यूं तो इस मंदिर का काफी महत्व है। यहां भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवान महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई थी। आज हम आपको बताएंगे कि सूर्य देव की बारह रश्मियों से प्रकट हुए थे ज्योर्तिलिंग।
12 रश्मियों से प्रकट हुए थे ज्योर्तिलिंग
कहा जाता है कि जब सृष्टी का निर्माण हुआ था उस समय सूर्य की पहली 12 रश्मियां धरती पर गिरी। उनसे 12 ज्योर्तिलिंग का बने। उज्जैन महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग भी सूर्य की पहली 12 रश्मियों से ही निर्मित हुआ। तब से बाबा महाकालेश्वर की पूजन उज्जैन में होती हैं। उज्जैन की पूरी भूमि को उसर भूमि कहा जाता है। यानी शमशान की भूमि। भगवान महाकाल का मुख दक्षिण दिशा की ओर है, इसलिए भी तंत्र क्रियाओं की दृष्टी से उज्जैन महाकाल मंदिर का बेहद खास महत्व है। महाकाल की नगरी में हरसिद्धी, कालभैरव, विक्रांतभैरव आदि भगवान विराजमान है। उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर परिसर में कई देवी-देवाताओं के कई मंदिर हैं। महाकाल बाबा के दर्शन के लिए मुख्य द्वार से गर्भग्रह तक कतार में लगकर श्रद्धालु पहुंचते हैं।
मंदिर में एक प्राचीनकाल का कुंड भी है, यहां स्नान करने से पवित्र होने और पाप व संकट नाश होने के बारे में कहा जाता है। महाकालेश्वर मंदिर तीन खंडों में है। नीचे वाले हिस्से में महाकालेश्वर स्वयं है। बीच के हिस्से में ओंकारेश्वर है। ऊपर के हिस्से में भगवान नागचंद्रेश्वर है। भगवान महाकालेश्वर के गर्भग्रह में माता पार्वती, भगवान गणेश एवं कार्तिकेय की मूर्तियों के दर्शन किए जा सकते हैं। जानकारी के लिए आपको बता दें कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी अपनी शिक्षा उज्जैन से ही ग्रहण की थी। उज्जैन की ख्याति प्राचीन काल से ही धार्मिक नगरी के तौर पर देखी गई है। यहां लंबे समय राजा महाराजा विक्रमादित्य का शासन था।
राजा को नहीं थी उज्जैन ने ठहरने की इजाजत
आपको बता दें कि बाबा महाकाल सृष्टि की उत्पत्ति के साथ स्वयं प्रकट हुए थे। आज भी उज्जैन के राजा महाकाल ही है। बाबा महाकाल के बारे में एक कथा प्रचलित है, जो आज भी सच है। पहले किसी भी राजा को महाराज महाकाल की नगरी उज्जैन में ठहरने की इजाजत नहीं थी। ऐसा इसिलए था क्योंकि कहा जाता है कि सदियों पहले कोई ओर राजा एक रात यहां गुजार ले तो उसे अपनी सल्तनत गंवानी पड़ती थी। इसी वजह से महाकाल की शरण में रहने के लिए सिंधिया राजघराने ने महल बनवाया। उस समय में सिंधिया राजघाने ने उज्जैन में कालीदेह महल अपने ठहरने के लिए बनवाया था।
कहा जाता है उज्जैन आने पर सिंधिया महाराज इसी महल में ठहरा करते थे। आज भी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री रात के समय उज्जैन में नहीं रुकते हैं। साथ ही कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इन नगरी में रात के समय नहीं रुकते हैं। यह कथा आज भी उस जमाने की तरह ही सच है। आज भी उज्जैन के राजा बाबा महाकाल ही है।
क्यों होती है भस्म आरती
शिवपुराण के अनुसार भस्म सृष्टि का सार है। एक दिन पूरी सृष्टि इसी राख के रूप में परिवर्तित होनी है। सृष्टि के सार भस्म को भगवान शिव सदैव धारण किए रहते हैं। इसका अर्थ है कि एक दिन यह संपूर्ण सृष्टि शिवजी में विलीन हो जाएगी। भस्म तैयार करने के लिए कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर के वृक्ष की लकड़ियों को एक साथ जलाया जाता है। इस दौरान उचित मंत्रोच्चार भी किए जाते हैं। इन चीजों को जलाने पर जो भस्म प्राप्त होती है, उसे कपड़े से छान लिया जाता है। इस प्रकार, तैयार की गई भस्म भगवान शिव को अर्पित की जाती है।
पापों से मिलेगी मुक्ति
ऐसी मान्यताएं हैं कि शिवजी को अर्पित की गई भस्म का तिलक लगाना चाहिए। जिस प्रकार भस्म से कई प्रकार की वस्तुएं शुद्ध व साफ की जाती हैं, उसी प्रकार भगवान शिव को अर्पित की गई भस्म का तिलक लगाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी। साथ ही, कई जन्मों के पापों से भी मुक्ति मिल जाएगी। महाकाल की पूजा में भस्म का विशेष महत्व है और यही इनका सबसे प्रमुख प्रसाद है। ऐसी धारणा है कि शिव के ऊपर चढ़े हुए भस्म का प्रसाद ग्रहण करने मात्र से रोग दोष से मुक्ति मिलती है।