अगर मुलायम के गढ़ की बात करें तो मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी के आजमगढ़ से चुनाव लड़ने से भाजपा के बाहुबली रमाकांत यादव की चुनौती बढ़ेगी, लेकिन जो समीकरण है उसमें सपा को अधिक नुकसान होता दिख रहा है। कारण कि, मुख्तार के आने के बाद सपा के लिए अपने वोट बैंक को संभालना आसान नहीं होगा।
बता दें कि मऊ, गाजीपुर और वाराणसी की राजनीति में मुख्तार फैमिली का सीधा हस्तक्षेप रहा है। आजमगढ़ में भी मुख्तार अंसारी का दबदबा और समर्थन कम नहीं है। छोटे दलों में कौएद ने आजमगढ़ में पिछले विधानसभा में काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। हाल में हुए विधानसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी के बसपा में शामिल होने का लाभ बसपा को मिला था। कम से कम मऊ में बीजेपी बसपा का सूपड़ा साफ करने में असफल हो गई थी।
आजमगढ़ मुलायम सिंह यादव का संसदीय क्षेत्र है, लेकिन वे साफ कर चुके है कि यहां से अगला चुनाव नहीं लड़ेगे। अब यह चर्चा आम हो गई है बसपा घेसी सीट से मुख्तार अंसारी और आजमगढ़ संसदीय सीट से उनके पुत्र अब्बास अंसारी को मैदान में उतार रही है।
वहीं चर्चा है कि, महराजगंज संसदीय सीट से बसपा इस बार फिर ब्राम्हण कार्ड खेलने का मन बना रही है। ऐसे में वह कौन सा ब्राम्हण चेहरा होगा जो इस सीट से उम्मीदवार हो सकता है। पूर्वांचल में देखा जाय तो पं हरिशंकर तिवारी ही एक ऐसा नाम है जिसका ब्राम्हणों में असर है। महराजगंज संसदीय सीट से इस बार के चुनाव में हरिशंर तिवारी परिवार के ही किसी सदस्य के चुनाव लड़ने की चर्चा है। इसमे सबसे पहले खलीलाबाद के पूर्व सांसद भीष्मशंकर तिवारी का नाम है।
अगर बात करें बाहुबली अतीक की तो खास यह है कि, अतीक अहमद के बड़े बेटे उमर अहमद ने पिता के चुनाव की बागडोर संभाल ली है। हालांकि भाजपा और समाजवादी पार्टी पहले ही फूलपुर सीट पर जीत का दावा कर रही थी। अतीक अहमद की गैर मौजूदगी में उनके बड़े बेटे उमर अहमद ने पूरे चुनाव की कमान अपने कंधों पर उठाकर फूलपुर की सड़क पर निकल पड़े हैं। उमर को बहुत अनुभव न होते हुए भी वो पूरे दिन और आधी रात तक इलाके में लोगों से मिलते हैं और उन्हें भरोसा देते हैं कि, अब्बा ने हमेशा गरीबों के लिए काम किया और साजिश के तहत उनको जेल में डाला गया।