उन्नाव

Bhaiya Dooj 2024: यमराज ने यमुना को दिया वरदान, जिसके बाद से मनाया जाने लगा भैया दूज

Bhaiya Dooj 2024 आज भाई-बहन का त्यौहार भैया दूज मनाया जा रहा है। आज के दिन बहनें भाई के माथे पर तिलक लगाती है और सुख समृद्धि की कामना करती है। जानें क्यों मनाया जाता है भैया दूजा? जानें यमुना और यमराज की कथा-

उन्नावNov 03, 2024 / 06:12 am

Narendra Awasthi

Bhaiya Dooj 2024 उत्तर प्रदेश में आज 3 नवंबर को भैया दूज का पर्व मनाया जा रहा है। ‌इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक करके लंबी उम्र, सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। डॉ राजेश कुमार दीक्षित ने बताया हिंदू त्योहारों में करवा चौथ पति के दीर्घायु के लिए मनाने जाने वाला पर्व है तो भैया दूज भाइयों के दीर्घायु के लिए मनाया जाता है। बहनें तिलक करके भाईयों के दीर्घायु होने की कामना करती है। इस दौरान “गंगा पूजा यमुना को, यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे, मेरे भाई की आयु बढ़े” का जाप करना चाहिए। ‌ इसके साथ ही बहनों को चहुमुखी दीपक को जलाकर घर के बाहर रखना चाहिए।

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उत्तर प्रदेश के उन्नाव में भैया दूज की लेकर यह कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया के एक पुत्र और एक पुत्री हुई। जिनका नाम यमराज एवं यमुना है। यमुना अपने भाई यमराज से स्नेह करती थी और वह अपने भाई यमराज को भोजन करने के लिए बुलाती थी। परंतु अत्यधिक व्यस्थता के कारण यमराज बहन के यहां नहीं पहुंच पाते थे। एक बार यमराज कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को अचानक अपनी बहन यमुना के यहां पहुंच गए। दरवाजे पर भाई को देख यमुना खुश हो गई और यमराज का खूब स्वागत सत्कार किया। ‌
भैया दूज के विषय में जानकारी देते डॉक्टर राजेश कुमार दीक्षित

यमराज ने वरदान मांगने को कहा

जिससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से कहा कि वरदान मांगने को कहा। इस पर यमुना ने कहा कि आज कार्तिक मास की द्वितीया तिथि को आप मेरे यहां भोजन करने आएंगे। जिसे यमराज ने स्वीकार कर लिया और यहीं से भाई-बहन के स्नेहल पवित्र रिश्ते का त्योहार मनाया जाने लगा। ‌ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों तिलक कराते हैं। ऐसे भाई-बहन को यम का भय नहीं रहता है।

भाई बहन निस्वार्थ भाव से रिश्ते को स्वीकार करें

डॉ राजेश कुमार दीक्षित ने बताया भाई-बहन आपसी संबंधों को मजबूत बनाने के लिए एक दूसरे के लिए समय निकालें। एक दूसरे के साथ मित्रवत निःस्वार्थ सम्बन्ध रखें। समय-समय पर एक दूसरे को उपहार दें। आपस में चाहें जितनी नाराजगी हो, एक दूसरे का निरादर न करें। एक दूसरे को प्रोत्साहित करें। सभी भाई-बहन अंतिम सांस तक इस रिश्ते को दिल से स्वीकार करें। ऐसा कार्य करना चाहिए। जिससे आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बन सके।

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