उज्जैन

भौगोलिक घटना : दिन और रात होंगे बराबर, घटना को देख सकेंगे खगोल प्रेमी

23 सितंबर को सूर्य विषुवत रेखा पर लंबवत, इस कारण होते हैं दिन-रात बराबर

उज्जैनSep 21, 2018 / 09:52 pm

Lalit Saxena

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उज्जैन. खगोलीय घटना के चलते रविवार को दिन और रात बराबर यानी 12-12 घंटे के होंगे। शासकीय जीवाजी वेधशाला के अधीक्षक डॉ. राजेंद्र प्रकाश गुप्त ने बताया, सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के परिभ्रमण के कारण 23 सितम्बर को सूर्य विषुवत रेखा पर लम्बवत् रहता है इसे शरद सम्पात कहते हैं। सूर्य को विषुवत् रेखा पर लम्बवत् होने के कारण दिन और रात बराबर-बराबर होते हैं।

सूर्य दक्षिणी गोलाद्र्ध व तुला राशि में करेंगे प्रवेश
23 सितम्बर के बाद सूर्य दक्षिणी गोलाद्र्ध व तुला राशि में प्रवेश करेगा। सूर्य के दक्षिणी गोलाद्र्ध में प्रवेश के कारण अब उत्तरी गोलाद्र्ध में दिन धीरे-धीरे छोटे होने लगेंगे व रात बड़ी होने लगेगी। यह क्रम 22 दिसम्बर तक जारी रहेगा।

उत्तरी गोलाद्र्ध में सबसे छोटा दिन
22 दिसम्बर को भारत सहित उत्तरी गोलाद्र्ध में दिन सबसे छोटा व रात सबसे बड़ी होगी। 24 सितम्बर से सूर्य के दक्षिणी गोलाद्र्ध में प्रवेश के कारण सूर्य की किरणों की तीव्रता उत्तरी गोलाद्र्ध में कम होने लगेगी, जिससे शरद ऋतु का प्रारम्भ होता है।

नाड़ीवलय यंत्र से देख सकेंगे घटनाक्रम
शासकीय जीवाजी वेधशाला उज्जैन में 23 सितम्बर की घटना को शंकु यन्त्र व नाड़ीवलय यन्त्र के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। इस दिन शंकु की छाया पूरे दिन सीधी रेखा (विषुवत रेखा) पर गमन करती हुई दिखाई देगी। 23 सितम्बर के पूर्व नाड़ीवलय यन्त्र के उत्तरी गोल भाग, (22 मार्च से 22 सितम्बर तक) पर धूप थी। 23 सितम्बर को उत्तरी व दक्षिणी किसी गोल भाग पर धूप नहीं होगी और 24 सितम्बर से अगले छह माह (20 मार्च तक) नाड़ी वलय यन्त्र के दक्षिणी गोलाद्र्ध पर धूप रहेगी। इस प्रकार सूर्य के गोलाद्र्ध परिवर्तन को हम नाड़ीवलय यन्त्र के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से देख सकते है। डॉ. गुप्त ने शहरवासियों को वेधशाला में आकर उक्त खगोलीय घटना को प्रत्यक्ष रूप से देखने का कहा है।

महाराज सवाई सिंह ने कराया था निर्माण
जयपुर के महाराज सवाई राजा जयसिंह (द्वितीय ) ने सन् 1719 में (दिल्ली के सम्राट मुहम्मद शाह के शासनकाल में मालवा के गवर्नर होकर उज्जैन में रहे थे) किया था, राजा जयसिंह शूर सेनानी, राजनीतिज्ञ व्यवस्थापक तो थे ही, विशेष रूप से विद्वान भी थे। आपने तत्कालीन उपलब्ध पार्षियन और अरबी भाषा में लिखित ज्योतिष गणित ग्रन्थों का भी अनुशीलन किया था। स्वयं ने भी ज्योतिषग्रन्थों की रचना की।

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