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नायब तहसीलदार निलंबित
बता दें कि, उज्जैन में पदस्थ रहने के दौरान (मौजूदा समय में देवास में तहसीलदार थीं) नायब तहसीलदार दीपाली जाधव ने अपने पति रंजीत कर्नाल के ड्राइवर प्रेमकुमार दांगी को नीलाम करना भारी पड़ गया। लोकायुक्त पुलिस ने मामले की जांच कर जो चार्जशीट पेश की उसके बाद तहसीलदार दीपाली जाधव को शासन की ओर से तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। बताया जा रहा है कि, रजिस्ट्री करने के दौरान जब रजिस्ट्रार ने जमीन की कीमत को लेकर आपत्ति जताई, तो दीपाली ने अपने ओहदे के रुसूख दिखाते हुए रजिस्ट्रार पर रजिस्ट्री करने का दबाव भी बनाया था।
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ये है मामला
आपको बता दें कि, उज्जैन तहसील के बमौरा निवासी नाथूलाल ने अपनी 3.21 हेक्टेयर जमीन बैंक को गिरवी रख पांच लाख रुपये लोन लिया था। तय समय पर लोन की रकम न चुका पाने पर साल 2014 में नाथूलाल की जमीन नीलाम की गई। तत्कालीन नायब तहसीलदार दीपाली जाधव ने उक्त भूमि को अपने पति रंजीत कर्नाल के ड्राइवर प्रेमकुमार दांगी के पक्ष में महज 12 लाख 11 हजार रुपए में नीलाम कर दी। जबकि, उस समय ही कलेक्टर गाइड लाइन के अनुसार, यानी जमीन की सरकारी कीमत 41 लाख 60 हजार रुपए बनती थी। मामला संज्ञान में आने के बाद लोकायुक्त पुलिस इसकी जांच में जुट गई।
अपने पति और बच्चों के साथ नायब तहसीलदीर दीपाली जाधव
पति के साथ सांठगांठ कर की थी नीलामी
लोकायुक्त टीम के पुलिस इंसपेक्टर बंसत श्रीवास्तव के मुताबिक, नियम ताक पर रखकर नायब तहसीलदार दीपाली द्वारा जमीन की नीलामी की गई थी। कुल मिलाकर देखें तो जमीन उन्हीं के पास पहुंच गई थी। जमीन की धोखाधड़ी में उनके पति रंजीत कर्नाल भी बराबर के हिस्सेदार हैं। जांच में खुलासा हुआ कि, नीलामी में प्रेमकुमार दांगी के साथ उज्जैन के अशोक नगर निवासी सहदेव और नीमनवासा के रहने वाले रमेश गुर्जर ने बोली लगाई थी। प्रेमकुमार की बोली 12.11 लाख रुपये पर खत्म हुई। प्रेमकुमार द्वारा पहले तो नीलामी की रकम जमा करने के लिए चेक दिया था, लेकिन कुछ ही देर बाद उसने आवेदन देकर चेक वापस ले लिया और थोड़ी देर बाद ही सरकारी खाते में नीलामी की तय रकम जमा कर दी थी।
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प्रेमकुमार का कबूलनामा
लोकायुक्त पुलिस की जांच में जो सामने आया वो चौंकाने वाला था। पुलिस को पता चला कि, प्रेमकुमार के खाते में उस समय इतनी धनराशि थी ही नहीं, अचानक इतना बड़ा अमाउंट आना ही शक के दायरे में ला रहा था। अब सवाल था कि, इतना कैश उसके पास आया कहां से। लोकायुक्त पुलिस इस संबंध में जब प्रेमकुमार से कड़ी पूछताछ की तो उसने बताया कि, ये सब मैडम (दीपाली) और साहब (रंजीत) का किया-धरा है। साहब ने ही पैसों की इंतजाम किया था।
इस तरह बनाई थी धोखे की जमीन
इंसपेक्टर बसंत श्रीवास्तव ने बताया कि, रंजीत ने अपने इंदौर के पते पर प्रेमकुमार को किराएदार दर्शाया था। उसी पते पर प्रेमकुमार के नाम से बैंक खाता भी खोला गया। प्रेमकुमार के पक्ष में नीलामी करवाने के बाद जमीन की रजिस्ट्री कराने के दौरान दीपाली का रंजीत ही गवाह भी बना। जबकि, ये नियमों के खिलाफ था। नियम कहते हैं कि, नीलामी में पीठासीन अधिकारी का कोई सगा-संबंधी शामिल नहीं हो सकता।
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सिर्फ कागजों पर हुई थी नीलामी
प्रेमकुमार के कबूल नामे के बाद लोकायुक्त टीम को नीलामी की व्यवस्था पर संदेह हुआ। जांच अधिकारी के मुताबिक, नीलामी में तीन लोगों का नाम सामने आया था, जिसकी जांच में पता लगा कि, जमीन पर किसी तरह की नीलामी हुई ही नहीं थी। ऐसे कोई भी तीन लोग नीलामी में शामिल ही नहीं हुए थे। प्रेमकुमार के साथ बोली लगाने वाले सहदेव और रमेश गुर्जर ने लोकायुक्त पुलिस को पूछताछ में बताया कि, उन्हें न तो नीलामी के बारे में पता था और न ही वो बोली लगाने गए थे। यानी पूरी नीलामी सिर्फ कागजों पर ही हुई थी, इसका हकीकत से कोई वास्ता नहीं था।
नोटिस के बावजूद बयान देने नहीं पहुंचीं दीपाली
लोकायुक्त पुलिस के मुताबिक, जांच में नायब तहसीलदार द्वारा फ्रॉड सामने आने के बाद जांच टीम द्वारा उन्हें बयान दर्ज कराने के लिए नोटिस भेजा गया था, लेकिन वो नहीं आईं। उधर, प्रेमकुमार दांगी भी बयान देने के बाद से फरार हैं। उसकी फरारी में ही इसी साल 15 जनवरी को कोर्ट में चालान पेश किया गया।