चिकित्सालय भवन के लोकार्पण में आए थे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री
विशाल भव्य आकर्षक नवनिर्मित वर्णित चिकित्सालय भवन का लोकार्पण करने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री, पड़री खुर्द के मूल बाशिंदा देश की राजनीति में चाणक्य माने जाने वाले पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र पड़री कला आये हुए थे। उन्होंने कहा कि आपको जानकार ये आश्चर्य होगा कि देश के कई राज्यों के शीर्षस्थ नेता इस समारोह में हाज़िर थे। जिनकी लंबी फेहरिस्त है। लोकार्पण समारोह अदभुत ऐतिहासिक रूप में पहले दिन ऐसे संपन्न हुआ। जैसे धरती पर भावुकता का समुद्र जान सैलाब के रूप में पड़री में हिलोरें ले रहा हो। अगले दिन पड़री खुर्द में मिश्र जी का कई जगह स्वागत और नागरिक अभिनन्दन था। रात में पड़री कला में ठहरने के बाद अगले दिन सुबह पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र पदयात्रा करते हुए भारी भरकम काफ़िले के साथ चौड़े गलियारे से पड़री खुर्द की ओर आ रहे थे। नारों का उद्घोष हो रहा था। ऐसा लगता था कि तारक मंडल चन्द्रमा सहित इस मार्ग पर दिन में उतर आया है।
विशाल भव्य आकर्षक नवनिर्मित वर्णित चिकित्सालय भवन का लोकार्पण करने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री, पड़री खुर्द के मूल बाशिंदा देश की राजनीति में चाणक्य माने जाने वाले पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र पड़री कला आये हुए थे। उन्होंने कहा कि आपको जानकार ये आश्चर्य होगा कि देश के कई राज्यों के शीर्षस्थ नेता इस समारोह में हाज़िर थे। जिनकी लंबी फेहरिस्त है। लोकार्पण समारोह अदभुत ऐतिहासिक रूप में पहले दिन ऐसे संपन्न हुआ। जैसे धरती पर भावुकता का समुद्र जान सैलाब के रूप में पड़री में हिलोरें ले रहा हो। अगले दिन पड़री खुर्द में मिश्र जी का कई जगह स्वागत और नागरिक अभिनन्दन था। रात में पड़री कला में ठहरने के बाद अगले दिन सुबह पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र पदयात्रा करते हुए भारी भरकम काफ़िले के साथ चौड़े गलियारे से पड़री खुर्द की ओर आ रहे थे। नारों का उद्घोष हो रहा था। ऐसा लगता था कि तारक मंडल चन्द्रमा सहित इस मार्ग पर दिन में उतर आया है।
मुख्यमंत्री की अगवानी के लिए जन सैलाब उमड़ा था
उधर पड़री की ओर से पास पड़ोस के ग्रामों सहित सैकड़ों लोग मिश्र जी की अगुवानी के लिए बाराती शैली में चल रहे थे। गांव के लोगों के जानवर चराने वाले पड़री खुर्द के गंगा काछी जो अतिसामान्य आर्थिक परिस्थितियों से ग्रस्त व्यक्ति थे। इस एक दिन उन्होंने लोगों के जानवर चराना स्थगित कर दिया। गहरी नील लगी धोती और बंडी (कपड़े की बनियान) पहने हुए अपनी धुली लाठी में चिकनाहट लगा कर भीड़ को चीरते हुए सबसे आगे निकल आये। पीछे खड़े लोगों की परवाह ना करते हुए गंगा के पैरों की गति अधिक तीव्र थी। अचानक अचलगंज थाने के इंचार्ज जो गलियारे में कई पुलिस कर्मियों सहित खड़े थे ने दौड़ कर गंगा को रोक दिया।
उधर पड़री की ओर से पास पड़ोस के ग्रामों सहित सैकड़ों लोग मिश्र जी की अगुवानी के लिए बाराती शैली में चल रहे थे। गांव के लोगों के जानवर चराने वाले पड़री खुर्द के गंगा काछी जो अतिसामान्य आर्थिक परिस्थितियों से ग्रस्त व्यक्ति थे। इस एक दिन उन्होंने लोगों के जानवर चराना स्थगित कर दिया। गहरी नील लगी धोती और बंडी (कपड़े की बनियान) पहने हुए अपनी धुली लाठी में चिकनाहट लगा कर भीड़ को चीरते हुए सबसे आगे निकल आये। पीछे खड़े लोगों की परवाह ना करते हुए गंगा के पैरों की गति अधिक तीव्र थी। अचानक अचलगंज थाने के इंचार्ज जो गलियारे में कई पुलिस कर्मियों सहित खड़े थे ने दौड़ कर गंगा को रोक दिया।
गांव का चरवाहा पं. द्वारका प्रसाद मिश्र से लिपट कर रोने लगा
