रंग और रेखा के जरिए सहेज रहे कला
करीब दो वर्ष पहले अक्षय आमेरिया ने प्रति रविवार को सुबह किसी घाट, गली, पौराणिक महत्व से जुड़े मंदिर या स्थान को उसके पुरातन वैभव और संस्कृति के अनुसार रंग और रेखा के जरिए सहेजने का काम शुरू किया था। इस अनूठे कार्य में वे अब तक ३०० से करीब रेखांकन कर चुके हैं। इसमें मंदिर, प्राचीन महत्व के स्थान हैं तो शहर की तंग गलियां भी शामिल हैं। काम प्रारंभ किया तो अकेले थे। अब प्रति रविवार को आठ दस आर्टिस्ट इक_े होते हैं और रेखांकन करते हैं। रविवार सुबह स्कैच बुक, पेंसिल, स्याही वाले पेन लेकर किसी भी घाट, पुरानी गली में निकल जाते और उस जगह का रेखांकन करने लगते हैं।
पेन-पेंसिल से करते हैं ड्राइंग
आमेरिया के अनुसार मुख्य काम तो उनका पेन, पेंसिल वाले ड्राइंग, स्कैच हैं, लेकिन कुछ समय से डिजिटलाइजेशन हावी होने लगा था। परंपरागत विधा से दूर होने लगे थे। डिजिटल माध्यम ने आर्ट के अधिकांश क्षेत्रों में काम आसान कर दिया है। इसके बाद पारंपरिक कला में उतरने का फैसला कर शहर के ऐतिहासिक, पौराणिक,धार्मिक और परंपरागत क्षेत्र, गलियों को स्कैच बुक में सहेजने का कार्य प्रारंभ कर दिया।
ऑन स्पॉट काम करना चुनौती से कम नहीं
आमेरिया बताते हैं कि उन्होंने अकेले ही रेखाकंन शुरू किया था। कुछ समय बाद उनके साथ नॉन आर्टिस्ट भी जुड़ गए हैं, जो हर रविवार ऑन लोकेशन स्कैचिंग के लिए आते हैं। किसी को देखकर स्कैच बनाना, स्टूडियो में काम करना आसान है, लेकिन ऑन स्पॉट करना चुनौती है, लेकिन उज्जैन के वैभव में रमकर इस कार्य को करने में अलग ही आनंद आ रहा है।
वर्षों पुराने साथी मिल गए
ऑन स्पॉट स्कैचिंग में परेशानी है तो सकून भी। अक्षय आमेरिया के अनुसार कई बार शहर के पुराने इलाके में रेखांकन के दौरान लोगों ने चौड़ीकरण के साथ अन्य विकाय कार्य के लिए योजना बनाने वाला सर्वेयर मानकर पूछताछ की। धूप, हवा, पानी के साथ काम करना होता है। झुक झुक कर देखते हैं। इससे एकाग्रता भंग होती है। इनेक लोगों को बताना पड़ता है कि वे क्या कर रहें है? इस अभियान में पुराने मित्रों से भी मुलाकात हो गई। कार्तिक चौक में रेखाकंन के दौरान एेसे मित्रों से मुलाकात हो गई, जो दीगर कार्यो या अन्य जगह व्यस्त हो जाने के कारण 15 से 20 वर्षों बाद मिले थे।