियों का ध्यान नहीं है।
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