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क्या फूड हैबिट्स बन रही हैं जेनेटिक बीमारियों का कारण? रजत जैन के 60 दिन के प्रयोग ने उठाए गंभीर सवाल!

सिर्फ 60 दिनों में इतना बदलाव देखकर सोचा जा सकता है कि जो लोग सालों से इस तरह की लाइफस्टाइल अपना रहे हैं, उनकी सेहत पर इसका कितना बुरा असर हो सकता है।

महाराजगंजNov 08, 2024 / 03:10 am

anoop shukla

क्या हम अपनी खाने-पीने की आदतों के कारण खुद ही बीमार हो रहे हैं? डायटीशियन रजत जैन का हालिया 60 दिन का प्रयोग अब ऐसे सवाल खड़े कर रहा है, जिन पर हमने शायद पहले कभी गौर नहीं किया। इस अनोखे प्रयोग में रजत ने एक आम आदमी की तरह की जीवनशैली अपनाई और चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं।
फूड हैबिट्स और जेनेटिक बीमारियों का कनेक्शन?

रजत का मानना है कि हमारी खान-पान की आदतें न केवल हमारे मौजूदा स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही हैं, बल्कि जेनेटिक लेवल पर भी असर डाल सकती हैं। उनका दावा है कि गलत फूड हैबिट्स न केवल हमें डायबिटीज़, हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं दे रही हैं, बल्कि ये आदतें पीढ़ियों तक भी जा सकती हैं। यह सुनकर लगता है कि जो आदतें हमारे परिवारों में सदियों से चली आ रही हैं, वे अब नए दौर में जेनेटिक बीमारियों का कारण बन रही हैं।
60 दिनों का अनोखा प्रयोग

रजत ने इस प्रयोग में अपना नियमित हेल्दी लाइफस्टाइल छोड़कर ऐसी आदतें अपनाईं, जो अधिकतर लोग रोजमर्रा में फॉलो करते हैं – जैसे अनियमित खान-पान, बिना पोषक तत्वों के खाने का सेवन और व्यायाम से दूरी। इस दौरान, उन्होंने वही खाया जो आमतौर पर लोग खाते हैं और उसी तरह का रूटीन फॉलो किया। 60 दिनों के बाद, उनके वजन में 7 किलो का इजाफा हुआ, और साथ ही थकावट, सुस्ती और शुगर लेवल जैसी समस्याएं भी बढ़ गईं।
नतीजे: क्या सचमुच फूड हैबिट्स कर रही हैं हमें बीमार?

रजत जैन के ब्लड टेस्ट में कई बदलाव देखने को मिले। उनका HBA1C लेवल और ट्राइग्लिसराइड्स बढ़ गए, जबकि विटामिन D और B12 में कमी आई। उनका कहना है कि सिर्फ 60 दिनों में इतना बदलाव देखकर सोचा जा सकता है कि जो लोग सालों से इस तरह की लाइफस्टाइल अपना रहे हैं, उनकी सेहत पर इसका कितना बुरा असर हो सकता है।
तो क्या करें?

रजत जैन का यह प्रयोग एक बड़ी चेतावनी की तरह है कि हमें अपनी फूड हैबिट्स पर ध्यान देने की जरूरत है। उनका कहना है कि हमारे रोजमर्रा के खान-पान को हमें सिर्फ ‘सदियों से चली आ रही परंपरा’ मानकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम जो खा रहे हैं, वह हमारी आने वाली पीढ़ियों पर भी असर डाल सकता है। 

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