हिलौली विकासखंड के बरेंदा गांव में स्थित भवरेश्वर महादेव की स्थापना द्वापर युग में हुई थी। जब पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान यहां पर अपना समय व्यतीत किया था। माता कुंती की पूजा अर्चना के लिए भीम ने शिवलिंग की स्थापना की। जिसे भीमेश्वर के नाम से प्रसिद्धि मिली।
औरंगजेब ने शिवलिंग निकलवाने का प्रयास किया
मान्यता है मुगल काल में औरंगजेब ने भीमेश्वर की महत्ता को सुना और अपने सैनिकों को आदेश दिया कि शिवलिंग को बाहर निकाला जाए। मुगल सैनिकों ने शिवलिंग को निकालने का काफी प्रयास किया बताते हैं। पहली बार में दूध निकला। लेकिन मुगल सैनिकों की समझ में कुछ नहीं आया।
मुगल सैनिकों ने दोबारा फिर प्रयास किया। जिस पर खून निकला। लेकिन भोले के संकेतों को मुगल सैनिक अनदेखा कर गए। तीसरी बार में बड़ी संख्या में भंवरे निकले। जिन्होंने मुगल सैनिकों पर हमला बोल दिया। या देख भयभीत मुगल सैनिक भाग निकले। इस घटना के बाद भीमेश्वर का नाम भवरेश्वर पड़ गया।
वैसे तो 12 महीने यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है। लेकिन सावन के महीने में लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली सहित अन्य जिलों से बड़ी संख्या में भक्तगण जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। विशाल प्रांगण में रुद्राभिषेक भी होता है। सई नदी के किनारे स्थित भवरेश्वर महादेव शिवालय की छटा निराली है।
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उन्नाव, रायबरेली, लखनऊ से सड़क मार्ग के माध्यम से भक्तगण भोले के दरबार में पहुंच सकते हैं। उन्नाव मुख्यालय से भवरेश्वर महादेव लगभग 60 किलोमीटर दूर है। उन्नाव से पुरवा, मौरावां, कालूखेड़ा या फिर भल्ला फार्म, कांथा, असोहा, कालूखेड़ा होते हुए बाबा के दरबार में पहुंचा जा सकता है। लखनऊ से मोहनलालगंज, निगोहा और रायबरेली से गंगागंज, हरचंदपुर, बछरावां होते हुए पहुंचा जा सकता है