दरअसल एएसआई को सर्चिंग में जो अवशेष मिले हैं उनमें सबसे खास दूसरी से पांचवीं सदी की लगभग 26 गुफाएं मिली हैं, जो काफी कुछ महाराष्ट्र और आसपास के इलाके में मिलने वाली गुफाओं के समान हैं। ये गुफाएं बौद्ध धर्म की महायान शाखा से जोड़कर देखी जा रही हैं। गुफाओं के साथ साथ यहां 24 अभिलेख ब्राह्मी और अन्य भाषाओं में मिल हैं। इनमें मथुरा, कौशाम्बी और कई अन्य नामों का भी जिक्र किया गया है।
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गुफा से मिले हिंदू और बौद्ध अवशेष
बता दें कि, बांधवगढ़ के ताला क्षेत्र के जिस स्थान पर एक जगह बौद्ध गुफाएं, स्तूप और खंभे मिले हैं, तो वहीं दूसरी तरफ हिंदू मंदिरों के अवशेष, मूर्तियां और अभिलेख भी सामने आए हैं। इनमें अधिकतर बौद्ध गुफाएं हैं, लेकिन कुछ गुफाओं में ऐसे अवशेष भी मिले हैं, जो बौद्ध संस्कृति से जुड़ी नहीं है। इस गुफाओं में पत्थर से बने बिस्तर, तकिए और कुछ गुफाओं के फर्श पर बोर्ड गेम के पैटर्न और दीवारों पर आले बने हुए हैं। कुछ गुफाओं के प्रवेश द्वार बौद्ध चैत्य के आकार वाले हैं। साथ ही, यहां से अन्य 24 अभिलेख मिले हैं ये ब्राह्मी लिपि, शंख और नागरी लिपि के हैं। ये गुफाएं हिंदू मूर्तियों के पास भी मिली हैं।
हो सकती है दुनिया की सबसे बड़ी वराह प्रतिमा
बताया ये भी जा रहा है कि, खोज के दौरान 26 मंदिर और उनके अवशेष के साथ साथ दो शैव मठ भी मिले हैं, जो 9वीं से 11वीं सदी के माने जा रहे हैं। साथ ही, 46 अन्य मूर्तियां भी मिली हैं, जिनमें सबसे आकर्षक मूर्तियां विष्णु के दशावतार से जुड़ी हैं। इनमें विष्णु के वराह, कूर्म और मत्स्य अवतार की मूर्ति है। एक जलाशय के पास शयन करते विष्णु की बेहद विशाल मूर्ति मिली है। बताया जा रहा है कि, एक मंदिर में राम दरबार भी मिला है। वहीं, संत कबीर से जुड़े मंदिरों के अवशेष भी मिले हैं। वराह की एक विशालकाय खंडित प्रतिमा भी मिली है, जो दुनिया की सबसे बड़ी वराह प्रतिमा मानी जा रही है।
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खोज में सामने आईं ये चीजें
बताया जा रहा है कि, सर्वेक्षण में 26 प्राचीन मंदिर, 26 गुफाएं, 2 मठ, 2 स्तूप, 24 अभिलेख, 46 प्रतिमाएं, 20 बिखरे हुए अवशेष और 19 जल संरचनाएं मिली हैं। साथ ही, बांधगढ़ में कतिपय मुगलकालीन और शर्की शासकों के सिक्के भी मिले हैं। वहीं इन सबके अलावा यहां बांधवगढ़ का एक प्राचीन किला भी है, जिसका जिक्र रामायण व शिवपुराण में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि रावण वध करने के बाद लंका से लौटते समय श्रीराम ने यह किला लक्ष्मण को उपहार में दिया था। भाई द्वारा दिए गए किले की वजह से ही इसका नाम बांधवगढ़ पड़ा। एएसआई ने बांधवगढ़ जंगलों में 1938 में भी गुफाओं खोजी थीं। उस समय के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के बांधवगढ़ के अन्वेषण प्रमुख डॉ. एन पी चक्रवर्ती ने मुख्य रूप से शिलालेखों पर केन्द्रित अन्वेषण और अभिलेखीकरण का काम किया था। उन्होंने बघेल राजा की अनुमति लेकर यहां सर्वे कराया था।
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