-आवेश तिवारी वाराणसी. बनारस शहर में इन दिनों रामलीला की धूम मची हुई है। रामनगर की विश्व प्रसिद्द रामलीला में आज धनुष यज्ञ होना है जिसे देखने देशी विदेशी पर्यटकों की भीड़ शहर में मौजूद है। यह धूम यह रामरंग अब लगातार गाढा होता चला जाएगा। इन सबके बीच हम अलसुबह शहर के जगतगंज मोहल्ले में पहुँचते हैं,एक मकान के बड़े से बरामदे को पार करके जब हम घर के भीतर कदम रखते हैं तो देखते हैं भगवान राम ,अपने गुरु की माँ के पाँव दबा रहे हैं,गुरु सामने बैठे हैं , ढेर सारी किताबें हैं, सामने हनुमान का चित्र हैं कुछ अन्य लोग भी बैठे हुए हैं जिन्हें मैंने ही नहीं देश भर के लोगों ने राम की सेना के मजबूत सिपाही के तौर पर देखा हुआ हैं | हम निराला रचित “राम की शक्तिपूजा ” के राम के साथ हैं अब तक देश भर में 46 मंचों पर खेले जा चुके इस नाटक में राम की भूमिका कोई पुरुष नहीं स्वाति विश्वकर्मा निभा रही हैं। बनारस के औसानगंज की यह लड़की आज हिंदी रंगमंच की दुनिया में एक जाना पहचाना नाम बन गई है |हम स्वाति यानि इस राम से उनके बारे में, निराला के भगवान् राम के बारे में जानने की कोशिश करते हैं। स्वाति खुद चाय बनाकर लाती हैं और बातचीत का सिलसिला शुरू होता है। मैं राम होना चाहती हूँ “मैं हर बार अपने नाटक में राम बनने की कोशिश करती हूँ पूरी ताकत लगा देती हूँ , लेकिन बन नहीं पाती, न जाने क्यों लगता है कभी नहीं बन पाउंगी,बस उनकी भूमिका निभा रही हूँ”|स्वाति यह कहने के बाद खामोश हो जाती हैं | अचानक खामोशी टूटती है “आप जानते हैं ?माँ ,पापा को छोड़ दीजिये तो मेरे घर परिवार में भी लोग नहीं चाहते कि मैं यह करूँ ,सब कहते हैं ‘अरे लड़की होकर देश भर में घूम घूमकर रामलीला करती है ‘,लेकिन मैं करुँगी ,मुझे हर बार लगता है हम नया कर रहे हैं ,हर बार पहले से अलग “।स्वाति वैज्ञानिक बनना चाहती थी विज्ञान के विषयों में बहुत तेज ,लेकिन उनके गुरु मशहूर लेखक ,कवि आलोचक और रंगमंच निर्देशक व्योमेश शुक्ल ने एक बार कहा कि एक बार रंगमंच को स्पर्श करके देखो ,लेकिन उससे पहले हिंदी और हिंदी कविता को जानो,क्योंकि सिर्फ अभिनय के दम पर नाटक नहीं किये जा सकते।नतीजा यह हुआ कि पहले स्वाति ने हिंदी कविता को जाना फिर कामायनी ,रश्मिरथी और फिर “राम की शक्तिपूजा “। एक हजार से ज्यादा बार स्वाति बनी राम स्वाति विश्वकर्मा बताती हैं कि अब तक हम लोगों ने एक हजार से ज्यादा बार इस रामलीला का अभ्यास किया होगा ,रोज आठ से दस घंटे की मेहनत ,जब हम अभ्यास में नहीं भी होते हैं तो उस दौरान भी अभिनय की ही बात कर रहे होते हैं। स्वाति से हम उनके सपनों के बारे में बात करते हैं तो वो पहले मुस्कुराती हैं फिर कहती हैं “जानते हैं कई बार ऐसा होता है कि मैं सपनों में राम का अभिनय करती हूँ पैर उठाने की कोशिश करती हूँ पैर नहीं उठते ,सपनों में मंच से गिर जाया करती हूँ “।स्वाति को रामकथा का सबसे अच्छा पात्र हनुमान लगता है ,उनका समर्पण उनकी मित्रता उन्हें भाती है हांलाकि इस अनुराग के पीछे एक दूसरी वजह यह भी है कि राम की शक्तिपूजा के हनुमान तापस उनके अच्छे मित्र हैं। स्वाति कहती है “मुझे पूरी उम्र राम की भूमिका निभानी पड़े तो भी मैं नही थकने वाली ,भगवान् राम ही मेरा निर्माण कर रहे हैं “। जब रो पड़े भगवान राम आजकल स्वाति बागिश शुक्ल की “ह्रदय ह्रदय कुमकुम” पढ़ रही हैं।बताती हैं “हर बार मंच पर जाने से पहले डर लगता है ,राम की भूमिका निभाना भी आसान काम नहीं है” ।निराला की शक्तिपूजा के एक एक शब्द का मतलब समझने की स्वाति कोशिश कर रही है वो साफगोई से कहती हैं “पहले सिर्फ अभिनय था अब इसमें निराला के इस महाकाव्य की समझ भी आ रही है ,जैसे जैसे दृश्यों को समझ रही हूँ मेरा भय बढ़ता जाता है” ।स्वाति बताती हैं कि अभी कुछ दिन पहले अभ्यास सत्र के दौरान जब यह पंक्ति आई कि “जानकी हाय उद्दत पिया का हो न सका ‘तो मैं अचानक फूट फूट कर रो पड़ी ,क्यूँ रो पड़ी मुझे नहीं पता”।मैं पूछता हूँ कि राम तो पुरुष थे आप स्त्री कभी लगा नहीं ? वो ठहाका लगाती है “मैंने कभी सोचा ही नहीं कि राम पुरुष थे या स्त्री ,मैंने इस दृष्टि से कभी राम को देखा ही नहीं “।