शहर की सुंदरता को सर्वेक्षण टीम ने सराहा
प्रमुख मंदिरों से रोज निकलने वाले निर्माल्य से ऑर्गेनिक अगरबत्ती, शिप्रा के कचरे-पूजन सामग्री से कागज के बैग-फाइल बनाने की यूनिट व शहर के प्रमुख हिस्से डस्टबिन फ्री करने के कामों ने उज्जैन को देशभर में खास शहर बना दिया। इन कामों के बूते शहर को स्वच्छता इनोवेशन व सर्विस के तीन नेशनल अवॉर्ड मिले। बुधवार को दिल्ली में राष्ट्रपति की मौजूदगी में आयोजित समारोह में ये अवॉर्ड प्रदान किए गए। इधर, स्वच्छता सर्वेक्षण की कसौटी पर भी शहर खरा उतरा, हालांकि फाइव स्टार रेटिंग हासिल करने में शहर पिछड़ गया। इस पैमाने पर बंदोबस्त खरे नहीं उतरे।
कचरे को भी उपयोगी बनाया
स्वच्छता सर्वेक्षण के साथ शहर में इस क्षेत्र में इनोवेशन व नई तकनीकों का सहारा लेकर कचरे को भी उपयोगी बनाया गया, जिसमें मंदिरों के फूल-पत्ती से अगरबत्ती बनाने का काम शुरू हुआ तो शिप्रा से निकलने वाले कचरे, कपड़े व अन्य सामग्री से पेपर बैग बनाना शुरू किए गए। इन कार्यों ने देश के नगर निगमों की अपेक्षा उज्जैन को कुछ अलग व खास बनाया, जिसने शहर को तीन एक्सीलेंस नेशनल अवॉर्ड प्राप्त कराए।

दिल्ली में मिले अवॉर्ड
महापौर मीना जोनवाल, निगमायुक्त प्रतिभा पाल व अन्य अधिकारी मंगलवार को ही दिल्ली पहुंच गए थे। वहां बुधवार को आयोजित अवॉर्ड समारोह के लिए रिहर्सल हुई, जिसमें बारी-बारी से सभी निगम व शहरों से आए दलों को बुलाकर मिनट टू मिनट प्रोग्राम सेट किया गया। इधर देर शाम नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र वशिष्ठ भी दिल्ली पहुंचे। प्रदेश सरकार ने अवॉर्ड लेने वाले दल में सभी नेता प्रतिपक्षों को भी शामिल किया।
20 टन निर्माल्य से रोज 200 किलो हर्बल मसाला
महाकालेश्वर, चिंतामण गणेश, त्रिवेणी शनि मंदिर, मंगलनाथ सहित अन्य प्रमुख मंदिरों पर श्रद्धालु जो फूल-पत्ती व अन्य पूजन सामग्री चढ़ाते हैं। इस निर्माल्य को एकत्रित कर आयुर्वेदिक कॉलेज परिसर में बने प्लांट पर प्रोसेसिंग कर इनसे हर्बल मसाला तैयार किया जाता है। इसके जरिए अगरबत्ती तैयार होती है। रोज करीब 20 टन निर्माल्य यहां पहुंचता है, इससे 200 किलो हर्बल मसाला बनता है। इसकी महक भी प्राकृतिक होती है और ये पर्यावरण के लिए भी उपयोगी है। साथ ही आम अगरबत्ती से दोगुने वक्त तक ये चलती है। प्लांट पर 10 पिट भी बने हैं, जिनमें निर्माल्य के जरिए आर्गेनिक खाद भी तैयार होता है।
नदी के कचरे से सरकारी दफ्तरों की फाइलें, पायलेट प्रोजेक्ट
शिप्रा नदी में फेंके जाने वाली सामग्री व निर्माल्य से अब कागज तैयार किया जाने लगा है। कचरे को एकत्रित कर इसकी रिसाइकलिंग कर कागज व इससे कैरी बैग, सरकारी विभाग में उपयोग आने वाली फाइल आदि बन रही है। शिप्रा को साफ बनाए रखने पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में नगर निगम ने मक्सी रोड स्थित वर्कशॉप पर ये प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित कराई है। जहां नदी से निकलने वाले कचरे को रिसाइकिल कर नया रूप दिया जा रहा है। इससे कई महिलाओं को रोजगार भी मुहैया हुआ है। शिप्रा नदी से जो भी कपड़े निकलते हैं। उसके बारिक टुकड़े कर लुग्दी बनाकर बैग पेपर और फाइल पेपर तैयार किया जा रहा है। इसके अलावा रामघाट व सिद्धवट पर मुंडन में निकलने वाले बालों के कचरे को भी इस काम में उपयोग लिया जा रहा है।
डस्टबिन फ्री शहर, कचरे के ठीए खत्म
स्वच्छता सर्वेक्षण के मापदंडों में शहर को पब्लिक डस्टबिन फ्री बनाकर लोगों को पूरी तरह डोर टू डोर कचरा कलेक्शन पर ही निर्भर बनाना था। नगर निगम ने शहर में लगे डस्टबिन हटाकर लोगों की प्रवृत्ति में बदलाव किया। साथ ही एेसे ठीए, जहां बड़े कंटेनर रखकर कचरा लिया जाता था, इस व्यवस्था को भी बदला। व्यावसायिक क्षेत्रों में रात्रि में कचरा कलेक्शन होने से ये ठीए समाप्त हुए। इन दोनों इंतजामों को करने व सर्वेक्षण की गाइडलाइन पर खरा उतरने से निगम को इस सेवा में भी नेशनल अवॉर्ड हासिल हुआ है। हालांकि प्रमुख क्षेत्रों से डस्टबिन हटाने का शहर के जनप्रतिनिधियों ने विरोध किया था।