दूसरी ओर से आ रहे काफिले में सबसे आगे चल रहे द्वारिका प्रसाद मिश्र ने पुलिस इंचार्ज के रोकने-टोकने को देखा। मिश्र जी ने जोर से कहा कि उन्हें आने दो। अब क्या था गंगा सरपट लाठी संभाले दौड़ते हुए द्वारिका प्रसाद तक पहुंच गए। बीच में लाठी थी द्वारिका प्रसाद और गंगा गले मिलकर चिपक गए। अब गंगा रोने लगे। मिश्र जी की भी आँखें नम हो आई। गंगा ने अपना नाम बताते हुए रो रो कर कहा कि मुझे माफ़ कर दो। मिश्र जी भी स्तब्ध थे। गंगा कह बैठे कि बचपन में उन्होंने मिश्र जी को धक्का दे दिया था। उन्हें नहीं पता था की इतने बड़े आदमी बन जायेंगे। बहरहाल दोनों तरफ से गलियारे में हाज़िर जन समुदाय भी भावुक हो गया। मिश्र जी ने गंगा के कंधे पर हाथ रखा और उनको साथ लेकर पड़री खुर्द की ओर आगे बढ़े। बताते हैं कि हैरत तो तब हुई जब अभिनन्दन मंच पर गंगा को उन्होंने बड़ी शान के साथ पड़री खुर्द के मंच पर बैठाया। धीरेंद्र कुमार शुक्ल कहते हैं कि कुछ अनोखे दृश्य का गवाह में भी हूं जब सैकड़ों लोगों ने इसे कृष्ण और सुदामा जैसा अनोखा मिलन बताया।
दूसरी ओर से आ रहे काफिले में सबसे आगे चल रहे द्वारिका प्रसाद मिश्र ने पुलिस इंचार्ज के रोकने-टोकने को देखा। मिश्र जी ने जोर से कहा कि उन्हें आने दो। अब क्या था गंगा सरपट लाठी संभाले दौड़ते हुए द्वारिका प्रसाद तक पहुंच गए। बीच में लाठी थी द्वारिका प्रसाद और गंगा गले मिलकर चिपक गए। अब गंगा रोने लगे। मिश्र जी की भी आँखें नम हो आई। गंगा ने अपना नाम बताते हुए रो रो कर कहा कि मुझे माफ़ कर दो। मिश्र जी भी स्तब्ध थे। गंगा कह बैठे कि बचपन में उन्होंने मिश्र जी को धक्का दे दिया था। उन्हें नहीं पता था की इतने बड़े आदमी बन जायेंगे। बहरहाल दोनों तरफ से गलियारे में हाज़िर जन समुदाय भी भावुक हो गया। मिश्र जी ने गंगा के कंधे पर हाथ रखा और उनको साथ लेकर पड़री खुर्द की ओर आगे बढ़े। बताते हैं कि हैरत तो तब हुई जब अभिनन्दन मंच पर गंगा को उन्होंने बड़ी शान के साथ पड़री खुर्द के मंच पर बैठाया। धीरेंद्र कुमार शुक्ल कहते हैं कि कुछ अनोखे दृश्य का गवाह में भी हूं जब सैकड़ों लोगों ने इसे कृष्ण और सुदामा जैसा अनोखा मिलन बताया।
बृजेश मिश्र पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के निजी सचिव
पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र के दो पुत्र ब्रजेश मिश्र और देवेन्द्र नाथ मिश्र के हैं। बृजेश मिश्र भारत के सुरक्षा सलाहकार, विदेश नीति तथा सुरक्षा मामलों के विशिष्ट व्यक्ति थे। मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री उन्नाव जनपद के बीघापुर ग्राम में जन्मे पं रविशंकर शुक्ल थे। 30 सितम्बर 1963 को द्वारिका प्रसाद मिश्र मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए थे। उनकी राजनीतिक जीवन की यात्रा इतनी विस्तृत है कि उसका उल्लेख यहाँ संभव नहीं है । 05 अगस्त 1901 को पड़री खुर्द उन्नाव में जन्मे मिश्र जी 1926 में ही मोतीलाल नेहरू, रफ़ी अहमद किदवई के साथ सचेतक के रूप में पहचान में आ चुके थे। सात वर्ष से अधिक समय तक स्वाधीनता संग्राम में वह अग्रणी नेता के रूप में जेल में रहे ।
पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र के दो पुत्र ब्रजेश मिश्र और देवेन्द्र नाथ मिश्र के हैं। बृजेश मिश्र भारत के सुरक्षा सलाहकार, विदेश नीति तथा सुरक्षा मामलों के विशिष्ट व्यक्ति थे। मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री उन्नाव जनपद के बीघापुर ग्राम में जन्मे पं रविशंकर शुक्ल थे। 30 सितम्बर 1963 को द्वारिका प्रसाद मिश्र मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए थे। उनकी राजनीतिक जीवन की यात्रा इतनी विस्तृत है कि उसका उल्लेख यहाँ संभव नहीं है । 05 अगस्त 1901 को पड़री खुर्द उन्नाव में जन्मे मिश्र जी 1926 में ही मोतीलाल नेहरू, रफ़ी अहमद किदवई के साथ सचेतक के रूप में पहचान में आ चुके थे। सात वर्ष से अधिक समय तक स्वाधीनता संग्राम में वह अग्रणी नेता के रूप में जेल में रहे ।
