वाराणसी

जयंती पर विशेषः गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को साकार करना चाहते थे आचार्य नरेंद्र देव

एक समाजवादी जिन्हें खुद को गर्व से मार्क्सवादी कहने में फर्क महसूस होता था, पर कभी कम्यूनिष्ट पार्टी से नहीं जुड़े।

वाराणसीOct 31, 2018 / 05:16 pm

Ajay Chaturvedi

आचार्य नरेंद्र देव

वाराणसी. पूरा देश जब पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती धूम-धाम से मना रहा है, वहीं एक सच्चा देशभक्त, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और कमजोर तबके का रहनुमा, प्रखर वक्ता, विद्वान, साहित्याकर, पत्रकार, कुशल राजनीतिक, दूरद्रष्टा को गिने चुने लोग ही स्मरण कर पा रहे हैं। बात एक ऐसी सख्शियत की है जिसने कांग्रेस की भी सेवा की लेकिन दल से ऊपर देश रहा। सो बहुत दिनों तक आजादी के बाद की कांग्रेस संस्कृति से तादात्म नहीं बिठा सके और उससे अलग हो कर सोसलिल्ट पार्टी का गठन कर लिया। 31 अक्टूबर को उस महान संत की भी जंयती है, वह और कोई नहीं आचार्य नरेंद्र देव हैं।
31 अक्तूबर, 1889 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में पैदा हुए आचार्य जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए, एलएलबी किया। उन्होंने 1915 में फैजाबाद में वकालत भी शुरू की लेकिन उसमें उनका मन रमा नहीं, इसी बीच 1921 में जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो वकालत छोड़ कर आंदलोन से जुड़ गए।
इसके तहत पहले लोकमान्य बाल गंगा धर तिलक के नेतृत्व में काम शुरू किया। फिर पंडित जवाहर लाल नेहरू के कहने और शिवप्रसाद गुप्त के बुलावे पर काशी विद्यापीठ चले आए। काशी विद्यापीठ में आचार्य भगवानदास जी की अध्यक्षता में अध्यापन शुरू किया। फिर वह खुद भी विद्यापीठ के अध्यक्ष बने। हिंदी, संस्कृत, उर्दू, पाली, प्राकृत, बंगला, जर्मन, फ्रेंच और अंग्रेजी समेत कई विदेशी व भारतीय भाषाओं पर उनका एकाधिकार रहा। दर्शन शास्त्रों व संस्कृति व इतिहास के ज्ञाता रहे।

आचार्य जी महात्मा गांधी के विचारों से काफी निकट रहे। दोनों के बाद अच्छा संबंध भी रहा। लेकिन वह कभी ‘गांधीवादी’ नहीं बन सके। पुराने समाजवादी, वरिष्ठ पत्रकार योगेंद्र नारायण बताते हैं कि आचार्य जी खुद को मार्क्सवादी बताते रहे। उनका मार्क्सवाद किसी पार्टीलाइन पर नहीं चलता था। वे भारतीय परिस्थितियों के मुताबिक उसके समन्वयात्मक स्वरूप के हिमायती थे। सर्वहारा के नाम पर किसी व्यक्ति या गुट की तानाशाही उन्हें स्वीकार नहीं थी।
आजादी के बाद सत्ता की बागडोर संभालने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी देश में समाजवादी व्यवस्था लागू करने की कोशिश की। उनके इस प्रयास में एक भारतीय मार्क्सवादी भी सहयोगी रहे। आचार्य जी ने गांधी और नहरू दोनों को नजदीक से जाना और समझा। लेकिन वह गांधी के ग्राम स्वराज की थ्योरी के काफी नजदीक रहे। उन्होंने भारतीय समाजवाद को नई दिशा देने का प्रयास भी किया। कांग्रेस से उनका जुड़ाव काफी नजदीकी रहा पर आत्मिक नहीं हो सका।
आचार्य जी की रचनाएं
आचार्य नरेंद्र देव ने कई किताबें भी लिखी। इमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं…
राष्ट्रीयता और समाजवाद, समाजवाद : लक्ष्य तथा साधन, सोशलिस्ट पार्टी और मार्क्सवाद, राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास, युद्ध और भारत, किसानों का सवाल, समाजवाद और राष्ट्रीय क्रांति, समाजवाद, बोधिचर्चा तथा महायान, अभीधर्म कोष
संपादन : विद्यापीठ (त्रैमासिक पत्रिका), समाज (त्रैमासिक पत्रिका), जनवाणी (मासिक पत्रिका), संघर्ष, समाज (साप्ताहिक पत्र)

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