नोबेल पुरस्कार विजेता प्रफेसर जोआकिम फ्रैंक के शोध में अहम भूमिका निभाने वाले बीएचयू के छात्र रहे वैज्ञानिक डॉ. राजेंद्र अग्रवाल के साथ काम करने की उनकी बहुत इच्छा है। बीएचयू से पढ़ाई कर अमेरिका में पहुंचे आणविक जीव वैज्ञानिक राजेंद्र अग्रवाल ने न्यूयॉर्क में सात साल तक प्रफेसर फ्रैंक के शोध में भी योगदान दिया। राजेंद्र अग्रवाल ने एक मीडिया हाउस से बातचीत में यह स्वीकार किया है। उन्होंने कहा है कि प्रफेसर फ्रैंक के साथ प्रयोगशाला में काम करने का हमारा अच्छा अनुभव है। प्रफेसर फ्रैंक ने आणविक सेल, प्रोबायोसोम की प्रोटीन संश्लेषण मशीनरी की दिशा में मील का पत्थर साबित होने वाला शोध किया है। आने वाले समय में विज्ञान के क्षेत्र में यह क्रांतिकारी साबित होगा। उन्होंने बताया है कि नोबेल पुरस्कार की घोषणा होने के बाद प्रफेसर फ्रैंक ने खुद फोन करके खुशी जाहिर करते हुए मुझसे आभार जताया। उन्होंने कहा कि मेरे सहयोग को याद करते हुए उन्होंने मुझे फोन किया यह मेरे लिए सुखद आश्चर्य था।
डॉ राजेंद्र ने बताया हैं कि काम के दौरान मैंने काशी के अध्यात्मिक और सांस्कृतिक रंग के बारे में प्रफेसर फ्रैंक से चर्चा की थी जिसके बाद उन्होंने काशी आने की उत्सुकता जाहिर की। नोबेल पुरस्कार मिलने से पहले ही उन्होंने कई बार काशी आने की कई बार इच्छा जता चुके हैं। डॉ अग्रवाल ने उम्मीद जताई कि प्रो फ्रैंक इस साल के अंत या अगले साल के आरंभ में काशी आ सकते हैं। राजेंद्र ने बताया कि जब वह आऐंगे तब मैं उनको काशी की गलियों से लेकर गंगाघाट और काशी हिंदू विश्वविद्यालय भी ले जाऊंगा जहां से निकलकर अब मैं न्यूयार्क पहुंचा हूं। उन्होंने बताया कि प्रो. फ्रैंक के साथ एक ही प्रयोगशाला में मिलकर काम करने की यादों के रूप में मेरे पास आज भी कई तस्वीरें किसी धरोहर से कम नहीं हैं। प्रो. फ्रैंक के साथ लैब में राजेंद्र के साथ उनकी पत्नी डॉक्टर मंजुली शर्मा भी काम करती थीं। दोनों लोगों के साथ प्रफेसर फ्रैंक की कई तस्वीरें मौजूद है।