उज्जैन

आज भी इस पेड़ का रहस्य कोई नहीं जानता, कई कहानियां जुड़ी हैं इससे

Ujjain News: यह स्थान महाकाल वन में है, जहां भयानक जंगल हुआ करता था। यह स्थान अब भी वीरान ही है। यहां कम लोग ही आते हैं।

उज्जैनNov 15, 2019 / 12:40 pm

Lalit Saxena

Ujjain News: यह स्थान महाकाल वन में है, जहां भयानक जंगल हुआ करता था। यह स्थान अब भी वीरान ही है। यहां कम लोग ही आते हैं।

उज्जैन. सम्राट विक्रमादित्य और बेताल पच्चीसी और सिंहासन बत्तीसी की कहानियां तो बहुत सुनी होंगी, लेकिन शायद आप नहीं जानते होंगे कि जिस पेड़ पर बेताल उल्टा लटकते थे, उस पेड़ के नीचे कोई ज्यादा देर ठहर नहीं सकता। यह स्थान आज भी वीरान पड़ा है।

ओखलेश्वर शमशान में एक तांत्रिक बाबा
ओखलेश्वर शमशान में एक तांत्रिक बाबा इसी पेड़ के समीप अपनी झौपड़ी में सिद्धियां करते हैं और वहीं रहते हैं। कहा जाता है कि यह स्थान महाकाल वन में है, जहां भयानक जंगल हुआ करता था। यह स्थान अब भी वीरान ही है। यहां कम लोग ही आते हैं। सम्राट विक्रमादित्य प्रजा की रक्षा के लिए जंगलों में निकलते थे। तभी उनके सामने भयावह घना बरगद का पेड़ और उस पर लाल होंठ, बड़े नाखुन, लंबे बाल वाला उलटा लटका सफेद पोश बेताल… उनके सामने आ जाता था। वीर बेताल उनकी पीठ पर बैठकर अनोखी घटनाओं पर आधारित कहानियां सुनाते और उसका उत्तर देते ही वह गायब हो जाते। यहीं से शुरू होती है विक्रम बेताल से जुड़ी पच्चीसी कहानियां। आज वह पेड़ तो नहीं है लेकिन शिप्रा किनारे एक टीला है जो उस पेड़ के होने की कहानी को जिंदा रखे हुए है। हालांकि वर्तमान में उस टीले पर एक अघौरी ने अपनी कुटिया बना ली है और वह वहां रहकर ही तांत्रिक क्रियाएं करते हैं।

42 साल पहले अपने आप टूट गया पेड़
मान्यतानुसार राजा विक्रमादित्य के वीरों में से एक बेताल जिस बरगद के पेड़ पर उलटा लटका रहता था वह उज्जैन में शिप्रा किनारे लगा था। रखरखाव की कमी के कारण पेड़ पूरी तरह सूख चुका था। लगभग 42 वर्ष पहले पेड़ अपने आप ही टूट गया। आज भले ही वह पेड़ नहीं है लेकिन लोगों में उस स्थान को जाानने की जिज्ञासा आज भी है। प्रचार-प्रसार की कमी के कारण बाहरी ही नहीं स्थानीय कई लोगों को उस स्थान की जानकारी नहीं है।

रोज मंदिर जाते थे बेताल बाबा
बेताल बाबा जिस पेड़ पर रहते थे, उसके सामने स्थित विक्रांत भैरव मंदिर के पुजारी बंसीलाल मालवीय बताते हैं बेताल बाबा रोज यहां आते थे। मंदिर के बाहर पत्थर का चबूतरा है। बंसीलाल के अनुसार विक्रमादित्य इसी चबूतरे पर बैठते थे। विक्रम-बेताल के किस्से देश ही नहीं, विदेशों में भी चर्चित हैं। इसके बावजूद शासन-प्रशासन तो इस विरासत को सहेज नहीं पाया, लेकिन क्षेत्रवासियों की सक्रियता के कारण निशानी फिर भी बची हुई है। क्षेत्रीय निवासियों ने पेड़ वाली जगह पर वर्ष 1980 के लगभग एक छोटा ओटला बना दिया था कि स्थान की पहचान हो सके।

आज भी होती है तंत्र क्रिया
विक्रांत भैरव मंदिर और नदी पार ओखलेश्वर शमशान व आसपास का क्षेत्र आज भी तंत्र क्रियाओं के लिए जाना जाता है। क्षेत्रीय लोगों अक्सर टीले पर बने ओटले की पूजन करते हैं। बेताल का बरगद अति प्राचीन ओखलेश्वर शमशान के नजदीक लगा हुआ था। यहां पहुंचने के लिए गढ़कालिका मंदिर तक जाना होगा। गढ़कालिका मंदिर के बिलकुल नजदीक से नीचे की ओर सड़क जा रही है जो लगभग 500 मीटर दूरी पर ओखलेश्वर शमशान तक पहुंचती है। शमशान के पास ही वह टीला और ओटला स्थापित है। इसी के सामने शिप्रा पार विक्रांत भैरव मंदिर है। वहां काल भैरव मंदिर के सामने स्थित मागज़् से होते हुए पहुंचा जा सकता है।

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