जरा, रुजा व मृत्यु का नाश करने व अमरत्व देने वाले भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है। दीपावली से पहले धन्वंतरि जयंती होती है। दीपावली के दिन मां लक्ष्मी की पूजा होती है औरदीपावली के पहले धन्वंतरि की पूजा करके स्वास्थ्य रखा का वरदान मांग कर यह संदेश दिया जाता है कि पहले स्वास्थ्य की रक्षा जरूरी है उसके बाद धन की कामना करनी चाहिए। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा तो धन कमाना कठिन नहीं होगा। चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एंव चिकित्सालय के कायचिकित्सा एंव पंचकर्म विभाग के डा.अजय कुमार ने कहा कि आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि हैं जो हमें स्वास्थ्य रखने के तरीकों को बताते हैं। भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति की कहानी भी बेहद दिलचस्प है।
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समुद्र मंथन में हुई थी भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति
डा.अजय कुमार ने बताया कि राक्षसों को हराने के लिए जब देवताओं ने समुद्द्र मंथन किया था तो भगवना धन्वंतरि ही हाथ में अमृत कलश लेकर निकले थे। समुद्र से निकलने के बाद भगवान धन्वंतरि ने भगवान विष्णु से कहा कि लोक में मेरा स्थान और भाग का निर्धारण करे दे। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि देवताओं में यज्ञ विभाग का पहले ही निर्धारण हो चुका है तुम देवता नहीं हो, इसलिए अब कुछ करना संभव नहीं है। भगवान विष्णु ने कहा कि अगले जन्म में तुम्हे सिद्धिया प्राप्त होगी और तुम लोक में प्रख्यात होंगे। इसी शरीर में देवत्व प्राप्त करोगे और वैद्य तुम्हारी पूजा करेंगे। द्वापर में तुम्हारा फिर से जन्म होगा और आयुर्वेद विभाग की स्थापना करोगे। इसके बाद काशीराज धन्व की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान धन्वंतरि ने उनके पुत्र के रुप में पुन:जन्म लिया था और नये जन्म में भी धन्वंतरि नाम ही धारण किया। आयुर्वेद विभाग की स्थापना करने के साथ ही लोगों को अरोग्य दिया। भगवान धन्वंतरि के पुत्र केतुमान व भीमरथ व इनके पुत्र दिवोदास ने लम्बे समय तक काशी पर शासन किया था।
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डा.अजय कुमार ने बताया कि राक्षसों को हराने के लिए जब देवताओं ने समुद्द्र मंथन किया था तो भगवना धन्वंतरि ही हाथ में अमृत कलश लेकर निकले थे। समुद्र से निकलने के बाद भगवान धन्वंतरि ने भगवान विष्णु से कहा कि लोक में मेरा स्थान और भाग का निर्धारण करे दे। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि देवताओं में यज्ञ विभाग का पहले ही निर्धारण हो चुका है तुम देवता नहीं हो, इसलिए अब कुछ करना संभव नहीं है। भगवान विष्णु ने कहा कि अगले जन्म में तुम्हे सिद्धिया प्राप्त होगी और तुम लोक में प्रख्यात होंगे। इसी शरीर में देवत्व प्राप्त करोगे और वैद्य तुम्हारी पूजा करेंगे। द्वापर में तुम्हारा फिर से जन्म होगा और आयुर्वेद विभाग की स्थापना करोगे। इसके बाद काशीराज धन्व की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान धन्वंतरि ने उनके पुत्र के रुप में पुन:जन्म लिया था और नये जन्म में भी धन्वंतरि नाम ही धारण किया। आयुर्वेद विभाग की स्थापना करने के साथ ही लोगों को अरोग्य दिया। भगवान धन्वंतरि के पुत्र केतुमान व भीमरथ व इनके पुत्र दिवोदास ने लम्बे समय तक काशी पर शासन किया था।
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इसलिए अमर हो गयी काशी, सुक्षुत ने की थी विश्व की पहली सर्जरी
ब्रह्माजी ने एक सहस्त्र अध्याय व एक लाख श्लोक वाले आयुर्वेदक की रचना की थी। आयुर्वेद को अश्विनी कुमारों ने सीख कर भगवान इंद्र की शिक्षा दी थी। इंद्र ने धन्वंतरि को आयुर्वेद में कुशल बनाया। धन्वंतरि से पहले आयुर्वेद को गुप्त रखा गया था इस विद्या को विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत ने भी सीखा और दुनिया की पहली शल्य चिकित्सा की थी। बनारस में विश्व का प्रथम शल्य चिकित्सा का विद्यालय स्थापित किया गया तो सुश्रुत को विद्यालय का प्रधानाचार्य बनाया गया था। समुद्र मंथन के बाद शिव ने जब हलाहल ग्रहण किया था तो धन्वंतरि ने भगवान शिव को अमृत प्रदान किया था और अमृत की कुछ बूंदें काशी नगरी में गिर गयी थी इसलिए शिव की काशी को अमर नगरी माना जाता है।
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