लंगड़े आम की कहानी को समझने के लिए हमें 300 साल पीछे जाना पड़ेगा, तो आइए पलटते हैं 18वीं सदी के उन पन्नों को जिस वक्त काशी नरेश का राज हुआ करता था। कहा जाता है कि काशी नरेश के राज में एक शिव मंदिर में एक साधु महाराज दो पौधे लेकर पहुंचे। यहां उनकी मुलाकात मंदिर के पुजारी से हुई। साधु ने मंदिर परिसर में ही दोनों पौधों को लगाया। वक्त बीतने के साथ ही पौधे, पेड़ में बदल गए। उसमें आम भी लग आए। साधु ने आम को तोड़कर भगवान शिव के चरणों में काटकर चढ़ाया और गुठलियों को जला दिया।
भोलेनाथ ने चखा था पहला स्वाद
साधु 4 साल तक मंदिर में यही प्रक्रिया अपनाता रहा। आम काटकर भोलेनाथ को चढ़ाता, उसके बाद प्रसाद भक्तों में बांट देता। एक दिन अचानक साधु ने पुजारी को अपने पास बुलाया और कहा कि मंदिर में आने का उसका लक्ष्य पूरा हो चुका है। अब आगे से भोलेनाथ को आम का भोग लगाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है। ध्यान रहे इसकी गुठलियां या कलम किसी के हाथ न लगे।
साधु 4 साल तक मंदिर में यही प्रक्रिया अपनाता रहा। आम काटकर भोलेनाथ को चढ़ाता, उसके बाद प्रसाद भक्तों में बांट देता। एक दिन अचानक साधु ने पुजारी को अपने पास बुलाया और कहा कि मंदिर में आने का उसका लक्ष्य पूरा हो चुका है। अब आगे से भोलेनाथ को आम का भोग लगाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है। ध्यान रहे इसकी गुठलियां या कलम किसी के हाथ न लगे।
पुजारी ने साधु की बात का पूरा ख्याल रखा। वो कई सालों तक आम को काटकर भगवान के सामने चढ़ाता रहा और मंदिर के भक्तों को भी प्रसाद के रूप में देता रहा। लेकिन जो भी प्रसाद में आम खाता वो इसके स्वाद का दीवाना हो जाता। धीरे-धीरे पूरे बनारस में मंदिर वाले आम की चर्चा होने लगी। कई लोगों ने पुजारी से आम की गुठली मांगी ताकि वे पेड़ लगा सकें। लेकिन पुजारी ने किसी को भी गुठलियां नहीं दी। पूरे काशी में इस स्वादिष्ट प्रसाद के चर्चे होने लगे। यह बात काशी नरेश महाराजा प्रभु नारायण सिंह बहादुर तक पहुंच गई।
घर-घर तक पहुंचा ‘लंगड़ा’
एक दिन पुजारी से मिलने काशी नरेश खुद मंदिर पहुंच गए। यहां उन्होंने पहले भोलेनाथ के स्वादिष्ट प्रसाद आम का स्वाद लिया। काशी नरेश ने पुजारी से आग्रह किया कि वे आम की कलम राज्य के प्रधान माली को दे दें, ताकि वो महल के बगीचे में इन्हें लगा सकें। लेकिन पुजारी को साधु की बात याद आ गई। पुजारी ने कहा कि वो भगवान शिव से प्रार्थना करेंगे और उनके निर्देश पर महल आकर आम की कलम महल के माली को दे देंगे। रात को पुजारी के सपने में भगवान शिव आए और उन्होंने आम की कलम राजा को देने के लिए कहा।
एक दिन पुजारी से मिलने काशी नरेश खुद मंदिर पहुंच गए। यहां उन्होंने पहले भोलेनाथ के स्वादिष्ट प्रसाद आम का स्वाद लिया। काशी नरेश ने पुजारी से आग्रह किया कि वे आम की कलम राज्य के प्रधान माली को दे दें, ताकि वो महल के बगीचे में इन्हें लगा सकें। लेकिन पुजारी को साधु की बात याद आ गई। पुजारी ने कहा कि वो भगवान शिव से प्रार्थना करेंगे और उनके निर्देश पर महल आकर आम की कलम महल के माली को दे देंगे। रात को पुजारी के सपने में भगवान शिव आए और उन्होंने आम की कलम राजा को देने के लिए कहा।
दूसरे दिन पुजारी आम के प्रसाद को लेकर राजमहल पहुंचा। उन्होंने राजा को आम की कलम भी सौंप दी। काशी नरेश ने माली के साथ जाकर बगीचे में पेड़ों की कलमें लगाईं। कुछ ही सालों में ये पेड़ बन गए। धीरे-धीरे पूरे रामनगर में आम के कई पेड़ हो गए। इसके बाद बनारस से बाहर भी आम की फसल होने लगी और अब ये देशभर में सबसे पॉपुलर आम की वैरायटी है।
तो ऐसे पड़ा आम का नाम लंगड़ा
लंगड़ा आम की कहानी तो आपको पता चल गई , लेकिन अब सोच रहे होंगे कि इसका नाम कैसे पड़ा। दरअसल, साधु ने जिस पुजारी को आम के पेड़ों का ख्याल रखने की जिम्मेदारी वो दिव्यांग था। उन्हें सब ‘लंगड़ा पुजारी’ के नाम से जानते थे। इसलिए आम की इस किस्म का नाम भी ‘लंगड़ा आम’ पड़ गया। आज भी इसे लंगड़ा आम या बनारसी लंगड़ा आम कहा जाता है।
लंगड़ा आम की कहानी तो आपको पता चल गई , लेकिन अब सोच रहे होंगे कि इसका नाम कैसे पड़ा। दरअसल, साधु ने जिस पुजारी को आम के पेड़ों का ख्याल रखने की जिम्मेदारी वो दिव्यांग था। उन्हें सब ‘लंगड़ा पुजारी’ के नाम से जानते थे। इसलिए आम की इस किस्म का नाम भी ‘लंगड़ा आम’ पड़ गया। आज भी इसे लंगड़ा आम या बनारसी लंगड़ा आम कहा जाता है।