छोटे दलों पर सबकी नजर यूपी में होने वाले चुनाव में मुकाबला फिलहाल बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच ही होता दिख रही है। पांच-पाच साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद अब 2022 में लखनऊ का ताज एक बार फिर इन्हीं दोनों दलों के किसी बड़े नेता के सिर पर सजने वाला है, लेकिन इस लड़ाई में यूपी के छोटे राजनीतिक दल इस बार किंग मेकर बनकर उभरने वाले हैं।
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छोटे दलों की बढ़ी डिमांड आज यूपी में छोटे दलों की डिमांड इतनी बढ़ी हुई है कि दिल्ली में अमित शाह से लेकर यूपी में योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव छोटे-छोटे दलों के नेताओं से खुद मिल रहे हैं। इतनी ही नहीं उन्हें अपने साथ लाने की बात भी कह रहे हैं। बीजेपी और सपा ने छोटे दलों से गठबंधन तकरीबन फाइनल भी कर लिया है। बीजेपी से नाराज हो गए थे राजभर सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर 2017 में बीजेपी के साथ थे, 2019 चुवान में अकेले मौदान में थे और अब 2022 में अब अखिलेश के साथ जाने की तैयारी में है। 2014 से पहले भी सुभासपा कई सीटों पर चुनाव लड़ती थी, वोट भी मिलते थे, लेकिन वोट सीटों में बदल नहीं पाती थी। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले अमित शाह ने राजभर को अपने साथ लिया और सुभासपा का वोट बीजेपी में ट्रांसफर करा लिया। 2017 में राजभर योगी सरकार में मंत्री बने, लेकिन 2019 चुनाव से पहले वो नाराज हो गए और बीजेपी से दूरी बना लिए। बता दें कि पूर्वांचल के छह जिलों में ओपी राजभर का असर है, क्योंकि इन छह जिलों में राजभर मतदाता हैं।
इन दलों का गठबंधन तय अभी तक जिस तरह के संकेत मिल रहा है उसे देख कर ऐसा लग रहा है कि भाजपा अपना दल और निषाद पार्टी से गठबंधन करने वाली है, तो वहीं सपा आरएलडी, महान दल, जनवादी पार्टी के साथ ही सुभासपा से गठबंधन करने वाली है। इसके साथ ही शिवपाल यादव भी सपा के साथ आ गए हैं।
पूर्वांचल के 10 जिलों में है अपना दल का असर यूपी में बीजेपी के साथ सबसे पहले जाने वाली अपना दल के पास नौ विधायक और दो सांसद उत्तर प्रदेश में हैं। बता दें कि पूर्वांचल के करीब 10 जिलों में अपना दल का असर है। बीजेपी यूपी की पांच प्रतिशत कुर्मी वोटरों को अनुप्रिया पटेल के साथ अपने साथ रखना चाहती है।
निषाद वोट पर कब्जा करना चाह रही भाजपा यूपी चुनाव में निषाद पार्टी की अहमियत को इसी बात से समझा जा सकता है कि दिल्ली अमित शाह ने संजय निषाद और प्रवीण निषाद से मुलाकात की। इसके बाद लखनऊ में सीएम योगी भी संजय निषाद से मिलें। पूर्वांचल के सात जिलों में निषाद चार प्रतिशत है और बीजेपी संजय निषाद को अपने साथ जोड़कर चार प्रतिशत वोट पर कब्जा करना चाह रही है।
अखिलेश की चुनावी रणनीति सपा की बात करें तो 2017 में कांग्रेस और 2019 में बीएसपी से गठगंधन कर सबक लेने के बाद इस बार अखिलेश छोटे दलों के साथ गठगंधन करने वाले हैं। इसके लिए अखिलेश के पुराने पार्टनर जयंत चौधरी तो साथ होंगे हीं, दो नए सहयोगी भी जुड़ने वाले हैं। आरएलडी की पश्चिमी यूपी की करीब 40 सीटों पर अच्छी पैठ है, इतना ही नहीं इस चुनाव में जाट वोट बैंक भी निर्णायक की भूमिका में होंगे। इसके अलावा पश्चिमी यूपी की कुछ सीटों पर महान दल का प्रभाव माना जाता है। इन दो दलों के अलावा अखिलेश जनवादी पार्टी के साथ भी गठबंधन करने वाले हैं, जनवादी पार्टी भी पूर्वी यूपी के कई सीटों पर अच्छा खासा असर रखती है। तो वहीं, भतीजे अखिलेश को चाचा शिवपाल माफ कर चुनाव में अखिलेश यादव के साथ आ गए हैं।
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