शहर से करीब ६० किलोमीटर दूर तराना तहसील और उज्जैन जिले की सीमा के अंतिम गांव करेड़ी के मां कनकावती (कनकेश्वरी) का मंदिर है। यहां दर्शन-पूजन से संकटों से मुक्ति मिलती है तो दरिद्रता और गरीबी भी दूर होती है। मान्यता है कि महाभारतकाल से पूर्व मंदिर की स्थापना कर्ण ने की थी। मंदिर न केवल चमत्कारों का स्थान है, बल्कि आसपास के कई किलोमीटर का हिस्सा धार्मिक पूरा संपदा से भरा हुआ है। खुदाई करने पर शिवलिंग के साथ कुंडली मारकर बैठै सर्प की काले पत्थरों की प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं। अनेक शिवलिंग और सर्प प्रतिमाएं मंदिर परिसर मे रखी हुई हैं।
रंगपंचमी के पहले मंगलवार से लगता है मेला
मंदिर में रंगपंचमी के बाद आने वाले पहले मंगलवार से चार दिन के मेले का आयोजन किया जाता है। पुजारी जगदीश नाथ ने बताया कि इस वर्ष रंगपंचमी और मंगलवार का संयोग एक ही दिन पड़ रहा है। ६ मार्च मंगलवार से मेले के आयोजन होगा। चार दिवसीय मेले के लिए मां कनकावती देवी मंदिर दूर-दूर से बड़ी संख्या में श्रद्घालु मां के दरबार पहुंचेंगे। मेले के दौरान वभिन्न आयोजन भी होंगे। सिंधिया शासनकाल से यहां रंगपंचमी के बाद आने वाले पहले मंगलवार से मेला लगाने की परंपरा चली आ रही है, जो आज भी कायम है। समय के साथ-साथ यह धार्मिक मेला विस्तृत रूप ले रहा है। शुरुआत में मेला दो दिनों तक चलता था। फिर तीन दिन और अब चार दिनी हो गया है। मेलेे में आसपास के अनेक गांवों सहित उज्जैन, शाजापुर, शुजालपुर, सीहोर, राजगढ़, इंदौर आदि से बड़ी संख्या में श्रद्घालु पहुंचते हैं।
तपस्या में कर्ण ने खुद को खत्म कर लिया था
मां कनकावती मंदिर में पूजा-पाठ का सातवीं पीढ़ी में काम देखने वाले मंदिर के पुजारी जगदीश नाथ बताते हैं कि महाभारतकाल से पहले राजा कर्ण तीर्थयात्रा पर निकले थे। रात्रि विश्राम के लिए करेडी ग्राम में ठहरे थे। इस दिन दौरान गांव के लोगों की गरीबी देख इनकी दरिद्रता और कष्ट को दूर करने के उद्देश्य से तपस्या की। कई दिनों की तपस्या के बाद भी माता के प्रसन्न नहीं होने पर कर्ण ने कडाव के गर्म तेल में खुद को डुबो खत्म कर लिया था। इस पर मां कनकावती देवी अपनी सात बहनों के साथ प्रकट हुईं और अपने शरीर पर ही अमृत कुंड निकाल कर उसका जल कर्ण के जले हुए अवशेष पर डालकर कर्ण को पुन: जीवन प्रदान कर वरदान मांगने को कहा। इस पर कर्ण ने गांव के लोगों के लिए प्रतिदिन सवा मन सोना देने का आशीर्वाद मां कनकावती देवी से मांगा और मां ने वरदान दिया भी।
आज भी कायम है अमृत कुंड
मंदिर का निर्माण महाभारतकालीन राजा कर्ण ने कराया था। पुजारी जगदीश नाथ ने बताया कि मां कनकावती देवी की आठ फीट की चैतन्य प्रतिमा है। मुंड की माला धारण किए मां की अष्टभुजा है और एक भुजा में आज भी जल स्वरूप में अमृत निकलता है। यह अमृत आखिर कहां से आता है यह भी रहस्य है।
फूल से मनोकामना का उत्तर
पुजारी जगदीश नाथ के अनुसार कर्ण की आराध्य देवी के दरबार में दूर-दूर से बड़ी संख्या में श्रद्घालु पहुंचते हैं। मां के पट पर श्रद्धालु मनोकामना को लेकर फूल चिपकाते हैं यदि फूल गिरता है तो माना जाता है कि मनोकामना पूर्ण होगी। यदि फूल नहीं गिरता तो समझा जाता है कि मनोकामना पूरी नहीं होगी और इसके लिए आराधना-पूजन पाठ करना होगा।