जेल में ही लिखा था कृष्णायन महाकाव्य
1942 में जेल में ही उन्होंने कृष्णायन महाकाव्य की रचना की। अपने विचारों के प्रति इतने दृढ़ थे कि लंबे समय तक पं. जवाहर लाल नेहरू से उनका वैचारिक मतभेद भी रहा। वो हिन्दी, अंग्रेजी , संस्कृत , उर्दू के विद्वान थे। शतरंज के माहिर खिलाडी के रूप में भी लोग उन्हें जानते रहे हैं। उनकी अंग्रेजी में लिखी हुई आत्मकथा Living an Era को 20वीं शताब्दी का ऐतिहासिक दस्तावेज़ मन जाता है। अनेक पत्र पत्रिकाओं का संपादन और ग्रंथो का अनुवाद भी उन्होंने किया। सागर विश्वविद्यालय में कुलपति भी रहे। जिस क्षेत्र में भी कार्य किया अपनी अदभुत छाप छोड़ने में अग्रणी रहे हैं। सन् 1971 में राजनीति से संन्यास लेकर वो प्रायः साहित्य सृजन में ही समर्पित रहे। उस दौर में यह कहावत प्रचलित थी कि पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र जब मध्यप्रदेश से दिल्ली आते थे तो निश्चित रूप से कोई बड़ी हलचल होती है। धीरेंद्र कुमार शुक्ल कहते हैं अखबार का नाम तो स्मरण नहीं है किन्तु मुझे याद है कि एक बार बीमारी के दिनों में जब वो दिल्ली में थे। तब पत्रकारो ने उनको इस अंदाज में कुरेदा कि कौन सा राजनीतिक भूचाल आने वाला है ? प्रखर पत्रकार महान् लेखक महाकाव्य के रचयिता मिश्र जी ने कहा –
1942 में जेल में ही उन्होंने कृष्णायन महाकाव्य की रचना की। अपने विचारों के प्रति इतने दृढ़ थे कि लंबे समय तक पं. जवाहर लाल नेहरू से उनका वैचारिक मतभेद भी रहा। वो हिन्दी, अंग्रेजी , संस्कृत , उर्दू के विद्वान थे। शतरंज के माहिर खिलाडी के रूप में भी लोग उन्हें जानते रहे हैं। उनकी अंग्रेजी में लिखी हुई आत्मकथा Living an Era को 20वीं शताब्दी का ऐतिहासिक दस्तावेज़ मन जाता है। अनेक पत्र पत्रिकाओं का संपादन और ग्रंथो का अनुवाद भी उन्होंने किया। सागर विश्वविद्यालय में कुलपति भी रहे। जिस क्षेत्र में भी कार्य किया अपनी अदभुत छाप छोड़ने में अग्रणी रहे हैं। सन् 1971 में राजनीति से संन्यास लेकर वो प्रायः साहित्य सृजन में ही समर्पित रहे। उस दौर में यह कहावत प्रचलित थी कि पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र जब मध्यप्रदेश से दिल्ली आते थे तो निश्चित रूप से कोई बड़ी हलचल होती है। धीरेंद्र कुमार शुक्ल कहते हैं अखबार का नाम तो स्मरण नहीं है किन्तु मुझे याद है कि एक बार बीमारी के दिनों में जब वो दिल्ली में थे। तब पत्रकारो ने उनको इस अंदाज में कुरेदा कि कौन सा राजनीतिक भूचाल आने वाला है ? प्रखर पत्रकार महान् लेखक महाकाव्य के रचयिता मिश्र जी ने कहा –
चाह गयी, चिंता गयी, मनुवां बेपरवाह
जिनको कछू ना चाहिए, वे नर शाहंशाह। उन्होंने कहा पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र के निधन से आहत मनस्वी मंडल और त्रिपाठी स्मारक समिति के संस्थापक धर्मेन्द्र आलोक ने उन्नाव मुख्यालय के पन्नालाल पार्क में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया था ।
जिनको कछू ना चाहिए, वे नर शाहंशाह। उन्होंने कहा पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र के निधन से आहत मनस्वी मंडल और त्रिपाठी स्मारक समिति के संस्थापक धर्मेन्द्र आलोक ने उन्नाव मुख्यालय के पन्नालाल पार्क में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया था ।
धीरेंद्र कुमार शुक्ल कहते हैं की पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र ने जन्म भले ही उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के पल्ली गांव में लिया हो लेकिन उन्होंने संपूर्ण विश्व को अवलोकित किया है। उन्होंने संस्कृत और साहित्य को समृद्ध बनाने का काम किया उनके कार्यों को प्रदेश ही नहीं देश की सीमाओं में भी नहीं माना जा सकता।