उन्नाव

स्वतंत्रता सेनानी राजा राव राम बक्स सिंह: अंग्रेजों की माफी नहीं, फांसी पर लटकाना मंजूर

आजादी की लड़ाई में उन्नाव के राजा राव राम बक्श सिंह की युद्ध नीति के आगे अंग्रेज भी नतमस्तक थे। अपनों की गद्दारी के कारण अंग्रेज उन्हें गिरफ्तार कर पाई। जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। अंग्रेजों ने माफी मांगने पर छोड़ देने की शर्त रखी। लेकिन राजा साहब को फांसी मंजूर थी।

उन्नावAug 10, 2023 / 06:43 pm

Narendra Awasthi

स्वतंत्रता सेनानी राजा राव राम बक्स सिंह: अंग्रेजों की माफी नहीं, फांसी पर लटकाना मंजूर

आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले राजा राव राम बक्श सिंह के किस्से आज लोगों की जुबान पर है। 1857 में हुई क्रांति को आज भी लोग याद करते हैं। अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों में राजा राव राम बक्श सिंह की अग्रणी भूमिका थी। उनके हौसले के आगे अंग्रेजों की गोली, बंदूक सब बेकार थे। क्रांतिकारियों को संगठित करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। 26 अगस्त 1859 में राजा राव राम बक्श सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी। अंग्रेजों ने शर्त रखी माफी मांग लो, छोड़ दिए जाओगे। लेकिन राजा साहब को फांसी का फंदा मंजूर था, माफी नहीं।

अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारियों को संगठित करने में राजा राव राम बक्श सिंह ने अग्रणी भूमिका निभाई। पड़ोसी जिले लखनऊ, कानपुर, फतेहपुर, रायबरेली के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को एक किया। उस समय आसपास के कई राजाओं ने भी हाथ बढ़ाया। गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। अंग्रेज जनरल हैवलॉक लखनऊ में मीटिंग करने आ रहे थे। लेकिन राजा राव राम बक्श सिंह ने संगठित क्रांतिकारियों के साथ उनकी यात्रा का विरोध किया। जिससे अंग्रेज जनरल हैवलॉक को वापस लौटना पड़ा।

जल कर 10 अंग्रेज सैनिकों की हुई थी मौत

राजा राव राम बक्श सिंह ने क्रांतिकारियों के सहयोग से अंग्रेज की छावनी पर हमला किया। कानपुर में नाना साहब ने अंग्रेजों पर हमला किया। जहां से 13 अंग्रेज भाग कर गंगा नदी के किनारे स्थित शिवालय में छुप गए। लेकिन उन्होंने ठाकुर यदुनाथ सिंह को गोली मार दी। जिससे आक्रोशित क्रांतिकारियों ने मंदिर के चारों तरफ आग लगा दी। जिसमें 10 अंग्रेज सैनिकों की मौत हो गई थी। तीन अंग्रेज नदी में कूद कर अपनी जान बचाई और घटना की जानकारी अंग्रेज अधिकारियों को दी।

अंग्रेजों को अपने कदम वापस खींचने पड़े

10 अंग्रेजों की मौत पर अंग्रेज अधिकारियों में आक्रोश भर गया। उन्होंने होप ग्रांट के नेतृत्व में 1858 में अंग्रेजी सेना को भेजा। अंग्रेज सैनिक लखनऊ से डोडिया खेड़ा पहुंचे। जहां उन्होंने उसे मंदिर में तोड़फोड़ किया। जिसमें 10 अंग्रेजों को जलाया गया था। उनके किले की नाकेबंदी करते हुए हमला बोल दिया। लेकिन राजा राव साहब की युद्ध नीति के कारण अंग्रेजों को अपने कदम पीछे खींचने पड़े।

मुखबिर की सूचना पर हुई गिरफ्तारी

अंग्रेजी हुकूमत के लिए चुनौती बने राजा राव राम बक्स सिंह को पकड़ने के लिए जाल बिछा दिया। जो अंग्रेजों की पकड़ से दूर बाबा विश्वनाथ में साधु की वेश में रह रहे थे। उनके साथ उनके विश्वासपात्र पांच सेवक भी थे। अंग्रेज हुकूमत ने उन पर इनाम घोषित कर दिया था। 1861 में राजा साहब के पांच सेवकों में से एक चंदी ने मुखबिरी की। जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया। झूठी गवाही में राजा साहब को फांसी की सजा सुनाई गई।

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दो बार फांसी के फंदे की रस्सी टूटी

28 दिसंबर 1861 में अंग्रेजों ने उस स्थान पर फांसी देने का निर्णय किया। जहां 10 अंग्रेजों को जिंदा जलाया गया था। मां चंद्रिका देवी के अनन्य भक्त राजा राव राम बक्श सिंह के फांसी के फंदे की रस्सी दो बार टूटी। तीसरी बार में अंग्रेजों को फांसी पर लटकाने में सफलता मिली। राजा राव राम बक्श सिंह की याद में उनके खिलाफ डोडिया खेड़ा में प्रतिवर्ष कार्यक्रम आयोजन किया जाता है।

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