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ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे पर हादसों का जिम्मेदार कौन

अधूरे ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे पर आम लोगों की लापरवाही से पिछले 20 दिन के अंदर हुए हैं तीन हादसे

May 18, 2018 / 02:03 pm

sharad asthana

ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे पर हादसों का जिम्मेदार कौन

टिप्पणी/शरद अस्थाना
(sharad.asthana@in.patrika.com)

नियम तोड़ना हम गर्व की बात समझते हैं। रेड लाइट जंप करना हो या बिना हेलमेट दोपहिया चलाना, हमें दूसरों के सामने ऊंचा बनाता है। हां, अगर ऐसा करने में जान चली जाए तो दोष सरकार, पुलिस या प्रशासन का होता है। हमारा नहीं। ऐसी ही कुछ बानगी निर्माणाधीन ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे पर देखने को भी मिल रही है। यह अभी पूरी तरह से बनकर तैयार नहीं है। उद्घाटन हुआ नहीं है। लेकिन, गाड़ियों की रफ्तार दिखने लगी है। इसका नतीजा सामने है। अभी गुरुवार को ही इस पर हादसा हुआ। एक की मौत हो गई और कुछ घायल हुए। एक बार फिर खुद के गिरेबां में झांके बिना गलती पुलिस या प्रशासन की बता दी गई।
17 मई को गाजियाबाद के दुहाई के पास एक मारुति वैन रांग साइड से आ रही कार से टकरा गई। हादसे ने एक व्यक्ति की जिंदगी खत्म कर दी। तीन जीवन-मौत से संघर्ष कर रहे हैं। 2 मई को गाजियाबाद के डासना के पास एक बाइक सवार युवक एक्सप्रेस-वे पर पत्थर से टकरा गया। अपने परिजनों को रोता-बिलखता छोड़ गया। कुल मिलाकर पिछले 20 दिन के अंदर इस एक्सप्रेस-वे तीन हादसे हो चुके हैं। इन सबका दोष मढ़ा गया पुलिस व प्रशासन पर। ये उदाहरण बताते हैं कि हम हादसों के लिए कितने जिम्मेदार हैं। पेरिफेरल पर जा रही जानें भी इससे अछूती नहीं हैं। भले ही यह देश का सबसे बेहतरीन एक्सप्रेस-वे हो।
कुंडली से पलवल तक बने 135 किलोमीटर लंबे ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे पर कई आधुनिक इंतजाम जैसे सोलर लाइट का प्रयोग होगा। छह लेन की इस सडक़ पर गाड़ियों के दौड़ने की भी खूब जगह है। यह दिल्ली, गाजियाबाद समेत एनसीआर के कई शहरों लोगों को जाम से निजात दिलाएगा। इतना ही नहीं इस पर ओवरलोडेड भारी वाहनों की भी नो एंट्री होगी। पर यह सब होगा काम पूरा होने के बाद। पर यह पब्लिक है, जो मानती नहीं है। लोगों ने सेल्फी प्वाइंट बना लिया इसे। डंपर भी दौड़ने लगे। गाड़ियों की रेस भी शुरू हो गई। पुलिस ने भी वाहनों को रोकने के लिए रोड पर बड़े-बड़े बोल्डर लगा दिए हैं। गार्ड भी तैनात हैं। पुलिस ने कई वाहन जब्त किए। कई के चालान काटे। लेकिन नियम तोड़ना तो खून में है। हटा दिए बैरिकेड और घुस गए एक्सपेस-वे पर। गार्डों ने रोका तो उन्हें भी पीट दिया गया। ऐसे में कैसे हों सुरक्षा इंतजाम, यह बड़ा सवाल है।
पेरिफेरल की बात छोड़िए। यमुना एक्सप्रेस-वे को लीजिए। सरकार ने बेहतरीन एक्सप्रेस-वे का तोहफा दिया। दिल्ली से आगरा की दूरी महज पांच घंटे की कर दी। यमुना प्रबंधन ने इसकी गति सीमा भी तय कर दी। यानी 120 की गति से गाड़ी चलाते हैं तो सुरक्षित मंजिल तक पहुंचने की संभावनाएं ज्यादा हैं। लेकिन इन्हें मानता कौन है। एसयूवी है या सुपर बाइक खरीदी है तो फर्राटे ही भरेगी। इस एक्सप्रेस-वे पर हुए 90 फीसदी हादसों की वजह तय गति सीमा को लांघना है। कमोबेश यही हाल सामान्य सड़कों का है। रेड लाइट जंप करना हम शान समझते हैं। हेलमेट लगाने से बालों की स्टाइल खराब हो जाती है। एक ही बाइक पर ट्रिपलिंग या कार चलाते समय मोबाइल का इस्तेमाल जरूरी है।
ऐसे में संत कबीर का एक दोहा बहुत मौजूं है-
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय
मतलब गलती हम करें। अपनों को खोएं और गलती दूसरों की बताएं।
नियमों का पालन करें, अधूरे एक्सप्रेस-वे पर गाड़ी न दौड़ाएं और रांग साइड न चलें तो हादसे नहीं होंगेे। इसके लिए हमें खुद सोचना होगा, तभी हादसे रुकेंगे।

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