बिलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी वंश गोपाल गिरी ने बताया कि महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले भगवान श्री कृष्ण पांडव पुत्रों के साथ माैरध्वज नगरी आ रहे थे। जो अब मौरावां के नाम से जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण को जल की आवश्यकता हुई।
पांडव पुत्र अर्जुन ने अपने बाण से जलाशय बनाया
इस पर पांडव पुत्र अर्जुन ने अपने बाण से जल स्रोत बना दिया। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने यहीं पर शिवलिंग की स्थापना की। समय के साथ शिवलिंग के चारों तरफ बेल के पेड़ उगा आये। जिससे की शिवलिंग दिखाई नहीं पड़ रहा था। जंगल में जानवर चराने गए चरवाहों को शिवलिंग दिखाई पड़ा। जिसके बाद भव्य शिवालय का निर्माण कराया गया।
वंश गोपाल गिरी ने बताया कि बिलेश्वर महादेव का दरबार रोज रात को विधान से पूजा पाठ के बाद बंद किया जाता है। लेकिन प्रातः खोलने पर पूजित मिलता है। इस रहस्य को जानने के लिए भक्तों ने काफी प्रयास किए। लेकिन सफलता नहीं मिली। उन्होंने बताया कि मान्यताओं के अनुसार अश्वत्थामा रोज प्रातः शिवलिंग की प्रथम पूजा करते हैं। अर्जुन की बाणों से बना जलाशय की भी खासियत है कि यह कभी सूखता नहीं है। शिवालय के कपाट सुबह 4 बजे भक्तों के लिए खुलते हैं।
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यहां पहुंचने के मार्गजनपद मुख्यालय से विश्वेश्वर महादेव शिवालय सड़क मार्ग से जुड़ा है। मुख्यालय से लगभग 36 किलोमीटर दूरी पर शिवालय स्थित है। लखनऊ से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बंथरा, बनी, मिर्री कला होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है। लखनऊ से कालूखेड़ा मौरावां होते हुए भी मार्ग है। रायबरेली से भी मौरावां होते हुए बाबा के दरबार पहुंचा जा सकता है।